६ ढाला
छठी ढाल
एषणा समिति,आदान निक्षेपण समिति और व्युत्सर्ग समिति
छियालीस दोष बिन सुकुल श्रावक तनै घर अशन को
लें तप बढ़ावन को नहीं तन पोषते तजि रसन को
शुची संयम ज्ञान उपकरण लखी कें गहें लखी कें धरें
निर्जन्तु थान विलोक तन मल मूत्र श्लेषम परिहरै
शब्दार्थ
१.छियालीस दोष-छियालीस प्रकार के दोष.
२. बिना-दूर करके
३.सुकुल-उत्तम कुल के श्रावक के यहाँ
४.तनै- यहाँ,श्रावक जहाँ निवास करता है
५.अशन-आहार
६.पोषते-पुष्ट करने के लिए नहीं
७.तजि-त्याग करते हैं
८.रसन-६ या उनमें से किन्ही रसों का
9शुची-शुद्धता का प्रतीक कमंडल
१०.संयम-संयम का प्रतीक पिच्ची
११.ज्ञान-ज्ञान का प्रतीक शास्त्र
१२.लखी कै-देख कर
१३.गहें-ग्रहण करते hain
१४.धरें-रखते हैं
१५.निर्जन्तु-जीव रहित
१६.थान-स्थान
१७.विलोक-देख कर के
१८.श्लेषम-खकार,अन्य मेल अदि
१८.परिहरैन-छोड़ते हैं
भावार्थ
सच्चे मुनिराज छियालीस दोषों की बिना सुकुल श्रावक के निवास स्थान पर आहार को लेते हैं..वह भी तपस्या को बढ़ाने के लिए..न की तन को पुष्ट करने के लिए...मुनिराज सिर्फ इसलिए आहार करते हैं..जिससे वह स्वाध्याय अदि काम अच्छे से कर पाएं..और मुनिराज आहार में रसों अदि का त्याग करते हैं..मतलब ६ रसो में से किसी एक रस का दो रस का या सारे रसों का त्याग करते हैं..यह एषणा समिति है..वह मुनिराज संयम का उपकरण पिच्छि,ज्ञान का उपकरण शास्त्र जी..और सुचिता का उपकरण कमंडल जीव दया की भावना से देख कर रखते हैं..और देख कर उठाते हैं..जिससे किसी जीव का घात ना हो..यह आदान निक्षेपण समिति है वह मुनिराज निर्जन्तु स्थान को देखकर ही..यानी की जीव रहित स्थान देखकर शरीर में से निकलने वाली मल,मैल,मूत्र,खकार अदि को छोड़ते हैं यह व्युत्सर्ग समिति है.इस तरह से पांच समितियों का वर्णन पूरा हुआ.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमों सदा देत हूँ ढोक.
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