६ ढाला
दूसरी ढाल
जीव तत्व का सच्चा श्रद्धान और विपरीत श्रद्धान
नभ,पुद्गल,धर्म,अधर्म,काल,इनतैं न्यारी है जीव चाल
ताको न जान विपरीत मान,करि करै देह में निज पिछान.
शब्दार्थ
१.नभ-आकाश द्रव्य
२.इनतैं -इन पांचो से
३.ताको-इस बात को
४.विपरीत-उल्टा
५.देह-शरीर
६.पिछान-पहचान
भावार्थ
यह जीव पुद्गल,नभ,धर्म,अधर्म और काल से त्रिकाल भिन्न है,यानि की इनकी वजह से जीव द्रव्य का स्वाभाव नहीं बदलता है,जीव की चाल इन पाँचों से अलग है,जैसे धर्म का काम जीव और पुद्गल को चलाना है,अधर्म का काम जीव और पुद्गल को स्थिर रखना है,काल द्रव्य भी निश्चय और व्यवहार दो प्रकार का होता है,लेकिन जीव द्रव्य का स्वाभाव इन से त्रिकाल भिन्न है,लेकिन यह अज्ञानी जीव (हम) इस बात को नहीं जानते हैं,और जानते हुए भी अनजाने हो जातें हैं और विपरीत मान्यता करने लगते हैं,और अपनी पहचान इस पुद्गल शरीर से करते हैं..हम खुद को शरीर मानते हैं,लेकिन जीव तत्व का सच्चा श्रद्धान यह है की मैं जीव हों,और मेरा स्वाभाव जानना और देखना है,मैं पर द्रव्यों से भिन्न हूँ.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-६ ढाला-श्रीमती पुष्पा बैनाडा जी.
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमों सदा देत हूँ ढोक.
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