Thursday, July 14, 2011

6 dhaala-paanchvi dhaal-dharm bhaavna ka lakshan

६ ढाला

पांचवी ढाल


धर्म भावना का लक्षण

जो भाव मोह्तैं न्यारे,दृग-ज्ञान-व्रतादिक सारे

सो धर्म जवै जिय धारे,सोई सुख अचल निहारे


शब्दार्थ

१.मोह्तैं-मोह से,मिथ्यात्व से.

२.न्यारे-नहीं है

३.दृग-सम्यकदर्शन

४.ज्ञान-सम्यक ज्ञान

५.व्रतादिक-सच्चा चरित्र

६.सो धर्म-मोह रहित ऐसे धर्म को

७.जवै-जब

८.धारे-धारण करता है

९.सोई-तब

१०.अचल-आकुलता रहित,निराकुल आनंद सुख

११.निहारे-प्राप्त करता है


भावार्थ

12.धर्म भावना
जो भाव पवित्र हैं और मोह से रहित हैं..मिथ्यात्व(गृहीत और अग्रहित) से रहित हैं.वह सम्यक ज्ञान,सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र हैं और यह ही धर्म है..जब इस धर्म को जब यह जीव साधता है..धारण करता है..तोह अचल सुख को प्राप्त प्राप्त करता है..यानि की जहाँ मोह-मिथ्यात्व है वहां धर्म नहीं है...ऐसा चिंतन करना धर्म भावना है

रचयिता-कविवर श्री दौलत रान जी द्वारा कृत
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)

जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.

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