६ ढाला
छठी ढाल
पुनि घाति शेष अघाति विधि,छिनमाहीं अष्टम भू- वसै
वसु कर्म विनसें सुगुण वसु सम्यक्त्व अदिक सब लसैं
संसार खार-अपार पारावार,तरि तीरहि गए
अविकार,अकाल,अरूप,शुद्ध,चिद्रूप अविनाशी भये
शब्दार्थ
१.पुनि-फिर उसके बाद
२.घाति-नष्ट करके
३.शेष अघाति-विधि --बचे हुए अघतियों कर्मों को
४.छिनमाहीं- बहुत कम समय में
५.अष्टम भू-आठवी पृथ्वी -ईषत प्रागार-मोक्ष
६.वसु कर्म-आठों कर्म विनाश जाते हैं
७.सुगुण वसु-आठ मूल गुण
८.सम्यक्त्व अदिक-अनंत दर्शन,अनंत ज्ञान,अनंत वीर्य,अनंत चरित्र,सूक्ष्मत्व
९.लसैं-शोभायमान होते हैं
१०.संसार खार अपार पारावार -संसार रुपी खारे और अनंत समुद्र से
११.तरि-तर कर
१२.तीरहि -किनारे पे
१३.अविकार-राग-द्वेष रहित
१४.अकाल-शारीर रहित
१५.अरूप-रूप रहित-ज्ञान-दर्शन ही जिसका रूप
१६.शुद्ध-दोष रोहित
१७.चिद्रूप-दर्शन ज्ञान
१८.अविनाशी-स्थिर-नित्य
१९.भये-हो गए
भावार्थ
वह मुनिराज चार-घातियां कर्मों के नाश के बाद,केवली अवस्था को प्राप्त करने के बाद-बाकी बचे हुए ४ अघातिया कर्मों का नष्ट कर देते हैं(वेदनीय कर्म,आयु कर्म,नाम कर्म और गोत्र कर्म)...और उन चारों कर्मों को नष्ट करते ही समय के लाखवे हिस्से में अष्टम भू ईषत प्रागार पृथ्वी पर पहुँच जाते हैं..और आठों कर्मों के विनाशने के कारण अष्ट गुण (अनंत-दर्शन,अनंत ज्ञान,अनंत चरित्र,अनंत वीर्य) अदि प्रकट हो जाते हैं...और यह सब शोभायमान होते हैं...वह बहुत धन्य है क्योंकि उन्होंने संसार रुपी खारे,दुःख से भरे हुए समुद्र को पार कर लिया और किनारे पे पहुँच गए..और अविकार-राग द्वेष रहित ( जो दुःख का कारण है),२.अकाल-शारीर रहित ३.अरूप-रूप रहित ४.शुद्ध -दोष रहित,चैतन्य और स्थिर स्वाभाव को पार कर लिया..अब वह अपने आप में पूरे हैं..और उन्होंने सब कुछ पा लिया है.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक
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