६ ढाला
पांचवी ढाल
मुनि धर्म सुनने की प्रेरणा
सो धर्म मुनिन करी धरिये,तिनकी करतूति उचरिये
सो धर्म सुनिए भवि प्राणी,अपनी अनुभूति पहचानी
शब्दार्थ
१.सो-उस धर्म को,मिथ्यात्व और मोह से रहित धर्म को
२.मुनिन-मुनियों ने
३.धरिये-धारण किया है
४.करतूति-कर्तव्यों को
५.उचरिये-उच्चारण कर रहे हैं
६.सो धर्म-उस धर्म को
७.भवि-भव्य जीव
८.अनुभूति-आत्मा की अनुभूति
९.पहचानी-पहचानो.
भावार्थ
जो धर्म भावना में धर्म बताया गया है,जो मोह से मिथ्यात्व से रहित है...ऐसे उत्तम धर्म को मुनियों ने धारण किया हुआ..जिसे सकल देश चरित्र कहते हैं...ऐसे सकल देश चरित्र के अंतर्गत जो मुनियों के कर्तव्य बताये गए हैं..उसको अगली ढाला में बता रहे हैं..हे भव्य जीवो उन मुनियों के द्वारा धारण धर्म को सुनो...और अपनी आत्मा की अनुभूति करो,अपने ज्ञान दर्शन स्वाभाव को पहचानो.
(पांचवी ढाल पूरी हुई)
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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