Sunday, July 31, 2011

6 dhaala-chathi dhaal-ratntray dhaaran karne ka updesh

६ ढाला

छठी ढाल

रत्नत्रय धारण करने का उपदेश
मुख्योपचार दुभेद यों बडभागी रत्नत्रय धरैं
अरु धरेंगे,ते शिव गहैं,निज सुयश जल जग मल हरैं
इमि जानि आलस हानि,साहस ठानी यह सिख आदरो
जबलौं न रोग जरा गहैं,तबलौं निज हित हित करो

शब्दार्थ

१.मुख्योपचार--व्यवहार और निश्चय
२.दुभेद-दो प्रकार से
३.यों बडभागी रत्नत्रय धरैं- इस तरह से बहुत भाग्यवान रत्नत्रय को धारण करते हैं
४.शिव-मोक्ष
५.गहैं-पाते हैं
६.मल-गंधगी
७.इमि -इतना
८.हानि-त्याग कर
९.सिख-शिक्षा
१०.ठानी-धारण कर
११.जबलौं-जब तक
१२.जरा-बुढापा
१३.तबलौं-तब तक


भावार्थ
निश्चय या व्यवहार रूप से जो भाग्यशाली और पुरुषार्थी जीव रत्नत्रय को धारण करते हैं..या आगे धारण करेंगे..वह शिव को..यानी की निराकुल आनंद सुख को प्राप्त होंगे..और अपने सुयश..ख्याति रुपी जल से संसार का मॉल हरेंगे..इसलिए इतना जानने के बाद आलस का त्याग करके साहस ठान इस सीख को ग्रहण करो..की जब तक शारीर में रोग-बुढापा अदि न लग जाए..जब तक अपना हित करलो.

रचयिता-कविवर दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय( ६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक

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