Tuesday, July 19, 2011

6 DHAALA-CHATHI DHAAL-TEEN GUPTI AUR PANCHENDRIYA NIRODH VRAT

६ ढाला

छठी ढाल


तीन गुप्ति और पंचेन्द्रिय निरोध

सम्यक प्रकार निरोध मन वच काय आतम ध्यावते

तिन सुथिर मुद्रा देखि मृगगण उपल खाज खुजावते

रस रूप गंध तथा फरस अरु शब्द शुभ असुहावने

तिन में न राग विरोध पंचेन्द्रिय जय पद पावने


शब्दार्थ

१.सम्यक प्रकार-भली प्रकार से,यथार्थ प्रकार से

२.निरोध-प्रवर्ती को रोक कर

३.मन-वच-काय-मन वचन और काय को रोक कर

४.ध्यावते-ध्यान करते हैं

५.तिन-उनकी

६.सुथिर-शांत

७.मृग-गण-हिरन और अन्य जानवर

८.उपल-पत्थर

९.खाज-खुजली

१०.खुजवते-खुजाने लगते हैं

११.रस-रसना इन्द्रिय के विषय

१२.रूप-चक्षु इन्द्रिय के विषय

१३.गंध-घ्राण इन्द्रिय के विषय

१४.फरस-स्पर्शन इन्द्रिय के विषयों

१५.शब्द-शुभ असुहावने-कर्ण इन्द्रिय के विषय

१६.राग-विरोध-रतइ-आरती-शुभ और अशुभ भाव

१७.जयं-जीतने वाले

१८.पावने-प्राप्त करते हैं


भावार्थ

तब निर्ग्रन्थ मुनि..भली प्रकार से यथार्थ प्रकार से मन-वच-काय की प्रवर्ती को रोक कर आत्मा का ध्यान करते हैं...तोह उनकी शांत और सुथिर मुद्रा को देखकर मृग गण..उनकी इतनी शांत मुद्रा को देख कर,स्थिर मुद्रा को देख कर मृग अदि जो जानवर होते हैं...उनको शिला समझ कर,पत्थर समझ कर शरीर की खुजली को शांत करते हैं....यह त्रिगुप्ती हैं...निर्ग्रन्थ मुनि..रसना,स्पर्शन,चक्षु,घ्राण और कर्ण इन्द्रियों के विषय में राग द्वेष नहीं करते हैं..समता भाव रखते हैं....अच्छा आहार मिल गया तोह राग नहीं....और थोडा कम आहार मिला तोह द्वेष नहीं...करते हैं....सुन्दर..असुंदर की तरफ आकर्षित और अनाकर्षित नहीं होते...बदबूदार और खुशबूदार वस्तुओं में राग-द्वेष नहीं करते...इस तरह से पांचो इन्द्रियों को वश में करने वाले पंचेंद्रिया जय पद पाने वाले जिनेन्द्र कहलाते हैं..और जिनेन्द्र पद पाते हैं


रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा रचित

लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)


जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमों सदा देत हूँ ढोक.





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