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Sunday, May 27, 2012

शरीर तोह स्वाभाव से अपवित्र है,लेकिन रत्नत्रय को धारण करने से गुणों से प्रीती का हो,न की शारीर से घ्रणा का होना।..जिसके यह गुण होता है उसके निर्व -चिकित्सा अंग होता है।
सम्यक -दृष्टी जीव वास्तु के स्वाभाव को जानता है ,वह जानता है की शारीर तोह स्वाभाव से अपवित्र है.इसमें कौन से आश्चर्य की बात है....इस शारीर में से निरंतर ९ द्वारों से मेल निकलता रहता है,पल-रुधिर,हड्डी,मांस..जैसे अपवित्र वस्तुओं की थैली है..इसको समुद्र के पानी से साफ़ करो..तोह भी शुद्द नहीं होगी...सभी मनुष्यों के शारीर में यह बात है...लेकिन

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