<<<<"श्री पदम् पुराण की कहानियां">>>>>
इस पोस्ट को पढने से पहले यह ध्यान रखें की आप शारीरक और मानसिक दोनों रूप से शुद्ध हैं या नहीं (मतलब मन में किसी प्रकार को कोई गुस्सा वगरह न हो,और हाथ-मूंह-धुले हुए हों...???......अविनय न हो इस बात का ध्यान रखें..
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मंगलाचरण-अरिहंतों को नमस्कार,सिद्धों को नमस्कार,आचार्यों को नमस्कार,उपाध्यायों को नमस्कार,सारे साधू को नमस्कार
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पदम् पुराण की शुरुआत
..इस शास्त्र को श्री रविसेन आचार्य ने लिखा है...और जो मैंने पढ़ा उसका अनुबाद श्री दक्षमती-माता जी ने किया..इस शास्त्र को पदम् पुराण इसलिए कहते हैं क्योंकि श्री राम चन्द्र जी का नाम पदम् भी था.
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श्री पदम् पुराण की शुरुआत में मंगलाचरण है,उसके बाद भगवन महावीर अदि तीर्थंकरों के गुणों का वर्णन,फिर भगवान महावीर की कथा ,समवोशरण का वर्णन ,फिर राजा श्रेणिक के मन में राम रावण से सम्बंधित प्रश्नों का उठाना..वह कौन थे वानर थे?...क्या थे...समवोशरण में न उसके बाद गौतम स्वामी उनको भगवान आदिनाथ की कथा बताते हैं,लोक का वर्णन देते हैं..वंशों के बारे में बताते हैं...
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अब कृपया ध्यान से पढियेगा .(now plz read it carefully)
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सबसे पहले हम रावण के बारे में जानेंगे
अब हमारे मन में सवाल आता है की क्या रावण राक्षश था...आचार्य भगवंत कहते हैं नहीं था लेकिन वह राक्षश वंश का था
क्या!! राक्षश वंश...यह कैसा वंश है???.,इसका नाम यह क्यों पड़ा..इसकी उत्पत्ति कैसे हुई...राक्षश वंश ही क्यों पड़ा ??...कब से यह वंश चालु हुआ..
इन्ही सब बातों के हल जान्ने के लिए नीचे पढ़ते हैं!!!!!!!!!!!!!!!!!!
""दुसरे तीर्थंकर देवाधिदेव श्री अजितनाथ भगवन के समय में पूर्ण धन नाम का विद्याधर राजा.था,.उसने सुलोचन राजा की पुत्री की याचना की..राजा ने इनकार किया कहा वह तोह सगर चक्रवती(उस समय के चक्रवाती) को देंगे..पूर्णधन राजा ने हमला बोल दिया...पुत्री का भाई(सहस्त्रनयन) उसे लेकर जंगले में चुप गया..पूर्ण धन ने राज्य जीत लिया पुत्री को ढूंढा तोह नहीं मिली..पुत्री के भाई को पिता की मौत सुन कर क्रोध आया...तभी एक मायामयी अश्व सगर चक्रवती को जंगल में ले आया और सगर चक्रवती का विवाह उनसे हो गया..और सगर चक्रवती ने सहस्त्रनयन को विद्याधरों का अधिपति बना दिया..जिससे उसने पूर्ण धन राजा पे जय पा ली..और उन का पुत्र (पूर्णधन राजा का पुत्र) .जिसका नाम मेघवाहन था..वह डरकर भागने लगा और अजितनाथ भगवन के समोवाशरण में पहुच था. अजितनाथ भगवन के समवोशरण पहुंचा..जहाँ भगवन की महिमा से दोनों में मित्रता हो गयी...भगवन से पिता के पूर्व भव पूछे...और सगर चक्रवती अदि ने भी सवाल पूछे...वहीँ पर राक्षसों के इन्द्र ने (जो की मेघवाहन के पूर्व जन्म का पिता था,इसलिए मोह के कारण) उसे लंका नगरी का राज्य दे दिया जो राक्षस द्वीप में है..
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अब उसके बारे में सुनते हैं
राक्षश द्वीप सातसौं योजन चौड़ा और सातसौं योजन लम्बा है...यह लवण समुद्र के बीच में है..लवण समुद्र में तरह-तरह के यक्ष,किन्नर पुरुष लोल-कलोल करते हैं..यक्ष अदि अनेक प्रकार के देव रहते हैं...यह एक अंतर द्वीप है..जिसके बीच में त्रिकूटाचल(शायद मैं नाम भूल रहा हूँ) पर्वत है..इस पर्वत के शिखर मेरु के सामान शोभायमान होते हैं..इस पर्वत के नीचे तीस योजन प्रमाण एक लंका नाम की नगरी है..उन इन्द्र ने मेघ वाहन नाम के राक्षश ने इसलिए दिया था क्योंकि वह उसका पूर्व भव में पिता था..इसलिए स्नेह रुपी अग्नि में जल कर दे दिया.
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मेघवाहन ने लंका नगरी में काफी समय तक रहा और फिर एक दिन अजित नाथ भगवन के समवोशरण में आया और भगवान से आगामी तीर्थंकर,चक्रवती आदियों के बारे में पुछा..भगवान की वाणी सुन वह विरक्त हो गया..और सारा राज्य पुत्र यक्षिरस को दे दिया..
