Monday, June 20, 2011

6 dhaala-chauthi dhaal-gyani aur agyani ki karm nirjara mein antar

६ ढाला

चौथी ढाल
ज्ञानी और अज्ञानी की कर्म निर्जरा में अंतर

कोटि जन्म तप तपैं,ज्ञान बिन कर्म झरैं जे,
ज्ञानी के छिनमाहीं,त्रिगुप्तितैं सहज टरैं ते
मुनि व्रत धार अनंत बार ग्रीवक उपजायो
पै निज आतम ज्ञान बिना,सुख लेश न पायो


शब्दार्थ
१.कोटि-करोड़ों
२.ज्ञान बिन-ज्ञान के बिना
३.जे-जितने
४. छिनमाहि-एक क्षण में
५.त्रिगुप्तितैं-मन वचन के की प्रवर्ती को वश में करके
६.सहज-बड़ी सरलता से
७.टरैं-नष्ट हो जाते हैं
८.ते-उतने
९.ग्रीवक-नौवे ग्रैवेयक तक
१०.पै-तोह भी
११.लेश-जरा सा भी
१२.पायो-नहीं पाया


भावार्थ

जितने कर्मों की निर्जरा कोई जीव बिना ज्ञान के करोड़ों जन्मों तक तपस्या करने के बाद कर पायेगा...उतने कर्मों की निर्जरा तोह ज्ञानी जीव मन-वचन काय की प्रवर्ती को वश में करके बड़ी सरलता से एक क्षण में ही कर देगा....इसलिए ज्ञान बहुत सुख दाई है,इस जीव ने मुनि व्रत को अनेकों बार धारण तोह कर लिए..लेकिन आत्म-स्वरुप का ज्ञान ग्रहण नहीं किया जिसके कारण,मुनि व्रत के फल स्वरुप नवमें ग्रैवेयकों के देवों में तोह उत्पन्न  हो गया..लेकिन निज आत्मा स्वरुप के ज्ञान के बिना इस जीव ने(हमने) जरा सा भी सुख नहीं पाया.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी.
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक,श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक

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