अब हमने यह जाना की रावण के लंका कैसी जीती..अब हमें यह जान लेना चाहिए की यह लंका आखिर है कहाँ पे?
राक्षश द्वीप सातसौं योजन चौड़ा और सातसौं योजन लम्बा है...यह लवण समुद्र के बीच में है..लवण समुद्र में तरह-तरह के यक्ष,किन्नर पुरुष लोल-कलोल करते हैं..यक्ष अदि अनेक प्रकार के देव रहते हैं...यह एक अंतर द्वीप है..जिसके बीच में त्रिकूटाचल(शायद मैं नाम भूल रहा हूँ) पर्वत है..इस पर्वत के शिखर मेरु के सामान शोभायमान होते हैं..इस पर्वत के नीचे तीस योजन प्रमाण एक लंका नाम की नगरी है...तोह ऐसी लंका नगरी में रावण राज्य करने लगे..
एक बार रावण के यहाँ राजा सूर्यरज(बाली के पिता) और रक्षरज के यहाँ से दूत आता है की वह उनकी राजा इन्द्र के लोकपाल से राजा की रक्षा करें..रावण लोकपाल के यहाँ जाते हैं और यम लोकपाल से सूर्य-रज और रक्ष-रज को बचाते हैं..जिससे रावण का आभार वानर वंशी राजा सूर्य-रज,राजा रक्ष-रज पे बन-जाता है....राजा सूर्य रज के दो पुत्र हुए १.बाली और २.सुग्रीव ,,,राजा रक्षरज के दो पुत्र हुए १.नल और २.नील...
अब हम यह जानते हैं की किस कारण बाली राजा ने दीक्षा ली,क्या हुआ रावण की बहन चन्द्र-नख के साथ..और किस प्रकार बाली-मुनि कैलाशपर्वत को उठाते हैं,जिससे रावण का मान-मर्दन होता है..और जिन-धर्म पे श्रद्धा अटल हो जाती है.....
वास्तव में रावण ऐसे थे नहीं जैसा उन्हें मिथ्या मतों में बताया गया है..वह आगे के तीर्थंकर भी होंगे...इसलिए ऐसे महापुरुषों का पुतला जलाना बहुत गलत होगा...
एक बार रावण के यहाँ राजा सूर्यरज(बाली के पिता) और रक्षरज के यहाँ से दूत आता है की वह उनकी राजा इन्द्र के लोकपाल से राजा की रक्षा करें..रावण लोकपाल के यहाँ जाते हैं और यम लोकपाल से सूर्य-रज और रक्ष-रज को बचाते हैं..जिससे रावण का आभार वानर वंशी राजा सूर्य-रज,राजा रक्ष-रज पे बन-जाता है....राजा सूर्य रज के दो पुत्र हुए १.बाली और २.सुग्रीव ,,,राजा रक्षरज के दो पुत्र हुए १.नल और २.नील...
अब हम यह जानते हैं की किस कारण बाली राजा ने दीक्षा ली,क्या हुआ रावण की बहन चन्द्र-नख के साथ..और किस प्रकार बाली-मुनि कैलाशपर्वत को उठाते हैं,जिससे रावण का मान-मर्दन होता है..और जिन-धर्म पे श्रद्धा अटल हो जाती है.....
राजा सूर्यरज और यक्षराज रावण के द्वारा प्रदान किये हुए नगरों में राज्य करते हैं..वहां सूर्यरज,रानी चन्द्र माला के यहाँ पुत्र रत्न हुआ पुत्र का नाम बाली हुआ..देखते ही देखते बाली बड़े हो गए कैसे हैं बाली? सम्यक दृष्टी,धार्मिक,विनय वान..ऐसे बड़े कम मनुष्य हैं जो ढाईद्वीप के सारे जिनालयों के दर्शन करते...बाली तीनों काल जम्बुद्वीप के जिन मंदिर के दर्शन करते..कैसे हैं जिनमन्दिर...सम्यक दर्शन की प्राप्ति के कारण..इस प्रकार राजा सूर्यरज के दुसरे पुत्र हुए सुग्रीव..कैसे हैं सुग्रीव-धर्मवान,विनय वान...और तीसरी पुत्री हुई श्रीप्रभा .सूर्यरज राजा के भाई रक्षरज के भी दो पुत्र हुए नल और नील..दोनों राजाओ के पुत्र अत्यंत गुणवान..देखते ही देखते यौवनावस्था आ गयी पुत्रों की..राजा सूर्यरज इस प्रकार यौवन को देखकर और इन्द्रिय सुखों को क्षणिक जानकार भोगों से विरक्त हुए...और मुनि हुए ..कैसे हैं सूर्यरज मुनि ?तपवान-क्षमा के धारी,मोक्ष के अविलाशी,विषय कषायों से विरक्त...अब राज्य का भार बाली संभाल रहे थे..रजा बाली की कई रानियाँ हुईं..उनमें से प्रमुख ध्रुवा नाम की रानी हुईं इधर रावण की बहन चंद्रनखा को रावण की अनुपस्तिथि में खरदूषण उठा ले गया..चंद्रनखा की बात सुन कुम्भकरण वगरह लड़ने जा रहे थे लेकिन खरदूषण की शक्ति को देख रुक गए जब रावण आये तोह बहन के हरण की खबर सुन क्रोधित हुआ..और अकेली खडग लेकर लड़ने जाने लगा तब मंदोदरी ने हाथ जोड़कर विनती की खरदूषण १४००० विद्या धरों का स्वामी है..और हजारों विद्या जानता है.,पाताल लंका में चंद्रोदर विद्याधर को निकालकर राजा सूर्यरज के मुनि बनने के बाद रह रहा है .और तोह और उसने आपकी बहन को उठाया है.. .जिससे उसका विवाह और किसे से नहीं होगा..और खरदूषण को मारने से विधवा हो जायेगी...और आपको दोष लगेगा मंदोदरी की बातें सुन रावण शांत हुए और कहा की वह वह बहन को विधवा नहीं देख सकते...इसलिए उसे क्षमा कर देते हैं.
