६ ढाला
छठी ढाल
सिद्ध अवस्था
निजमाहीं लोक अलोक गुण-पर्याय प्रतिबिंबित थये
रही हैं अनंत काल,यथा-तथा शिव परिणये
धनि धन्य हैं वह जीव,जो नर-भाव पाय यह कारज कियो
तिन्हीं अनादि भ्रमण पंच-प्रकार तजो वर-सुख लियो
शब्दार्थ
१.निजमाहीं-उन्हें अपने अन्दर ही..आत्मा में
२.लोक-अलोक-लोककाश और अलोकाकाश
३.गुण-पर्याय-जो एक द्रव्य को दुसरे द्रव्य से भिन्न करे वह गुण...और द्रव्य की अवस्थाएं पर्याय
४.प्रतिबिंबित थये -झलकने लगते हैं
५.रही हैं अनंतकाल-अनंत काल तक वहीँ पर रहेंगे
६.यथा-जिस प्रकार
७.परिणय-गए हैं
८.धनि-धन्य हैं वह जीव- वह जीव बहुत धन्य हैं.
९.जो नर भव पाय-मनुष्य योनी की पाकर
१०.यह कारज किया-यह पुरुषार्थ किया
११.तिन्ही-उन्होंने
१२.अनादि-जिसका न अदि है
१३.पंच प्रकार-द्रव्य,क्षेत्र,भाव,काल,भव
१७.तजि-त्याग कर
१८.वर सुख लियो-उत्तम सुख प्राप्त किया
भावार्थ
जिन्होंने आठों कर्मों को नष्ट करके..शिव पद प्राप्त किया...सिद्ध अवस्था में उन्होंने अपने आत्मा स्वरुप में दर्पण के सामान लोक और अलोक के गुण और पर्याय झलकते हैं..या प्रतिबिंबित होते हैं....अब वह वहां निराकुल अवस्था में अनंत काल तक रहेंगे...जिस प्रकार उन्होंने शिव सुख को प्राप्त किया है..उसी प्रकार अब वह अनंत काल तक वहां रहेंगे..इसलिए ऐसे जीव धन्य हैं जिन्होंने दुर्लभ मनुष्य पर्याय,सुकुल और जिनवाणी,सच्चे देव शास्त्र गुरु की शरण पाकर यह पुरुषार्थ किया..और उन्होंने अपने अनादि काल से द्रव्य,क्षेत्र,भाव,काल और भव के परिवर्तन को त्याग कर उत्तम सुख पाया.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा कृत
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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