Tuesday, July 26, 2011

6 DHAALA-CHATHI DHAAL-SWAROOPACHARAN ROOP CHARITRA 2

६ ढाला
छठी ढाल

स्वरूपाचरण रूप चरित्र

जहाँ ध्यान ध्याता ध्येय को न विकल्प वच न भेद जहाँ
चिदभाव कर्म चिदेश करता चेतना क्रिया तहां
तीनों अभिन्न अखिन्न शुद्धोपयोग की निश्चल दशा 
प्रकति जहाँ दृग ज्ञान चरण तीनधा एकै लसा   


शब्दार्थ
१.ध्याता-जो ध्यान करे
२.ध्येय-ध्यान करने योग्य
३.वच-वचन का
४.भेद-अंतर नहीं रहता है
५.चिदभाव कर्म- चेतना ही कर्म
६.चिदेश करता-चेतना ही करता
७.तहां-वहां
८.अभिन्न-एक ही
९.अखिन्न-बाधा रहित
१०.निश्चल-अटल 
११.प्रकति-जहाँ प्रकट होती है
१२.दृग-सम्यक दर्शन
१३.ज्ञान-सम्यक ज्ञान
१४.चरन-सम्यक चरित्र
१५.तीनधा-तीनों
१६,एकै-एक साथ 
१७.लसा-शोभायमान होती हैं

भावार्थ 
उस स्वरूपाचरण रूप चरित्र में ध्यान करने वाला,ध्यान करने योग्य वास्तु और ध्यान का कोई विकल्प नहीं रहता और न ही वचन का विकल्प होता है...उस चरित्र में तोह चेतना ही कर्म अहि चेतना ही करता है और चेतना ही क्रिया है..यह अवस्था जब एक साथ बाधा रहित..हो जाती या आ जाती है..तोह वह ही शुद्धोपयोग की निश्चल दशा है..जहाँ सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र एक साथ प्रकट हो कर शोभायमान होते हैं.

रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.

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