६ ढाला
पांचवी ढाल
अशरण भावना का लक्षण
सुर-असुर खदापि जेते,मृग ज्यों हरीकाल दले ते.
मणि मंत्र-तंत्र बहु होई,मरतै न बचावे कोई.
शब्दार्थ
१.सुर-सुरेन्द्र
२.असुर-नागेन्द्र
३.खदापि-खगेन्द्र भी
४.जेते-जो हैं
५.मृग ज्यों-हिरन के सामान
६.हरी-सिंह
७.काल-दले-काल के आगे
८.मणि-चिंतामणि
९.तंत्र-मंत्र--तांत्रिक मंत्र,उलटे सीधे उपाय,देवी-देवता,आशीर्वाद
१०.बहु-बहुत सारे
भावार्थ
लिखने का आधार-स्वाध्याय( ६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)२.अशरण भावना
अशरण का अर्थ है कहीं भी शरण नहीं है....चाहे सुरेन्द्र,असुरेन्द्र,नागेन्द्र हों,खगेंद्र..नरेन्द्र हों....वह भी काल रुपी सिंह के सामने हिरण के सामान हैं...और उनको भी शरीर को त्याग कर...नई योनियों में सारे महल राज पाट छोड़ के जाना पड़ता है...और कर्मों का फल भोगना पड़ता है.....चाहे कैसी भी मणि हो,मंत्र हो,तंत्र हो,बड़े से बड़ी शक्ति हो,माता,पिता,देवी,देवता,सेना,औषधि,पुत्र...या कैसा भी चेतन या अचेतन पदार्थ हो...मृत्यु से कोई नहीं बचा सकता है....तथा मृत्यु से कोई नहीं बच सका है...कहीं भी शरण नहीं है.यह अशरण भावना है
इस अशरण भावना को भाने से समता भाव जागृत होता है..और इस भावना को भाने वाला जीव शरीर त्याग के समय शोक नहीं करता है..और न ही किसी अन्य के देह-अवसान में शोक करता है....और न ही संसार के भौतिक-सुखों में रति करता है
रचयिता- कविवर श्री दौलत राम जी
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा det हूँ ढोक
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