६ ढाला
पांचवी ढाल
लोक भावना का लक्षण
किमहूँ न करै को,न धरै को,षटद्रव्यमयी न हरै को
सो लोक माहीं बिन समता दुःख सहे जीव नित भ्रमता
शब्दार्थ-
१.किमहू-कोई भी
२.न-नहीं
३.करै को-बनाया है
४.धरै को-न ही धारण किये है,चला रहा है
५.षट द्रव्यमयी-षट द्रव्यों से बनी है..जो शास्वत है
६.न हरै-अनश्वर है
७.सो-उस लोक
८.माहीं-में
९.समता-संतोष और वीतराग भावों के
१०.सहे-सहता है
११.नित-हमेशा
१२.भ्रमता-भटकता है.
भावार्थ
१०.लोक भावना
जहाँ ६ द्रव्यों का निवास है,वह तीन लोक हैं..जो शास्वत ६ द्रव्यों से बना हुआ है..इसको न किसी ने बनाया है..न कोई धारण कर रहा है,न कोई चला रहा है..और न ही कभी नष्ट होंगे..और ६ द्रव्य भी शास्वत हैं..अनादि निधन हैं यह तीनों लोक ..इन तीनों लोकों में यह जीव समता भाव के अभाव में..संतोष के अभाव में,वीतरागता और वीतराग भावों के अभाव में यह जीव संसार में दुःख सहता है...और जन्म मरण के दुखों को सहन करता है...वीतराग अवस्था पाने से यह जीव आकुलता रहित सुख को प्राप्त करता हैरचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक
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