६ ढाला
चौथी ढाल
सामयिक,प्रोषादोपवास,भोगोपभोग परिमाण,अतिथि संबिभाग अदि शिक्षा व्रत
धर उर समता भाव,सदा सामयिक करिए
पर्व चतुष्टय माहीं,पाप तज प्रोषद धरिये
भोग और उपभोग नियम करि ममत निवारे
मुनि को भोजन देय फेर निज करहि आहारे.
शब्दार्थ
१.धर उर-मन में धर के
२.सदा-हमेशा
३.करिए-करना चाहिए
४.चतुष्टय-अष्टमी और चतुर्दशी को
५.माहीं-में
६.तज-त्याग कर
७.धरिये-धारण करे
८.नियम करी-परिमाण बना के
९.करि-करके
१०.निवारे-त्याग करे
११,भोजन-आहार
१२.देय-देने के बाद
१३.फेर-फिर उसके बाद
१४.करहि-करना
भावार्थ
चार शिक्षा व्रतसामयिक व्रत को पालने वाला श्रावक हमेशा समता भाव से रहेगा,यानि की सुख और दुःख की घड़ियों में एक जैसा व्यवहार करेगा,और भुत की आपबीती,अच्छे,बुरी यादें और भविष्य के विकल्प नहीं बनाएगा....और हर दिन ४८ मिनट संधि काल के समय सामयिक करेगा.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
प्रोषादोपवास व्रत को पालने वाला श्रावक महीने की दो अष्टमी और दो चौदस वाले दिन...व्रत रखेगा..और कोई भी ऐसा काम नहीं करेगा जिसमें पाप का बंध हो...यानि की पाप को ताज कर प्रोषद रखेगा
भोगोपभोग परिमाण व्रत पालने वाला श्रावक अपने भोगने की चीजें,न भोगने की चीजों का परिमाण बना लेगा,परिग्रह प्रमाण में जीव अपनी एक सीमा बनता है...लेकिन भोगोपभोग परिमाण व्रत में उस सीमा को और कम कर लेता है..और बाकि बची हुई चीजों से मोह-ममता का त्याग कर देता है.
अतिथि सम्भिभाग व्रत को पालने वाला जीव किन्ही मुनिराज,आर्यिका, ऐलक जी,क्षुल्लिका जी,क्षुल्लक जी.या किन्ही सुपात्र को भोजन खिलाकर खुद भोजन करेगा...जब तक वह जीव इनमें से किन्ही को भोजन न दे दे तब तक कुछ नहीं खायेगा.
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