६ ढाला
छठी ढाल
मुनियों के शेष सात गुण और राग द्वेष का अभाव
एक बार दिन में ले आहार खड़े अलप निज पान में
कंचलोच करत न डरत परिषह,सो लगें निज ध्यान में
अरि मित्र, महल मसान,कंचन कांच,निंदन थुति करन
अर्घावतरण असि प्रहारन में सदा समता धरन
शब्दार्थ
१.अलप-थोडा सा
२.पान-हाथ में
३.कांच लोंच-केश लोंच
४.परिषह-२२ प्रकार के परिषहों से
५.सो लगें-जब लग जाते हैं
६.अरि-दुश्मन
७.मित्र-दोस्त
८.महल-राज-महल-संपत्ति
९.मसान-शमशान
१०.कंचन-सोना
११.निंदन-बुरे करने वाला
१२.थुति करन-स्तुति करने वाला,प्रशंसा करने वाला
१३. अर्घावतरण-अर्घ चढाने वाला,पूजा करने वाला
१४.असि प्रहरण-तलवार से बार करने वाला
१५.सदा-हमेशा
१६.समता धरन-समता भाव,एक जैसा व्यवहार करते हैं
भावार्थ
मुनियों के बचे हुए शेष गुणों का वर्णन कर रहे हैं..वह मुनि एक बार दिन में आहार लेते हैं...वह भी थोडा सा..एक समय सीमा के अंतर्गत...वह मुनि भोजन खड़े होकर करते हैं..और निज हाथों से ही भोजन करते हैं..किसी वर्तन अदि का उपयोग नहीं करते हैं....वह मुनि केश लोंच करते हैं...(यानी की सिर और दाढ़ी के बालों का खींच कर त्याग करते हैं..न की कैंची अदि उपकरण से)..और परिषहों से नहीं डरते हैं..जो की २२ प्रकार के होते हैं...और हमेशा अपने आत्मा स्वाभाव में अपने आप में लींन रहते हैं....उन मुनियों के अन्दर राग-द्वेष का आभाव होता है..यानि की दुश्मन-दोस्त,महल-शमशान,सोना और कांच,निंदा करने वाला और प्रशंसा करने वाला,पूजा करने वाला और तलवार से बार करने वाला,प्रहार करने वाला...इन सब से एक जैसा समता का भाव रखते हैं..भेदभाव नहीं करते हैं..राग-द्वेष नहीं करते हैं.
रचयिता-कविवर श्री दौलत राम जी द्वारा रचित
लिखने का आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ शीतल चंद जैन जी)
जा वाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूँ ढोक.
No comments:
Post a Comment