६ ढाला
पांचवी ढाल
अशुचि भावना का lakshan
पल-रुधिर-राध-मल-थैली,कीकस,वसादी से मैली
नव द्वार बहै घिनकारी,असि देह करै किम यारी .
शब्दार्थ
१.पल-मांस
२.रुधिर-खून
३.राध-पीप
४.मल-विष्ट,गंध्गी
५.कीकस-हड्डी
६.वसादी-चर्बी अदि से
७.मैली-मलिन
८.नव द्वार-शारीर में नौ जगहों से
९.घिन्कार-बदबू आती रहती है
१०.असि-ऐसी
११.देह-शारीर
१२.किम-कैसे
१३.यारी-मोह,प्यार,ममता,राग
भावार्थ
६.अशुचि भावना
यह शरीर मांस,खून,पीप,विष्ट,गंध्गी,मल,मूत्र,पसीना..अदि कि थैली है..और हड्डी,चर्बी अदि अपवित्र पदार्थों से मलिन है...और इस शरीर में से नौ द्वार में से निरंतर मैल निकलता रहता है...और इतना ही नहीं इस शरीर के स्पर्श से पवित्र पदार्थ भी अपवित्र हो जाते हैं...बहुत गंध है यह शरीर..और ऐसे शरीर से कौन प्रेम करना चाहेगा,कौन मोह रखना चाहेगा...ऐसा चिंतन करना अशुचि भावना है.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन जी)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन जी)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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