प्रभु पतित पावन (दर्शन स्तुति) का हिंदी अनुवाद सुरेन्द्र शाह जी द्वारा.
1 श्लोक का अर्थ
प्रभु पतित पावन में अपावन , चरण आयो शरण जी ।
यों विरद
आप निहार स्वामी,मेट जामन मरण जी ॥
...अर्थ- हे प्रभु
आप अपवित्र को पवित्र करने वाले हो
मै आपकि चरण-शरण मे आया हु
आप अपनी किर्ती
को निहारकर मेरी विनती को सुनकर व अपने दयालु स्वभाव को देखकर मेरे जन्म मरण को
नष्ट करो
2 री कडी का अर्थ
तुम ना पिछान्या अन्य मान्या , देव विविध प्रकार जी
।
या बुध्दि सेती निज न जाण्यो , भ्रम गिन्यो हितकार जी ॥
...अर्थ;- हे भगवान
मैने आज तक आपको पहचाना नही
अन्य रागी-व्देषी देवी देवताओ कि पुजा करता
रहा
(मिथ्या देव देवता कि पुजा करना पाप है और संसार मे भ्रमण करने का यह भी 1
कारण है
3 कडी का अर्थ
भव विकंट वन मेँ कर्म बैरी,ज्ञान धन मेरो हरयो ।
तव इष्ट
भुल्यो भ्रष्ट होय,
अनिष्ट गती धरतो फिरयो ॥
...अर्थ;- इस संसार
रुपी जंगल (वन)मेंकर्म रुपी शत्रु ने मेरा ज्ञान रुपी धन चुरा लिया है
इस कारण
मै इष्ट को भुलकर भ्रष्ट हुवा (सही मार्ग से हट गया ) चारो गती (मनुष्य तिर्यच नरक
स्वर्ग) मे भ्रमण करता रहा
4 कडी का अर्थ
घन घडी यों धन दिवस यों ही , धन जन्म मेरो भयो ।
अब भाग मेरो उदय आयो ,दरश प्रभुजी को लख लियो ॥
अर्थ ;-धन्य है आज का यह समय , धन्य है आज का यह दिन ,
आज मेरा जन्म धन्य हो गया , सफल हो गया ।
आज मेरे भाग्य का उदय हुआ जो मुझे आपका दर्शन मिला
5 कडी का अर्थ
छवि वितरागी नग्न मुद्रा , द्रुष्टि नासा पे धरैं ।
वसु प्रातिहार्य अनंत गुण जुत , कोटि रवि छवि को हरैं ॥
अर्थ;- हे प्रभु आपकि छवि वितरागी है , आपकि मुद्रा नग्न है , आपकी नजर नासाग्रा है
...आप आठ प्रातिहार्य और अनंत गुणों से युक्त है जो कि करोडों सुर्यो से भी तेजस्वी है
6 कडी अर्थ
मिट गयो तिमिर मिथ्यात्व मेरो , उदय रवि आत्म भयो ।
मो उर हर्ष ऐसो भयो , मणु रंक चिंतामणि लयो ॥
अर्थ:- हे भगवान आपके दर्शन से मेरा मिथ्यात्व रुपी अंधकार नष्ट हुवा और सम्यक्त्व रुपी सुर्य का आत्मा मे उदय हुवा
आपके दर्शन को पाकर मेरे ह्रदय मे इतना हर्ष हुवा कि मानो किसी निर्धन को चिंतामणी रत्न कि प्राप्ती हुई हो
7 कडी का अर्थ
मै हाथ जोड नवाऊ मस्तक,
विनऊ तव चरण जी ।
सर्वोत्क्रुष्ट त्रिलोकपती जिन, सुनहु तारन तरन जी॥
अर्थ - हे प्रभु मै दोनो हाथों को जोडकर मस्तक झुकाकर विनय से आपके चरणों मे नमस्कार करता हुँ
हे भगवान आप सब से उत्तम वितरागी हो
तीन लोक के नाथ हो , तारने वाले तारणहार हो मेरी विनंती सुनो
8 वे कडी का अर्थ
जाचुँ नही सुरवास पुनिं,नर राज परिजन साथ जी ।
बुध जाचहुँ तव भक्ति , भव भव दिजिए शिवनाथ जी ॥
अर्थ-हे भगवान मै आपके दर्शन का फल स्वर्ग सुख ,मनुष्य मे माता पिता परिवार धन कुछ भी नही चाहता
बुधजन कहते है कि मै तो भव भव मे आपकी भक्ती चाहता हु
यह पूरा अनुवाद सुरेन्द्र शाह जी द्वारा किया हुआ है....मैंने तोह एक जगह इकठ्ठा करके पोस्ट किया है.
Thank you for this post...
ReplyDeleteVery informative meaning shared. I will also share it with many people.
ReplyDeleteThank you..i want to know the meaning of this ..in english..
ReplyDeleteThanks you ...got this after long time
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