६ ढाला
चौथी ढाल
सम्यक ज्ञान का स्वरुप
सम्यक श्रद्धा धारी पुनः सेवहु सम्यक ज्ञान
स्व पर अर्थ बहु-धर्म जुत जो प्रगटावान भान.
शब्दार्थ
१.सम्यक-श्रद्धा--सम्यक दर्शन
२.पुनः-पीछे,फिर उसके बाद
३.सेवहूँ-ग्रहण करो
४.सम्यक ज्ञान-सच्चा ज्ञान
५.स्व-निज आत्मा
६.पर-पर पदार्थ जैसे शरीर अदि
७.बहु धर्म-अन्केकांत धर्मात्मक
८.जुट-सहित
९.प्रगटावान-प्रगट करता है
१०.भान-सूर्य के सामान
भावार्थ
चौथी ढाल सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र के ऊपर है...सम्यक दर्शन करने के बाद ही सम्यक ज्ञान को धारण करना चाहिए...क्योंकि सच्चा ज्ञान..जब तक सच्ची श्रद्धा नहीं होगी..तब तक सच्चा नहीं हो पायेगा..इसलिए पहले सम्यक ज्ञान को धारण करें..और करना चाहिए...सम्यक ज्ञान वह ज्ञान है जो आत्मा और पर पदार्थों को उनके अनेक-गुणों के साथ,अनेक धर्मों के साथ जो सूर्य के सामान प्रगट करता है..वह सम्यक ज्ञान है.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक.पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नामों सदा देत हूँ ढोक.
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