६ ढाला
चौथी ढाल
तत्व अभ्यास की प्रेरणा,ज्ञान के तीन दोष,मनुष्य पर्याय,सुकुल और जिनवाणी की दुर्लभता
तातैं जिनवर कथित तत्व-अभ्यास करीजै
संशय विभ्रम मोह त्याग आपों लाख लीजै
यह मानुष पर्याय सुकुल सुनिवों जिनवाणी
इही विधि गए न मिले,सुमणि ज्यों उदधि समानी
शब्दार्थ
१.तातैं-इसलिए
२.कथित-कहे हुए
३.तत्व-सात-तत्वों का
४.करीजै-करिए
५.संशय-शंका
६.विभ्रम-विपरीत मान्यता
७.मोह-कुछ भी,कैसे भी
८.आपो-आत्मा स्वरुप
९.लाख-पहचान लीजिये,जान लीजिये
१०.मानुष-यह मनुह्स्य
११.सुनिवों-जिनवाणी सुनने का मौका
१२.इही विधि-ऐसा सुयोग
१३.गए-अगर चला गया
१४.न मिले-नहीं मिलेगा
१५.सुमणि-उत्तम रत्ना
१६.ज्यों-के सामान
१७.उदधि-समुद्र में
१८.समानी-डूब गयी हो
भावार्थ
इस जीव ने संसार में कही भी सुख नहीं पाया और जन्म मरण के दुःख को ज्ञान के आभास में भोगता रहा ..इसलिए सुखी रहने के लिए श्री जिनदेव द्वारा कहे हुए सातों तत्वों का सच्चा श्रद्धां और निरंतर अभ्यास करना चाहिए...और ज्ञान के तीन दोष १.संशय-शंका(मैं शरीर हूँ या आत्मा ) २.विभ्रम-विपरीत मान्यता(मैं शरीर हूँ) और ३.मोह-कुछ भी..(मैं दोनों हूँ,क्या फर्क है)..इन तीनो दोषों को त्याग कर के अपने आत्मा स्वरुप को पहचानना चाहिए...यह मनुष्य पर्याय,सुकुल (जैन कुल,उत्तम श्रावक कुल)..और जिनवाणी सुनने का दुर्लभ से दुर्लभ अवसर इतनी मुश्किल से मिला है..इसका पूरा प्रयोग करना चाहिए..क्योंकि अगर यह सुयोग हाथ से निकल गया तोह फिर उसी प्रकार नहीं मिलेगा..जिस प्रकार समुद्र में उत्तम रत्ना के डूब जाने के बाद वह रत्ना वापिस नहीं मिलता है..उसी प्रकार यह मनुष्य योनी,सुकुल और जिनवाणी सुनने का मौका वापिस नहीं मिलता है...और बड़ी दुर्लभता से मिलता है.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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