Wednesday, June 22, 2011

6 dhaala-chauthi dhaal-samyak gyan ka mahatva,gyan ka kaaran

६ ढाला

चौथी ढाल

सम्यक ज्ञान का महत्व और ज्ञान का महत्व

धन समाज,गज,बाज राज तोह काज न आवे
ज्ञान आपको रूप लहै,फिर अचल लहावै
तास ज्ञान को कारण स्व पर विवेक बखानो
कोटि उपाय बनाय भव्य ताको उर आनो

शब्दार्थ
१.धन-दौलत,रुपया,पैसा,भोग,विलास.
२.समाज-परिवारी जन,दोस्त,माता,पिता,पडौसी ,sharir
३.गज-हाथी,वहान
४.बाज-घोड़े,नौकर अदि
५.राज-राज्य,सम्पदा,महल,मकान
६.काज-काम नहीं आते हैं
७.लहै-है
८.अचल-अटल हो जाता है
९.तास-उस
१०.स्व-पर--आत्मा और वस्तुओं की पहचान
११.भेद--भेद विज्ञान
१२.कोटि-करोड़ों
१३.उपाय-तरीकों से
१४.ताको-उस भेद विज्ञान को
१५.उर-हृदय
१६.आनो-लाओ,ग्रहण करो

भावार्थ
यह जितना भी रुपया,पैसा,दौलत,परिवारी जन,दोस्त,माता,पिता,भाई,बहन,पडोसी,हाथी,घोड़े,राज्य सम्पदा और अनन्य वैभव कुछ भी काम नहीं आता है..यह दुःख से नहीं बचा सकते हैं...या ऐसा नहीं हो सकता है की इनको प्राप्त करने के बाद दुःख न आये,या यह हमेशा रहे,या छोड़ कर-के नहीं जाएँ,या उसके बाद आकुलता न हो,किसी प्रकार का दुःख नहीं आये...लेकिन यह बात बड़े गौर की है की यह सब चीजें ही हमारे लिए दुःख की कारणभूत हैं..और इन्ही के प्रति राग-द्वेष रखने से ही दुःख आता है...अगर सुख इन चीजों में होता..तोह बड़े बड़े अरबपतियों का देह वासन नहीं होता..और वह हमेशा सुखी नहीं रहते..इस जीव ने अनेकों बार नवमें ग्रैवेयक के देवों में जन्म  लिया..लेकिन बिना निज आत्मा ज्ञान के दुखी ही रहा..लेश मात्र भी सुख नहीं रहा..वैसे भी बड़े बड़े चक्रवती सम्राट आदियों को भी देह त्याग के सब यहीं का यहीं छोड़ कर जाना पड़ा..तोह हम क्या हैं...यानी की यह भौतिक वस्तुओं कभी काम नहीं आती हैं....लेकिन जो ज्ञान है..वह तोह आत्मा का निज स्वाभाव है....यह तोह अटल है..यह कभी जाता नहीं है...आत्मा का स्वाभाव ही तोह है दर्शन और ज्ञान ..और सम्यक ज्ञान के बाद यह ज्ञान अटल हो जाता है....इस सम्यक ज्ञान का कारण स्व-पर का विवेक बताया गया..यानि की भेद विज्ञान,आत्मा और शरीर का भेद विज्ञान बताया है...और यह भेद विज्ञान और सम्यक ज्ञान के अलावा संसार में कोई भी वस्तु सुख दाई नहीं है...इसलिए सुख के इच्छुक..निराकुल आनंद सुख के इच्छुक जीवों को कोटि-कोटि उपाय करके भी इस भेद विज्ञान को ह्रदय में लाना चाहिए.

रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय (६ ढाला,संपादक पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.



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