६ ढाला
पांचवी ढाल
निर्जरा भावना का लक्षण
निज काल पाय विधि झरना,तासु निज काज न सरना
तप करि जो कर्म खिपावे,सोई शिव सुख दरशावे.
शब्दार्थ
१.निज-अपना
२.काल-समय
३.पाय-पाकर
४.विधि-कर्म
५.झरना-कर्म झरें,नष्ट हों,फल देने आये
६.तासु-उससे
७.काज-कोई LABH
८.न-नहीं
९.सरना-होता है
१०.तप करि-तपस्या करके,सम्यक तप से
११.कर्म खिपावे-कर्मों को नष्ट करे
१२.सोई-वह
१३.दरशावे-प्राप्त कराती है
१४.शिव-सुख-मोक्ष सुख..आकुलता रहित सुख
भावार्थ
९.निर्जरा भावना
जब कर्म अपना समय आने पर फल देने लग जाए..मतलब अपने अपने समय पर फल देने लग जाएँ..और फल देकर चले जाएँ..यह तो अकाम निर्जरा है..या विपाक निर्जरा..इससे इस जीव का कोई भी लाभ नहीं है..कोई भी काम सिद्ध नहीं होता है..जब कर्म बिना फल दिए ही चले जाए..जो सिर्फ सम्यक तप के माध्यम से संभव है..तोह अविपाक निर्जरा है..सकाम निर्जरा है..जो शिव सुख को,मोक्ष सुख को आकुलता रहित सुख को प्राप्त कराती है
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी कृत
लिखने का आधार-स्वाध्याय( ६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी कृत
लिखने का आधार-स्वाध्याय( ६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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