६ ढाला
पहली ढाल
निगोद के दुःख और स्थावर पर्याय का वर्णन
एक श्वाश में अथदस बार,जन्म्यो मरयो,सहयो दुःख भार
निकसि भूमि जल पावक भयो,पवन प्रत्येक वनस्पति थयो
शब्दार्थ
१.श्वाश -एक सांस में
२.अथदस-१८ बार
३.जन्म्यो-जन्मा
४.मरयो-मरा
५.निकसि-वहां से निकलकर,या उचट कर.
६.भूमि-भूमि कायिक जीव
७.जल-जल्कायिक जीव
८.पावक-अग्नि कायिक जीव
९.भयो-हुआ
१०.पवन-वायु कायिक
११.प्रत्येक वनस्पति-वनस्पति कायिक जीव का एक प्रकार.
भावार्थ
यह जीव (हम) जब निगोदिया जी पर्याय में था,तब एक श्वास में १८ बार मरा और १८ बार मरा,४८ मिनट में ३७७३ श्वाश होती हैं,यानि की यह जीव ६७९१४ बार मरा और ६७९१४ बार जिया,हम सब जानते हैं कि मरने और जीने कि कितनी वेदना होती है,और यह जीव इतनी बार जन्मा और मरा,किसी कषाय कि मंदता से जब यह जीव निगोद से उचट कर (निगोदिया जीव उचट कर ही अपनी निगोदियाँ पर्याय से बाहर आता है),बहार आया,उसके बाद भी उसे भूमि कायिक जीव,अग्नि कायिक,जल कायिक जीव,वायु कायिक जीव और प्रत्येक वनस्पति होना पड़ा,वनस्पति कायिक दो प्रकार के होते हैं-१.साधारण वनस्पति(यह निगोदिया जीव होतें हैं,और इन्हें खाने का बहुत दोष है),२.प्रत्येक वनस्पति (जो जीव ताज़ी खाद्य वस्तुओं में होतें हैं जैसे कि आम,अमरुद,यानी कि सारे भक्ष्य पदार्थ,इनको खाने का दोष नहीं है,क्योंकि कितना भी कर लो बच नहीं सकते हो),तोह यह जीव(हम) वनस्पति कायिक जीव भी हुआ,और अनेक दुखों को भोगा. हम भी इन्ही योनियों में भटक कर आयें हैं,हम पहले निगोदिया वायु कायिक,जल कायिक जीव ही थे,हमें इतने बड़े पुण्य के उदय से यह मनुष्य योनी मिली है,जो कि सिर्फ सातिशय पुण्य कि वजह से है,और हम सबको इतने मुश्किल से मनुष्य योनी मिली है,हम से ऐसे ही बर्बाद न करें
रचयिता-पंडित श्री दौलत राम जी
रचयिता-पंडित श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-चेह्धाला क्लास्सेस.
जा वाणी के ज्ञान से,सूझे लोकालोक
सो वाणी मस्तक नमो,सदा देत हूँ धोक.
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