Thursday, March 31, 2011

DARSHAN VISUDDHI BHAVNA-FIRST AND FOREMOST BHAVNA AMONGST SOLAH KARAAN BHAVNA

DARSHAN VISUDDHI BHAVNA


दर्शन  विशुद्दी  का अर्थ है दृष्टि की उदारता,सम्यक दर्शन और दर्शन  विशुद्दी में यही अंतर है,की एक का अर्थ दृष्टी की निर्मलता है तोह दुसरे का अर्थ है दृष्टी की उदारता.सम्यक दर्शन अगर हमें हो जाए तोह इसका मतलब यह नहीं है की हमें दर्शन की  विशुद्दी भो हो गयी,हाँ लेकिन हमें दर्शन  विशुद्दी हो गयी तोह हमें सम्यक दर्शन
अपने आप ही हो जाएगा,ऐसा होना स्वाभाविक है.दर्शन  विशुद्दी १६ कारण भावनाओं में से सबसे पहली और सबसे जरूरी भावना है,अगर यह नहीं हुई तोह सारी भावना अपना असर नहीं दिखा पाएंगी,और दर्शन  विशुद्दी अपने आप में ही कल्याणकारी है,इन १६ कारण भावनाओं को भाने से जीव को तीर्थंकर प्रवर्ती का बंध होता है,ऐसा शास्त्रों में लिखा है.
दर्शन  विशुद्दी भावना -सम्यक दर्शन में तोह हमें सिर्फ अपने आप में आत्मा तत्व दिखाई पड़ता है,लेकिन दर्शन  विशुद्दी भावना को भाने से हमें प्राणी मात्र के अन्दर एक आत्मा तत्व दिखाई देने लगता है,यानि की हमारे अन्दर एक ऐसी दृष्टि आ जाये की हमें सब छोटे से छोटे और बड़े से बड़े जीवों के अन्दर आत्मा तत्व दिखाई देने लग
जाए तोह समझो हमें दर्शन विसुद्धि भावना को अपना लिया है,और यह हमें तीर्थंकरों जैसी ऊँचाई को चुने में मदद करेगी.अगर हमें किसी जीव के अन्दर चाहे वेह हाथी हो,या एक चींटी या आपका अपना भाई,अगर उसके अन्दर आत्मा तत्व दिखाई देने लग जाए,वेह भी एक जैसा ,जैसा आत्मा तत्व आपको अपने अन्दर दिख रहा है,वैसा ही किसी चींटी के अन्दर,वैसा ही आपको अपने भाई के अन्दर तोह आप ही बताइए क्या कोई उनमें भेदभाव कर सकता है,क्या ऐसा हो सकता है की वेह जीव एक हाथी के वजह अपने भाई की ज्यादा कदर करे,या उस चींटी की ज्यादा कदर करे.यानी की हमें एक ऐसी दृष्टि मिल जाते है,की हमें सारे जीवों के अन्दर एक जैसा आत्मा तत्व दिखाई पड़ता है,हम फिर किसी में भेदभाव नहीं कर पाएंगे,अगर ऐसा हो गया तोह उस जीव के अन्दर क्या सबके प्रति करुना भाव नहीं आएगा,क्या प्राणी-मात्र के कल्याण की भावना नहीं आएगी,क्या वेह नहीं सोचेगा की जैसा आत्मा तत्व उसमें है,वैसा दुसरे में भी तोह है,ऐसी दर्शन  विशुद्दी  भावना को भाने वाला जीव सबके कल्याण की सोचेगा,ऐसी भावना के बाद फिर वेह जीव किसी को कष्ट पहुँचाने की सोच ही नहीं सकता,क्योंकि उससे लगेगा की जैसा आत्मा तत्व मेरे अन्दर है,वैसा तोह उसके अन्दर भी है,फिर मैं दुःख किसो दे रहा हूँ,अपने जैसे ही एक आत्मा तत्व को.तोह बंधुओं हमें बस एक ऐसी दृष्टि मिल जाए जो हमें तीर्थंकर भगवन जैसी ऊंचाई तक पहुंचा दे तोह फिर कहने ही क्या है,यानी की अगर हम इस दर्शन  विशुद्दी भावना को थोड़े छोटे लेवल पर ही भाले तोह कितना कल्याणक हो सकता है,छोटे लेवल से मतलब है कोशिश ही कर लें,यह बात पक्की है की आपको इस जनम में ना सही तोह अगले जनम में यह भावना जरूर प्रकट हो सकती है,और हो सकता है की हम  विदेह अदि क्षेत्रो में जनम लेकर किसी श्रुत केवली,के पाद मूल्य में बैठकर यह १६ कारण भावनाएं भायें ऐसा मौका मिल जाए तोह इसमें हमारा ही कल्याण है.

 जय जिनेन्द्र

यह जो कुछ भी मैंने लिखा है,मुनि क्षमा सागर जी महाराज के १६ कारण भावना के प्रवचनों के आधार पर ही लिखा है,अगर मेरी व्याकरण से  सम्बंधित कोई गलती हो गयी हो,तोह बालक समझ कर माफ़ कर दीजियेगा.S

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