६ ढाला
पांचवी ढाल
एकत्व भावना का लक्षण
शुभ अशुभ कर्म फल जेते,भोगे,जिय एकहिं तेते
सुत दारा होय न सीरी,सब स्वारथ के हैं भीरी
शब्दार्थ
१.शुभ अशुभ कर्म फल-शुभ और अशुभ कर्मों के फल
२.जेते-जो हैं
३.जिय-जीव
४.एकहिं-अकेला
५.तेते-उन्हें
६.सुत-पुत्र
७.दारा-स्त्री
८.सीरी-हिस्सेदार
९.स्वारथ-मतलब के
१०.भीरी-सगे हो जाते हैं.
भावार्थ
४.एकत्व भावना
सारे शुभ और अशुभ कर्मों के फल जितने भी हैं..यह जीव अकेला हो भोगता है..कोई साथ न देने वाला होता है...माता,पिता,पुत्र,नारी,दोस्त,रिश्तेदार अपनी कोई रिश्तेदारी नहीं निभाते हैं....सिर्फ स्वार्थ के लिए सगे बन जाते हैं...और स्वार्थ ख़त्म होने पर धोका दे जाते हैं...चाहे सुख हो या दुःख यह जीव अकेला ही सहन करता है...साथी-सगे तोह सब कहने मात्र के हैं.
रचयिता-कविवर दौलत राम जी कृत
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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