Wednesday, July 13, 2011

6 dhaala-paanchvi dhaal-bodhi durlabh bhavna ka lakshan

६ ढाला

पांचवी ढाल

बोधि दुर्लभ भावना का लक्षण


अंतिम ग्रीवकलों की हद,पायो अनंत बिरियाँ पद

पर सम्यक ज्ञान न लाधो,दुर्लभ निज में मुनि साधो.


शब्दार्थ

१.अंतिम ग्रीवकलों-नवमे ग्रैवेयक

२.हद-तक की सीमा तक

३.अनंत-बहुत बार

४.बिरियाँ-अनेकों बार

५.पद-अहमिन्द्रों,अदि के पद पाए

६.पर-लेकिन

७.सम्यक ज्ञान-सच्चा ज्ञान या भेद विज्ञान

८.लाधो-नहीं प्राप्त किया

९.दुर्लभ-बहुत दुर्लभ है

१०.निज में-आत्मा में ही

११.मुनि-मुनियों ने सच्चे गुरुओं ने सकल चरित्र को धारण करने वाले मुनियों ने

१२.साधो-साधा है,खोजा है.


भावार्थ

इस जीव ने नवमें ग्रैवेयक के विमानों तक ..जो सोलह स्वर्गों से भी ऊपर हैं..वहां भी पर्याय ली..और एक बार नहीं अनंत बार यहाँ पर्याय ले कर अह्मिन्द्र,अदि देवों तक का पद पाया...लेकिन जब भी आत्मा के ज्ञान के बिना इस जीव ने सुख लेश मात्र नहीं पायो..नरक,त्रियंच मनुष्य की योनियों में दुःख की बात करें तोह चलता है..लेकिन स्वर्गों में भी यह जीव दुखी रहा..और वहां भी लेश मात्र भी सुख ग्रहण नहीं किया...जो की सम्यक ज्ञान के अभाव की वजह से था...और ऐसे दुर्लभ सम्यक ज्ञान को मुनिराज ने अपने ही आत्मा स्वरुप में साधा हुआ..कहीं बाहार से नहीं खोजा है..इसलिए संसार में सबकुछ सुलभ है,घर,परिवार,कुटुंब,उत्तम कुल, विद्या, धन ,पैसा,बुद्धि,होसियारी...यह सब सम्यक ज्ञान की दुर्लभता के आगे सुलभ ही हैं..और यह सम्यक ज्ञान अपार सुख को प्राप्त करने वाला है .आकुलता रहित सुख को प्राप्त करता है.कर्मों का जोड़ इस सम्यक ज्ञान रुपी छैनी के द्वारा ही तोडा जाता है.


रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा कृत

लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)


जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक

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