६ ढाला
पांचवी ढाल
बारह भावना भाने के लाभ
इन चिंतत सम सुख जागे,जिमी ज्वलन पवन के लागे
जब ही जिय आतम जाने,तब ही जिय शिव सुख ठाने.
शब्दार्थ
१.इन-इन बारह भावनाओं का
२.चिंतत-चिनात्न करने
३.सम सुख-समता भाव रुपी सुख
४.जागे-धधकता है
५.जिमी-agni
६.ज्वलन-धधकती
७.लागे-हवा चलने से
८.आतम जाने-आत्मा को जानता है
९.जिय-जीव
१०.शिव सुख-निराकुल आनंद सुख
११.ठाने-प्राप्त करता है
शब्दार्थ
इन बारह भावनाओं का चिंतन करने से समता भाव रुपी सुख जाग्रत होता है..समता भाव से अर्थ है..विकल्पों में कमी का होना..वर्तमान में जीना,न आगे की चिंता..और न पीछे के विकल्प..इन बारह भवनों से समता भाव तीह्क उसी प्रकार जाग्रत होता है..जिस प्रकार हवा के चलने से अग्नि और धधक उठती है...जब तक समता भाव नहीं होगा..जब तक जीव आत्मा को नहीं जानेगा,वैरागी नहीं होगा..समता भाव के होने से जीव आत्मा को जानेगा..आत्मा के कल्याण के बारे में सोचेगा...और जब इसके बारे में सोचेगा..तोह उचित पुरुषार्थ भी करेगा..और उस पुरुषार्थ से निराकुल,आनंद सुख को प्राप्त होगा..कहने का मतलब यह है..की जब तक यह जीव भोगों से विरक्त नहीं होगा..जब तक निराकुल आनंद सुख को प्राप्त नहीं हो सकेगा.
रचयिता-श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-डॉ शीतल चंद जैन,पंडित रत्न लाल बैनाडा)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तकक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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