६ ढाला
छठी ढाल
पांच महाव्रत
षट काय जीव न हननतैं सब विधि दरव हिंसा टरी
रागादी भाव निवारतैं के हिंसा न भावित अवतरी
जिनके न लेश मृषा,न जल म्रण हूँ बिना दीयों गहैं
अठदशसहस विधि शीलधर,चिद ब्रह्मा में नित रमि रहे
शब्दार्थ
१,षट काय-६ कायिक जीव
२.न-नहीं
३.हननतैं-नुक्सान न पहुंचाते हैं,हिंसा नहीं करते हैं
४.सब विधि-हर प्रकार की
५.दरव-द्रव्य हिंसा
६.टरी-नहीं होती है
७.रागादी भाव-राग,द्वेष,क्रोध,मान,माया,लोभ,काम अदि
८.निवारतैं-दूर करके
९.भावित-भाव हिंसा
१०.अवतरी-नहीं होती है
११.न-नहीं
१२.जिनके-वह मुनिराज
१३.लेश-जरा सा भी
१४.मृषा-झूठ
१५.न जल-म्रण-नहीं जल और मिटटी
१६.हूँ-भी
१७.बिना दीयों-बिना दिए
१८.गहैं-ग्रहण नहीं करते
१९.अथदससहस-अठारह हजार
२०.विधि-प्रकार के
२१.शील धर-ब्रहमचर्य को धारण करके
२२.चिद-चैतन्य
२३.ब्रह्मा-आत्मा स्वरुप
२४.नित-हमेशा
२५.रमि-लीं रहते
भावार्थ
मुनिराजों के पांच-महा व्रतों का वर्णन कर रहे हैं..सच्चे गुरुओं ने षट कायिक जीवों की हिंसा का त्याग किया होता है,जिससे हर प्रकार की द्रव्य हिंसा नहीं होती है..और वह राग-द्वेष,काम,क्रोध,मान,माया,लोभ और कामादि भावों का त्याग कर देते हैं..दूर रहते हैं..जिससे भाव हिंसा नहीं होती है..यह अहिंसा महा व्रत है..वह मुनिराज जरा सा भी झूठ नहीं बोलते..न ही स्थूल रूप से न अन्य किसी रूप से..यह सत्याणु महाव्रत है..वह मुनिराज यहाँ तक की कहीं की जल और मिटटी भी बिना दिए ग्रहण नहीं करते..यह अचौर्यनु व्रत है..और वह मुनिरह अठारह हजार प्रकार के शीलों को धारण करते हैं...और हमेशा अपने चैतन्य आत्मा स्वरुप में रमण करते हैं..लीं रहते हैं..यह ब्रहमचर्य महा व्रत है...अपरिग्रह महाव्रत का वर्णन आगे के श्लोकों में मिलेगा.
रचयिता-कविवर दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला.,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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