६ ढाला
पांचवी ढाल
संसार भावना का लक्षण
चहुँगति दुःख जीव भरे है,परावर्तन पञ्च करे है
सब विधि संसार असारा,यामे सुख नहीं लगारा.
शब्दार्थ
१.चहुँगति -चारो गतियों के(मनुष्य गति,देव गति,तिर्यंच गति,नरक गति)
2.भरे-सहन करता है
3.परावर्तन-द्रव्य,क्षेत्र,भाव,काल और भाव के परिवर्तन सहता है
4.सब-हर प्रकार से
5.संसार-जगत
६.असार-बिना सार का ,बिना सुख के है
७.यामे-इस संसार में
८.सुख नहीं-सुख नहीं है
९.लगारा-थोडा सा भी
भावार्थ
यह जीव चारो गतियों में चाहे स्वर्ग हो,नरक हो,मनुष्य पर्याय हो,या तिर्यंच पर्याय हो...सब में दुःख ही दुःख भोगता है,कहीं भी इस संसार में सुख नहीं नहीं है..हर तरफ से हर दृष्टी से यह जीव चारो गतियों में दुःख भोगता है..और द्रव्य,क्षेत्र,भाव,भव और काल के परिवर्तन सहता है यानि की हर विधि से हर तरीके से संसार असार है,बिना किसी सार का है,हर जगह दुःख है..और इस संसार में कहीं भी सुख नहीं है...सुख या दुख शरीर से बाद मे होता है पहले मन से होता है.यदि कोई कहे की हमे धन,वास्तु,संतान, के मिलने से सुख होगा तो जरा देखे धन अभी आया नही लेकिन अभी से आकुलता चालू हो गई.फिर धन प्राप्ति के लिये उध्यम करेंगे.उसमे भी आकुलता.फिर धन आगया तो उसकी रक्षा करने मे आक...ुलता,और जब चला जावेगा तो फिर दुख.इसी तरह संतान.संतान प्राप्ति के लिये उध्यम,9माह तक माता की सेवा,संतान मिल गई,उसे संसकार देने का उध्यम.और संतान कैसी निकलेगी यह भी आकुलता.इसी तरह सभी मे आकुलता रहती है तो फिर सुख कहा?यह तो मृग मरीचीका है जिसमे भटकते रहेंगे क्षणिक सुख के अलावा आकुलता का अनंत दुख.सुख तो हे ही नही.सुख तो तब हे जब आकुलता का नाश हो.ना तो लाभ से सुख ना ही हानि से दुख.देह धारि मौष्य त्रियंच को तो सुख हे ही नही.मौष्य मे मान कषाय.मान कषाय इतना की घर मे नही दाने अम्मा चली भुनाने. अब देवो को देखो.देवो मे लोभ कषाय.उन्हे ईर्षा होती है कि के मुझसे बदे देव कि इतनी प्रभुता क्यो?मुझ पर आदेश चलाता?क्या मे उसका गुलाम हू?और जीवन एसे ही निकल जाता.6 माह रहते हे तो उन्हे पता चलता कि जो भी सुख भोग रहे,वह छिनने वाला है.इससे क्षोभ दुख होता है और फिर वही एक इंद्री जीव बनते.त्रियंच मे कपट होता हे.अपनी रोती को छोड कुत्ता दुसरे की रोटी पर झपटता है.पालतु पशु को यह सुख हे कि उसे भोजन मिलेगा ही पर कब?पानी के पीने के लिये बंधा हुआ है क्या करे?कब मालिक उसे कसाई घर मे बेच देगा.और नारकी मे क्रोध कशाय,वह अपने पिछले जन्म के दुश्मन को देख क्रोध मे उबल जाता.नारकी को तो दुख ही दुख.और निगोद मे जन्म हुआ और मौत का इंतज़ार. पर्यायो मे सुख कही नही है.सुख प्राप्त करने के लिये निराकुल होना जरूरी हे.और सम्यक दृष्टि जीव ही निराकुल होकर सुख भोगता है
इस भावना को भाने वाला जीव कभी भी दुखी नहीं होता है..लेकिन संसार से उदासीन रहता है...वैरागी रहता है
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन जी)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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