६ ढाला
छठी ढाल
ग्रन्थ कर्ता की भावना
एक नव वसु एक वर्ष की तीज शुक्ल बैसाख
करयो तत्व उपदेश यह रखी बुधजन की बाख
लघु दीं तथा प्रमाद्तैं शब्द अर्थ की भूल
सुधि सुधार पढो सदा जो पाओ भव कूल
शब्दार्थ
१.एक नव वसु एक-१८९१ वर्ष की (1891 )
२.तीज शुक्ल बैसाख-बैसाख महीने की शुक्ल पक्ष की तीज
३.कार्यो-किया
४.तत्व उपदेश-तत्वों क उपदेश
५.लखी-देखकर
६.बुधजन-बुधजन कवी को देखकर
७.लघु दीं-अल्प बुद्धि
८.प्रमाद्तैं-आलस्य के कारण
९.शब्द-अर्थ-शब्द या उनके अर्थ बताने
१०.भूल-गलती
११.सुधि-बुद्धिमान
१२.भव कूल-संसार से तर जाओ.
भावार्थ
अब कविवर दौलत राम जी कह रहे हैं कि १८९१ (1891 ) वर्ष में वैसाख महीने कि शुला पक्ष कि तीज को यह तत्वों क उपदेश उन्होंने पूरा किया है..जिसके लिए उन्हें प्रेरणा बुधजन कवि से मिली है..वह हमसे कह रहे हैं कि अगर अल्प-बुद्धि तथा प्रमाद के कारण अगर शब्दों के अर्थ बताने में गलती हुई हो..तोह ज्ञानी जन,बुद्धिमान जन उन्हें सुधर कर पढ़ लें..और भव सागर से पार उतरें.
रचयिता-कविवर दौलत राम जी
लिखने क आधार-स्वाध्याय(६ ढाला,संपादक-पंडित श्री रत्न लाल बैनाडा जी,डॉ श्री शीतल चंद जैन जी)
(सम्पूर्ण ६ ढाला कि फेसबुक पे पोस्टिंग्स पूरी हुईं..अगर मुझसे अल्प बुद्धि या प्रमाद के कारण कविवर दौलत राम जी कि बात यहाँ तक पहुँचाने में कोई भूल हो(शब्द अर्थ कि भूल हुई हो) तोह बुद्धिमान लोग सुधार कर पढ़ें.)
मिथ्यातम नासवे को, ज्ञान के प्रकासवे को,
आपा-पर भासवे को, भानु-सी बखानी है ।
छहों द्रव्य जानवे को, बन्ध-विधि भानवे को,
स्व-पर पिछानवे को, परम प्रमानी है ॥
आपा-पर भासवे को, भानु-सी बखानी है ।
छहों द्रव्य जानवे को, बन्ध-विधि भानवे को,
स्व-पर पिछानवे को, परम प्रमानी है ॥
अनुभव बतायवे को, जीव के जतायवे को,
काहू न सतायवे को, भव्य उर आनी है ।
जहाँ-तहाँ तारवे को, पार के उतारवे को,
सुख विस्तारवे को, ये ही जिनवाणी है ॥
काहू न सतायवे को, भव्य उर आनी है ।
जहाँ-तहाँ तारवे को, पार के उतारवे को,
सुख विस्तारवे को, ये ही जिनवाणी है ॥
हे जिनवाणी भारती, तोहि जपों दिन रैन,
जो तेरी शरणा गहै, सो पावे सुख चैन ।
जा वाणी के ज्ञान तें, सूझे लोकालोक,
सो वाणी मस्तक नवों, सदा देत हों ढोक ॥
जो तेरी शरणा गहै, सो पावे सुख चैन ।
जा वाणी के ज्ञान तें, सूझे लोकालोक,
सो वाणी मस्तक नवों, सदा देत हों ढोक ॥
सबको मेरा साथ देने के लिए शुक्रिया.सबको जय जिनेन्द्र
जय जिनेन्द्र जय जिनवाणी माता..जय जिन धर्म..वीतराग धर्म
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