६ ढाला
पांचवी ढाल
अन्यत्व भावना का लक्षण
जल पय ज्यों जिय तन मेला,पै भिन्न-भिन्न नहीं भेला
तोह प्रकट जुदे धन-धामा,क्यों हैं एक मिल सुत रामा
शब्दार्थ
१.जल-पय सम-दूध और पानी के सामान
२.जिय-तन-जीव और तन
३.मेला-मिलन हुआ है
४.पै-तोह भी
५.भिन्न-भिन्न-अलग-अलग हैं.
६.नहीं भेला-एक रूप नहीं है
७.प्रकट-साफ़ रूप से अलग दिखने वाले
८.धन-धामा-पैसा,घर,मकान
९.एक मिल-मेरे कैसे हैं
१०.रामा-स्त्री
११.सुत-पुत्र
भावार्थ
५.अन्यत्व भावना
यह जीव और शरीर ,पानी और दूध के सामान एक दुसरे से मिले हुए हैं...लेकिन फिर भी दोनों-दोनों भिन्न-भिन्न हैं.एक नहीं हैं..अगर शरीर और आत्मा एक ही होती तोह क्या मुर्दे में जान नहीं होती,फिर ऐसा क्यों होता है कि आत्मे के शरीर से निकलते ही..सारा शरीर ऐसे ही पड़ा रह जाता है,कहाँ चली जाती है उसमें से चेतनता..यानि कि हम जीव हैं,शरीर नहीं हैं...जब शरीर और आत्मा अलग हैं तब जो पर-वस्तुएं,भौतिक वस्तुएं हैं..धन,घर,परिवार है राज्य है,सम्पदा है,पुत्र है,स्त्री है..वह मेरी कैसे हो सकती है...ऐसा चिंतन करना अन्यत्व भावना है
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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