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अजितनाथ भगवान को मोक्ष प्राप्त हुआ..उनका मोक्ष कैलाश में हुआ ...सगर के पुत्रो ने पिता से कहा की हमारे लिए कार्य बताइए , तब सगर ने कहा की मेरे पास तुम लोगो के योग्य कोई कार्य नहीं है और तुम चक्रवर्ती के पुत्र हो तुम्हे कार्य करने की क्या जरूरत है? पुत्रो ने कहा की हम बैठे रहते हैं तोह ठीक नहीं लगता है..कोई कार्य बताएं..जब सगर चक्रवती ने कहा की भरत चक्रवती ने ७२ जिनालय बनवाए हैं..तुम इसके चारो तरफ खाई खींच दो..क्योंकि पंचम काल का मनुष्य बहुत लोभी हो जाएगा...वह ऐसा करने लगे..तब धरेंद्र देव देव ने उनको क्रोध की दृष्टी से देखा और वह मर गए(क्योंकि वह चाहते थे की सगर चक्रवती को वैराग्य हो जाए..उन्होंने पूर्व भव में एक दुसरे से वादा किया था कि एक दुसरे को वैराग्य उत्पान करवाएंगे)..और सिर्फ दो बच गए..वोह भी सिर्फ आयु कर्म की वजह से..(क्योंकि पूर्व भव में उन्होंने मुनियों की स्तुति की थी..उस समय अन्य गाँव के लोग सम्मेद शिखर जा रहे उन मुनियों का मजाक उदा रहे थे..तब उन्होंने ऐसा नहीं किया..इसी कर्म की वजह से बच गए..सब कुछ कर्मों का फल है..न की देवों का चमत्कार.)..वह दोनों पुत्र सगर चक्रवती के पास गए..सगर चक्रवती
को वैराग्य हो गया...और जिनेश्वरी दीक्षा धारण करि और केवल ज्ञान को प्राप्त करके मोक्ष-निराकुल आनंद सुख को प्राप्त किया.. राज्य पुत्र भगीरथ के पास था.
...ऐसे ही एकदिन भगीरथ को भी संसारे से विरक्ति हो गयी और मुनि हो गया..
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अब यह तोह सगर चक्रवाती की कथा हुई..अब राक्षश वंश पे आये जो मेघ वाहन राजा ने यक्षिरस को दे दिया था..वह बड़े आनंद के साथ वहां रह रहा था..और राज्य करता था..एक दिन सायं काल शाम को बाघ में कमल को मुरझाते देख और उसके अंदर भौरें को शारीर तजते देख विरक्त हो गया..और अपने आप को धिक्कारने लगा की"उफ़ मैं कितना बड़ा मूर्ख हूँ यह तोह घ्राणइन्द्रिय के मोह में था..मैं तोह पाँचों इन्द्रिय स्त्रियों के मोह में पड़ा हूँ.यह विषयों की आग तोह जलती है..विष तोह एक जन्म बेकार करता है..यह विषय तोह अनंत जन्म ख़राब करते हैं..तभी वहीँ उस उपवन में श्रुत सगर मुनिराज का संघ आया...माली ने राजा को बताया..और राजा ने दर्शन किये और धर्म का उपदेश सुना मुनि ने कहा"हर जीव सुख चाहता है,कोई मरना नहीं चाहता,क्या तू दुःख चाहता है..तोह वैसे ही और क्यों दुःख चाहेंगे..इस तरह से संसार भ्रमण की कथा कही..फिर यक्षिरस ने मुनिराज से पूर्व भव पूछे..और कहा की जब तू स्वर्ग के भोगों से तृप्त नहीं हुआ तोह इन अल्प विद्याधर भोगों से क्या तृप्त होगा...इस उपदेश के प्रभाव से यक्षिरस ने मुनिदीक्षा ले ली और राज्य पुत्र अमर रक्ष को दे दिया और छोटे पुत्र को युवराज पद दिया..अब वह लंका नगरी पे राज्य करने लगे...अमर-रक्ष के १० पुत्र और ६ पुत्रियाँ हुईं..और उन सबने आगे जाकर खुद के नाम से नगर बसाये..इस तरह से उन्होंने भी मुनि दीक्षा ग्रहण करी और विरक्त हुए..ऐसे ही कितने राजा हुए इन विद्याधरों के वंश में और मुनि दीक्षा ग्रहण कर कोई मोक्ष गए..कोई स्वर्ग के अह्मिन्द्रों के पद को प्राप्त हुए..और आगे जाकर मोक्ष गए..उन्ही में एक राजा हुए यक्षरस उनके पुत्र का नाम राक्षस हुआ.उन्होंने विरक्त होकर राज्य राक्षस को दे दिया..और उन्ही के नाम से यह राक्षश वंश चला..राक्षश राजा भी विरक्त होकर मुनि हुए....विद्याधरों के कितने राजाओं ने मुनिदीक्षा ग्रहण हुए...और कर्मों को भस्म करके (जिन धर्म के माध्यम से) निराकुल आनंद सुख को प्राप्त हुए..इसलिए ऐसे शुद्धोप्योग को धारण करना चाहिए.
प्रमाद के कारण हुई भूलों के लिए क्षमा
नोट-बहुत संक्षेप में लिखा है,दूसरी बात कुछ गलतियाँ पायी जा सकती हैं (लेकिन ९५% accurate है)
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