Saturday, May 14, 2011

6 dhala-doosri dhaal-ajeev tatva aur ashrav tatva ka vipreet shraddhan

६ ढाला


दूसरी ढाल


अजीव तत्व और आश्रव तत्व का विपरीत श्रद्धान

शरीर उपज अपनी उपज मान,शरीर नशत आपनो नाश मान,
राग अदि भाव प्रकट दुःख देन,तिन्ही को सेवत गिनत चैन.

शब्दार्थ
१.उपज-उत्पत्ति
२.नशत-मरण,नाश
३.आपनो-अपना,खुद का
४.प्रकट-दिखाई देते हैं,साफ़ प्रतीत होते हैं
५.तिन्ही -राग द्वेष भावों को
६.गिनत-मानता है
७.चैन-सुख

भावार्थ

यह जीव मिथ्यादर्शन के प्रभाव से शरीर की उत्पत्ति को अपनी(निज आत्मा स्वरुप) की उत्पत्ति मानता है,और शरीर के मरण को,शरीर की बीमारी,शरीर के रोगों को और शरीर के नाश को अपना खुद का नाश मानता है(निज आत्मा स्वरुप का नाश मानता है),आत्मा तोह अजर अमर है,लेकिन यह मिथ्यादृष्टि (हम) शरीर की जन्म तारीख को अपनी खुद की (आत्मा) की जन्म तारीख गिनता है,और मृत्यु से पहले विलाप करता है,यह भूल जाता है की शरीर के मरने से आत्मा नहीं मर जायेगी,और तरह तरह का विलाप करता है,यही अजीव तत्व का विपरीत श्रद्धान है,अब आश्रव तत्व का विपरीत श्रद्धान यह है की जो यह राग और द्वेष के जो भाव हैं यह प्रकट ही दुःख दायीं हैं,साफ़ ही दुःख देने वाले प्रतीत होते हैं,हम अपनी किसी वस्तु से राग करते हैं,फिर वेह ख़राब हो जाती है,फिर हम रोते हैं,आत्र ध्यान करते हैं,और दुखी ही होतें है,यानी की हमारा किसी चीज के प्रति राग ही दुःख देता है,एक दम वैसे ही द्वेष के भाव भी दुःख दायीं हैं,हम किसी से द्वेष करें,उसका बुरा भला सोचते हैं,और बाद में हम उसी से दोस्ती कर लेते हैं,और बेफाल्तू में दुखी ही होते हैं,इन्द्रियों को भी कष्ट में डालते हैं,लेकिन यह जानने के बाबजूद भी संसार के घात-प्रतिघात में लीन रहते हैं,और उन्ही के  सेवा में आनंद और सुख-चैन गिनते हैं,यानि की मानते हैं,यह आश्रव तत्व का विपरीत श्रद्धान है...जिनेन्द्र भगवान् राग और द्वेष से पूर्णत मुक्त हैं,इसलिए उन्हें वीतरागी बोलते हैं.

रचयिता-कविवर दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला क्लास्सेस-पुष्पा बैनाडा जी.

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक







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