Wednesday, July 27, 2011

6 dhaala-chathi dhaal-swaroopacharan roop charitra aur nirvikalp dhyaan

६ ढाला
छठी ढाल
स्वरूपाचरण रूप चरित्र और निर्विकल्प ध्यान

प्रमाण-नय-निक्षेप को उघोत न अनुभव में दिखे
दृग-ज्ञान सुख बलमय सदा नहीं आनु भाव जु मो विखे
मैं साध्य-साधक-मैं अबाधक,कर्म अरु तसु फलिन्तैं
चित-पिण्ड,चंड,अखंड सुगुण अकरंड च्युत पुनि कलिन्तैन

शब्दार्थ
१.प्रमाण-वस्तु के सारे अंशों को जानना
२.नय-वस्तु के अंश को जानना
३.उघोत-प्रकाश
४.अनुभव में-ध्यान में
५.दृग-अनंत दर्शन
६.ज्ञान-अनंत ज्ञान
७.सुख-अनंत सुख
८.बलमय-अनंत बल
९.आनु भाव-कोई दूसरा भाव
१०.जू मो विखे-मेरे में नहीं है
११.मैं साध्य-मैं ही साधने लायक हूँ
१२.साधक-साधने वाला हूँ
१३.अबाधक-बाधा रहित हूँ
१४.अरु-और
१५.तासु-उसके
१६.फलिंतैन-फल से
१७.चित-पिण्ड-चेतना का पिण्ड हूँ
१८.चंड-निर्मल और ऐश्वर्या शाली हूँ
१९.अखंड-भेद रहित
२०.सुगुण अकरंड-अनंत गुणों की पिटारा हूँ
२१.च्युत-रहित हूँ
२२.कलिन्तैन-दोषों से

भावार्थ
उस स्वरूपाचरण रूप चरित्र में मुनिराज को वास्तु के सारे अंशों को जानना या एक अंशों को जानना सम्बंधित कोई भी प्रकाश ध्यान में नहीं होता है..क्योंकि प्रमाण नय भी तोह विकल्प ही हैं..लेकिन मुनिराज निर्विकल्प ध्यान में होते हैं..उन्हें तोह बस इस बात का अनुभव होता है की मेरा स्वाभाव तोह अनंत दर्शन,अनंत ज्ञान,अनंत सुख और अनंत बल है जो हमेशा रहता है..और मेरे अन्दर कोई मेरे राग-द्वेष अदि भाव मौजूद नहीं है..मैं ही साधने योग्य  हूँ और मैं ही साधक हूँ..और मैं कर्म और उसके फलों से बाधा रहित हूँ,कर्म और उसके फल मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते..मैं तोह चेतना का भंडार हूँ,निर्मल और ऐश्वर्य शाली हूँ,और भेद रहित कभी न खत्म होने वाले अनंत गुणों का पिटारा हूँ और मैं हर प्रकार के दोष,मेल,गंदगी,पाप अदि से रहित हूँ.

रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी 
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-.पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन जी)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक. 

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