६ ढाला
छठी ढाल
मुनियों के ६ आवश्यक और सात शेष गुण
समता सम्हारें थुति उचारें वंदना जिनदेव को
नित करैं प्रत्याख्यान प्रतिक्रमण तजें तन अहमेव को
जिनके न न्हौंन न दन्त धोवन लेश अम्बर आवरण
भूमहि पिछली रयनि में कछु शयन एकासन करन
शब्दार्थ
१.समता-समता भाव..सामायिक
२.सम्हारें-धारण करते हैं
३.थुति-स्तुति या स्तवन
४.उचारें-उचारते हैं
५.को-जिनेन्द्र भगवन की
६.नित-रोज
७.प्रत्याख्यान-पापों को तजने का निश्चय
८.प्रतिक्रमण-पापों का प्रायश्चित और क्षमा
९.तजें-त्यागते
१०.अहमेव को-ममत्व को
११.न्हौंन-नहाते नहीं हैं
१२.दन्त धोवन-दांत साफ़ नहीं करना
१३.अम्बर-वस्त्र,परिग्रह
१४.आवरण-pehente
१५.न-नहीं
१६.भुमाहि-जमीन पर
१७.पिछली रयनि-रात्रि के पिछले प्रहर में
१८.कछु-थोडा सा
१९शयन-निद्रा लेते हैं
२०.एकासन-एक करवट से
भावार्थ
वह मुनिराज ६ आवश्यक गुण पालते हैं..पहला रोज सामयिक करते हैं..और समता से रहते हैं..हर प्राणी से समता भाव रखते हैं...राग-द्वेष नहीं करते हैं..वह रोज चौबीस तीर्थंकरों की या सिद्ध भगवंतों की समूह रूप से स्तुति करते हैं..यह स्तुति है..तीसरा वह किन्ही एक तीर्थंकर की की वंदना करते हैं..वंदना से मतलब है अपने श्लोक खुद बना कर बोलते हैं...चौथा वह मुनि रोज प्रत्याख्यान करते हैं..पापों को तजने का नियाम लेते हैं या आगे से न करने का नियम लेते हैं..पांचवा प्रतिक्रमण करते हैं..और चता शारीर से मोह त्याग कर कायोत्सर्ग करते हैं...यह ६ आवश्यक हुए..अब सात-शेष गुण भी हैं..पहला वह मुनि स्नान नहीं करते हैं.दूसरा वह न दांत dhote हैं..तीसरा kinchit matra भी शरीर पर वस्त्र परिग्रह नहीं रखते हैं...चौथा वह रात्री के पिछले प्रहर में जमीन पर एक करवट से थोड़ी देर विश्राम करते हैं...बाकी के शेष गुण अगले दोहे में..
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा,डॉ शीतल चंद जैन)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक
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