संसार एक इन्द्रजाल है।
कोई बाप अपने बच्चे को बहुत अच्छे से पालता है। लोग बहुत प्रशंसा करते हैं। वास्तव में बाप ने ऐसे कर्म किये थे कि वो किसी का अच्छा करे, और पुत्र ने ऐसे कर्म किये कि उसका भला हो। दोनो इस भव में मिल गये और दोनो को अपने कर्मो का फ़ल भी मिल गया, और लोगो ने तालिया पिटी कि बाप ने बच्चे को पाला। यह संसार तमाशा नहीं तो और क्या है? और ताली पीटने वाले अज्ञानियों से पूरा संसार भरा है जो इस कर्म और जीव के मिलन वाले संसार को देखकर तालिया पीट देते हैं। कोई अच्छा दृश्य आया तो तालियां बजा दी, और कोई बेकार दृश्य आया तो आंसू बहा दिये।
इसी प्रकार देश में कोई क्रूर नेता आया। तो लोगो में हाहाकार हो गया। वास्तव में नेता ने ऐसे कर्म किये कि थे वो किसी का बुरा करे, और प्रजा ने ऐसे कर्म किये थी कि उसका बुरा हो। दोनो इस भव में मिल गये और दोनो को अपने कर्मो का फ़ल मिल गया, और लोगो ने आंसू बहा दिये कि नेता ने अत्याचार किया।
पूरा जगत इस जीव और अजीव के मिलन का स्पन्दन मात्र है। जिस प्रकार से पुरूष एक वीणा को हाथ मे लेके भिन्न तरंगित ध्वनियां निकलाता है, उसी प्रकार जीव और अजीव मिलकर इस जगत में एक तमाशा दिखाते हैं। इस तमाशे में कोई सार नहीं। यहां कोई किसी को सुख दुख देता नहीं।
लक्ष्मण और रावण के मध्य युद्ध होता है। रावण के पिछले कर्म ही ऐसे थे कि उसका प्रतिनारायण होकर वध होगा। और लक्ष्मण के पिछले कर्म ही ऐसे थे कि वो प्रतिनारायण का वध कर प्रसिद्धी को प्राप्त करेगा। तो फ़िर दोनो का मिलन तो मात्र कर्मो के फ़लीभूत होने के लिये हुआ। वास्तव में न तो लक्ष्मण ने रावण को मारा और ना ही रावण लक्ष्मण से मरा। मात्र अज्ञानियो ने ताली पीटी। तभी ही इस संसार को मायाजाल की उपमायें दी गयी। क्योंकि जैसा दिखता है वैसा होता नहीं, और हम गलत को सही मानकर इस संसार में फ़से रहते है|
कोई बाप अपने बच्चे को बहुत अच्छे से पालता है। लोग बहुत प्रशंसा करते हैं। वास्तव में बाप ने ऐसे कर्म किये थे कि वो किसी का अच्छा करे, और पुत्र ने ऐसे कर्म किये कि उसका भला हो। दोनो इस भव में मिल गये और दोनो को अपने कर्मो का फ़ल भी मिल गया, और लोगो ने तालिया पिटी कि बाप ने बच्चे को पाला। यह संसार तमाशा नहीं तो और क्या है? और ताली पीटने वाले अज्ञानियों से पूरा संसार भरा है जो इस कर्म और जीव के मिलन वाले संसार को देखकर तालिया पीट देते हैं। कोई अच्छा दृश्य आया तो तालियां बजा दी, और कोई बेकार दृश्य आया तो आंसू बहा दिये।
इसी प्रकार देश में कोई क्रूर नेता आया। तो लोगो में हाहाकार हो गया। वास्तव में नेता ने ऐसे कर्म किये कि थे वो किसी का बुरा करे, और प्रजा ने ऐसे कर्म किये थी कि उसका बुरा हो। दोनो इस भव में मिल गये और दोनो को अपने कर्मो का फ़ल मिल गया, और लोगो ने आंसू बहा दिये कि नेता ने अत्याचार किया।
पूरा जगत इस जीव और अजीव के मिलन का स्पन्दन मात्र है। जिस प्रकार से पुरूष एक वीणा को हाथ मे लेके भिन्न तरंगित ध्वनियां निकलाता है, उसी प्रकार जीव और अजीव मिलकर इस जगत में एक तमाशा दिखाते हैं। इस तमाशे में कोई सार नहीं। यहां कोई किसी को सुख दुख देता नहीं।
लक्ष्मण और रावण के मध्य युद्ध होता है। रावण के पिछले कर्म ही ऐसे थे कि उसका प्रतिनारायण होकर वध होगा। और लक्ष्मण के पिछले कर्म ही ऐसे थे कि वो प्रतिनारायण का वध कर प्रसिद्धी को प्राप्त करेगा। तो फ़िर दोनो का मिलन तो मात्र कर्मो के फ़लीभूत होने के लिये हुआ। वास्तव में न तो लक्ष्मण ने रावण को मारा और ना ही रावण लक्ष्मण से मरा। मात्र अज्ञानियो ने ताली पीटी। तभी ही इस संसार को मायाजाल की उपमायें दी गयी। क्योंकि जैसा दिखता है वैसा होता नहीं, और हम गलत को सही मानकर इस संसार में फ़से रहते है|
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