चंद्रोदर विद्याधर विद्याधर कर्म योग से मृत्यु को प्राप्त होता है...उसकी पत्नी और पुत्र जंगले में जीवन व्यतीत करते हैं...पत्नी अनुराधा..का पुत्र होता है उसका नाम विराधित होता है क्योंकि जब से विराधित हुआ है जब तक उन्हें कहीं भी विनय नहीं मिली,कहीं भी मान-सम्मान नहीं मिला..जहाँ जहाँ जाता अविनय को ही सहन करता..और अपमान ही सहता ..इसलिए उसका नाम विराधित रख दिया गया.
राजा बलि बड़े सुख से राज कर रहे होते हैं..लेकिन वह रावण की आज्ञा के अनुरूप नहीं चलते हैं..जिसे जानकार रावण बलि के पास दूत भेजते हैं..और कहलवाते हैं..की यम से आपके पिता सूर्यरज और यक्षरज को हमने ही बचाया था..इसलिए आपका हमारे पास एहसान है...आपके पिताजी हमारा बड़ा आदर करते थे..इसलिए आपका हमारी बात नहीं मानना अनुरूप नहीं होगा...इसलिए आकर हमें प्रणाम करें.और बहन श्रीप्रभा का विवाह हमसे kardein...बाली को रावण की सारी बातें सही लगीं सिर्फ प्रणाम वाली..क्योंकि वाली सच्चे देव-शास्त्र गुरु के अलावा किसी को प्रणाम नहीं करते थे..फिर आगे दूत कहता है की या तोह प्रणाम करो..या धनुष उठाओ..या तोह सर झुकाओ या युद्ध के लिए तैयार हो जायो..बाली दूत से मनाह कर देते हैं...दूत सारी बात रावण को बता देता है...रावण क्रोधित होता है और युद्ध के लिए वार करने आ जाते हैं....तब बलि युद्ध पे जाने से पहले सोचते हैं की यह सारी राज्य सम्पदा क्षणिक है..मंत्री कहते हैं की इस से बढ़िया प्रणाम कर लो..रावण अत्यंत शक्तिशाली हैं..लेकिन बाली कहते हैं..की इस राज्य सम्पदा के लिए क्षणिक इन्द्रिय भोगों के लिए क्या लडूं..इन्द्रिय भोग तोह प्रकट रूप से विष हैं..इनको पुष्ट करके यह जीव नरक ही जाता है..ऐसे भोगों के लिए क्या लड़ना..और ऐसे दुखों से मुक्ति सिर्फ जिनेन्द्र भगवन के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है..इसलिए संसार से विरक्त हो कर बाली मुनि बन जाते हैं और सुग्रीव को राज्य देकर कह गए की जो करना है करो..बाली मुनि बन जाते हैं..और सुग्रीव श्रीप्रभा का विवाह रावण से करते हैं....कैसे हैं बाली मुनि महा तपस्वी...मोक्ष के अभिलाषी..इस प्रकार निरंतर तरह-तरह की विध्यायों को पाया..और निरंतर गुण-स्थान बढ़ाते रहे.
