Sunday, July 3, 2011

6 dhaala-paanchvi dhaal-anitya bhaavna ka lakshan

६ ढाला

पांचवी ढाल

जोवन गृह गोधन नारी,हय,गय,जन आज्ञाकारी
इन्द्रिय सुख छिनथाई,सुरधनु चपला चपलाई

शब्दार्थ
१.जोवन-जवानी
२.गृह-घर,महल
३.गो-गाय ,बैल
४.धन-धन संपत्ति
५.हय-घोड़े
६.गय-हाथी
७.जन-कुटुम्बी,परिवारी जनि
८.आज्ञाकारी-आज्ञा के अनुरूप चलने वाले नौकर
९.इन्द्रिय सुख-पांचो इंदियों के भोग
१०.छिनथाई-क्षण भंगुर हैं,अस्थायी हैं
११.सुरधनु-इन्द्रधनुष
१२.चपला-बिजली
१३.चपलाई-चंचलता के सामान

भावार्थ
१.अनित्य भावना
अनित्य भावना हमें सिखाती है...कि यह शरीर कि जवानी,घर-वार,राज्य संपत्ति,गाय-बैल,स्त्री के सुख,हाथी,घोड़े,परिवारीजन,कुटुम्बी जन..और आज्ञा को मानने वाले नौकर..और पांचो इन्द्रियों के भोग क्षण-भंगुर हैं..हमेशा नहीं रहते हैं..अनित्य हैं..अस्थायी हैं...यह सारे सुख आकुलता को देने वाले ही हैं..और दुःख को देने वाले ही हैं....यह सुख बिजली और इन्द्रधनुष कि चंचलता के सामान क्षण-भंगुर हैं..जिस प्रकार इन्द्र-धनुष और बिजली कुछ सेकंड के लिए ही आसमान में रहती हैं..उसी प्रकार यह इन्द्रिय जन्य सुख औ राज्य संपत्ति,गोधन,गृह,नारी,हाथी घोड़े थोड़े समय के लिए ही हैं...अनित्य हैं.

जिस प्रकार विवेकी जीव झूठे भोजन को खाने में,चाहे कितना भी स्वादिष्ट हो..कभी ममत्व नहीं दिखता है..उसी प्रकार इस अनित्य भावना को भाने से जीव इस संसार के झूठे भोगों से,लाखो बार भोगे हुए भोगों से कभी ममत्व नहीं करता है..और न ही इनके वियोग में अरति करता और संयोंग में रति करता है
यह अनित्य भावना भाने का फल है.

रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक. 

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