६ ढाला
छठी ढाल
असीम आनंद-और केवली अवस्था
यों चिंत्य निज में थिर भये तिन अकथ आनंद भयो
सो इन्द्र नाग-नरेन्द्र व अह्मिन्द्र को नहीं कहो
तबही शुक्लध्यानाग्नीकरी चऊ घाति विधि कानन दह्यो
सब लख्यो केवल ज्ञानकरि,भविलोक को शिव-मग कह्यो
शब्दार्थ
१.यों-इस प्रकार से
२.चिंत्य-चिंतन करते हुए
३.निज में-आत्मा स्वाभाव में
४.थिर भये-थिर हो जाते हैं..ध्यान करते हैं
४.थिर भये-थिर हो जाते हैं..ध्यान करते हैं
५.तिन-उन्हें
६.अकथ-अकथनीय
७.आनंद भयो-आनंद होता है
८.सो-वैसा आनंद
९.इन्द्र-नाग-नरेन्द्र-सौधर्म इन्द्र,नागेन्द्र और राजा-महाराजा चक्रवती आदियों को भी
१०.अह्मिन्द्र-स्वर्ग के ऊपर के देव
११.को नहीं कह्यो-उनको भी नहीं होता है
१२.तबहि-उसी समय
१३.शुक्लध्यानाग्नीकरि-शुक्ल ध्यान रुपी अग्नि से
१७.चऊ घाति विधि-चारो घतिया कर्म
१८.कानन-कर्म
१९.नाश-ख़त्म हो जाते हैं
२०.सब-सब कुछ
२१.लख्यो केवल ज्ञानकरी-केवल ज्ञान के माध्यम से
२२.भविलोक को-भव्य जीवों को
२३.शिव मग कह्यो-भव्य जीवों को मोक्ष मार्ग का उपदेश देते हैं
भावार्थ
पिछले श्लोक में बताये गए आत्मा स्वरुप का चिंतन KARTE HAIN TOH UNHEIN VAH AKATHNIYA...SHABDON के द्वारा न बताया जा सकने वाला आनंद होता है...वैसा आनंद न ही इन्द्र..न नागेन्द्र..न नरेन्द्र,न चक्रवती यहाँ तक की अह्मिन्द्रों को भी नहीं आता है..तब ही शुक्ल-ध्यान रुपी अग्नि के माध्यम से चारो घातिया कर्मों का नाश कर देते HAIN..और केवल ज्ञान के माध्यम से सब कुछ एक समय जन जाते HAIN...सकल द्रव्य के अनंत गुण और अनंत परजाय HAIN..और इन सब को एक ही समय में..१ सेकंड के लाखवे हिस्से में जान जाते HAIN...और भव्य जीवों को मोक्ष मार्ग का उपदेश देते HAIN.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक
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