एक बार रावण नित्यपुर के राजा नित्यापुर की पुत्री से विवाह करके लौट रहे थे...पुष्पक विमान से...तभी कैलाश पर्वत के ऊपर से विमान निकल रहा था..तभी विमान रुक गया..कैसा है विमान मन की गति से भी तेज..रावण आश्चर्य चकित हुए..मंत्री मारीच से पूछते हैं....की यह विमान कैसे रुक गया..तब मारीच बताते हैं की यहाँ पे कायोत्सर्ग मुद्रा में दिगंबर मुद्रा में तप कर रहे हैं...इसलिए आप नीचे उतारकर उन्हें प्रणाम करें..रावण नीचे उतारते हैं..और कैलाश पर्वत पर जाकर देखते हैं..देखते हैं की नग्न शांत मुद्रा में मुनि-तप कर रहे हैं..मुनि बाली मुनि थे...रावण पूर्व बातों का स्मरण करके कहते हैं की मुनि व्रत के बाद भी क्षमा नहीं किया..अभी भी विमान रोक दिया...वीतराग मुद्रा को धारण करके ऐसा क्यों कर रहे हो..बाली मुनि समता भाव रखते हैं..रावण क्रोधित होकर पातळ में धस जाते हैं..और विद्या का प्रयोग करते हैं...विद्या के स्मरण मात्र से विद्याओं के देव प्रकट हो जाते हैं..और इस प्रकार पूरे कैलाश पर्वत को हिलाने की सोचते हैं..पूरा कैलाश कम्पायमान हो जाता है..पशुपक्षी घबराते हैं..देव भी आश्चर्य चकित हो जाते हैं ..बाली मुनि समता भाव रखते हैं..लेकिन इस बात का चिंतन करते हैं की रावण इस पहाड़ को हिला रहे हैं..इस पहाड़ पे कितने भारत चक्रवती के द्वारा बनाये हुए जिन मंदिर हैं..जहाँ देव और मनुष्य दोनों दर्शन करने जाते हैं...इस बात से बाली मुनि जरा सा अंगूठा हिला देते हैं...जिससे पहाड़ वापिस अपनी जगह पर आ जाता है..जिससे रावण के जंघाएँ क्षिल जाती हैं..और पसीना पसीना हो जाए हैं..देव पुष्प वर्षा करते हैं
रावण विशुद्ध भावों से बाली मुनि की स्तुति करते हैं कहते हैं की मैंने आपको गलत समझा ..धन्य हैं आप जो देव-शास्त्र-गुरु के अलावा किसी को प्रणाम नहीं करते हैं..आप पूजनीय हैं स्तुति के कारण है..मैं पापी मानी आप में दोष निकालने लगा..आप ने तोह कितनी सारी विध्यायों को मुनि मुद्रा में ऐसे ही प्राप्त कर लिया..मैंने जिन धर्म को इतना जाना लेकिन कभी यह नहीं सोचा...इस तरह से तरह तरह से बाली मुनि की स्तुति करते हैं..फिर कैलाश मंदिर स्थित जिनालयों के दर्शन करते हैं...और वहां शरीर से नस को तार बनाकर बीणा बजाते हैं और स्तुति करते हैं..तरह तरह से स्तुति करते है न्केहते हैं आप ही मोह के नाशक हैं...आप ही विषय भोगों से मुक्ति दिलाने वाले हैं..आप ही परम पूजनीय हैं..आपको सब नमस्कार करते हैं..और आप किसी को नमस्कार नहीं करते हैं..आप के जैसे गुण अन्य किसी में नहीं है.मैं ऋषभदेव अदि चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करता हूँ..जो हो चुके हैं और आंगे होंगे..उनको नमस्कार करता हूँ .तरह-तरह से विनती करते हैं..आपने अष्ट कर्मों का नाश किया हुआ है..आप हर प्रकार के दुखों से रहित हैं..इस प्रकार से स्तुति करते हैं..की धरेंद्र का आसान कम्पायमान हो जाता है..और प्रकट हो जाते हैं और रावण की कहते हैं की धन्य हैं आप और आप की जिन भक्ति..मैं तुझसे प्रसन्न हूँ मांग क्या मांगेगा?..रावण कहते हैं की जिन भक्ति से ज्यादा और क्या है इस संसार में..यह ही आकुलता रहित सुख को देने वाली है..और यह ही अनंत सुख को प्रदान कराती है..और मोक्ष से ज्यादा सुखदायी इस संसार में कुछ भी नहीं है..इसलिए मुझे कुछ नहीं चाहिए..धर्नेंद्र कहते हैं वह तोह तुने सही कहा लेकिन मैं आया हूँ तोह कुछ मांग रावण कुछ नहीं मांगते हैं..लेकिन धर्नेंद्र उन्हें ऐसी विद्या देते हैं जिससे रावण सर्व शत्रुओं को जीत सकते हैं..सब पे विजयी होते हैं.
वापिस आकर वह बाली मुनि के गुण गाकर वापिस चले जाते हैं...बाली मुनि भी अपने द्वारा की गयी शल्य का प्रायश्चित करते हैं..और ध्यान में लीं हो जाते हैं..ध्यान ही ध्यान में चारो घटिया फिर चारो अघतियाँ कर्मों को नाश करके निराकुल आनंद सुख को प्राप्त होते हैं..और अनंत दर्शन-ज्ञान-चरित्र-बल को प्राप्त करते हैं..
अगर मुझसे श्री बाली मुनि का निरूपण लिखने में कोई गलती हो...शब्द-अर्थ सम्बन्धी गलती हो..या और कोई गलती हो तोह क्षमा करें
यह बात पधार हमने यह बहुत अच्छे से जान लिया की रावण का पुतला जलाना कितना गलत है...और कितने पाप-बंध का कारण है......
यह लिखने का आधार शास्त्र श्री रविसेनाचार्य विरचित श्री पदम् पुराण है..शास्त्र के बात को बहुत ही कम शब्दों में मैंने लिखा है.
वास्तव में रावण ऐसे थे नहीं जैसा उन्हें मिथ्या मतों में बताया गया है..वह आगे के तीर्थंकर भी होंगे...इसलिए ऐसे महापुरुषों का पुतला जलाना बहुत गलत होगा...
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