६ ढाला
छठी ढाल
अपरिग्रह महाव्रत और इर्या,तथा भाषा samiti
अंतर चतुर्दश भेद बाहर संग दशधा तैं टलें
परमाद तजि चउ कर माहि लखी समिति इर्यातैन चलें
जग सुहितकर सब अहितहर श्रुति सुखद सब संशय हरैं
भ्रम रोग हर जिनके वचन मुख चन्द्रतैं अमृत झरें
शब्दार्थ
१.अंतर-अंतरंग के
२.चतुर्दश-चौदह
३.भेद-प्रकार के
४.बहिरंग-बाहर के
५.संग-परिग्रह
६.दशधा-दस प्रकार के
७.तैं-इन दोनों से
८.तलें-त्याग करते हैं
९.परमाद-आलस्य
१०.तजि-त्याग कर
११.चउ-चार
१२.कर-हाथ
१३.माहि-जमीन
१४.लखी-देख कर
१५.समिति इर्या -इर्या समिति से चलते हैं
१६.जग-संसार का
१७.सुहितकर-भला करने वाली
१८.सब-सारे
१९.अहितहर-बुराई का नाश करने वाली
२०.श्रुति-सुनने में अच्छी लगने वाली
२१.सुखद-प्रिय लगने वाली
२२.संशय-शंका
२३.हरैं-हरने वाली
२४.भ्रम रोग-मिथ्यात्व-मोह रुपी रोग
२५.हर-दूर करके
२६.वचन-वाणी
२७.मुख चंद्रतैन-मुख चन्द्र-मंडल से
१८.झरे-झरते हैं
भावार्थ
मुनिराज ने अन्तरंग के १४ परिग्रह(मिथ्यात्व,क्रोध,मान,माया,लोभ,रति,अरति,शोक,भय,हास्य,जुगुप्सा,स्त्री वेद,नपुंसक वेद,पुन-वेद) और बाहर के १० परिग्रहों का त्याग किया होता है..यह अपरिग्रह महा व्रत है...वह मुनिराज प्रमाद न करते हुए,आलस्य न करते हुए..जीव दया के लिए चार-हाथ जमीन देखकर चलते हैं..जिससे किसी चींटी अदि जीव की हिंसा न हो..यह इर्या समिति है...मुनिराज हमेशा सबके लिए कल्याणकारी,सब विनाश को हरने वाली,कानों को प्रिय लगने वाली..और शंका अदि को हरने वाली वाणी बोलते हैं..और मिथ्यात्व-मोह रुपी रोग को हरने वाले वचन ऐसे प्रतीत होते हैं..जैसे की मुखारबिन्द से-मुख चन्द्र से अमृत झर रहे हों.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
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