Friday, August 5, 2011

RAAVAN KA JANM AUR VIDHYA-SAADHANADI KA NIRDESH

रावण का जन्म और विध्यासाधन अदि का निर्देश

राजा रावण के विषय में जानने से पहले हमें थोडा राजा इन्द्र के बारे में भी जानना होगा..क्योंकि इनका रावण से बड़ा गहरा सम्बन्ध था,,वह सम्बन्ध मित्रता का नहीं,शत्रुता का था...जो की रावण की दो तीन पीढ़ियों से चला आ रहा था..

विजयार्ध पर्वत में राथुनुपुर नाम का नगर में सहस्त्रार  नाम का राजा राज्य करता था..रानी मान सुंदरी थी एक बार रानी का शरीर बहुत कमजोर हो गया..और रानी के मन में लज्जा के भाव देख सहस्त्रार ने कारण पुछा तोह रानी ने कहा की वह गर्भवती हैं..और ऐसी इच्छा हो रही है की इन्द्र जैसी सम्पदा भोगूँ.रानी के कहते ही राजा ने महाविद्या की मदद से इन्द्र जैसी संपत्ति हर जगह स्वर्ग जैसा माहोल..हाथी घोड़े की मदद से गुंजायमान..और इस तरह से पुत्र रत्न प्राप्त हुआ..उन्होंने इसलिए उसका नाम इन्द्र रखा..बचपन से ही सारे विद्याधर इन्द्र की आगया मानते थे..आगे जाकर इन्द्र ने नगरी में स्वर्ग जैसा माहोल रखा..पटरानी का नाम सची रखा..चारो दिशाओं में चार लोकपाल नियुक्त किये..चार निकाय के देव स्थापित किये...एक गोल मूंह वाला हाथी लिया..जिसका नाम ऐरावत हाथी रखा..सेनापति का नाम हिरण्यकेश रखा..यह सब इन्द्र ने किया यह सब विद्याधरों के साथ ही किया..और सारे सेना-सेनापति,हाथी,रानी,निकाय के देव अदि सब  विद्याधर ही थे..लेकिन माहोल इस तरह का बनाया जैसे स्वर्ग ही हो..असुर नगर के विद्याधरों का नाम असुरकुमार देव रखा..किन्नर नगर के विद्याधरों का नाम किनार देव...गन्धर्व नगर के विद्याधर का नाम गन्धर्व देव..इस तरह से ही चरों दिशाओं में चार लोकपाल नियुक्त किये जिनके नाम सोम,वरुण,कुबेर  और यम थे ..इस  तरह  से राजा इन्द्र खुद को स्वर्ग का इन्द्र मानकर वहां रहता था..उस समय लंका नगरी में माली नाम का राज्य करता था..जो बहुत मानी था...उसकी आज्ञा सब विद्याधर मानते थे..एक बार विद्याधरों  ने राजा इन्द्र की वजह से उसकी आज्ञा नहीं मानी.तोह माली,सुमाली,माल्यवान आदियों ने विज्यार्ध पर्वत पर हमला बोला..पूरी विद्याधरों की सेना आई और सारे राजाओं को आज्ञा पत्र भेजे..लेकिन किसी ने नहीं मानी तोह उन्होंने बाग़-वन महल अदि उजाड़े इस बात बात से सारे विद्याधर राजा सहस्त्रार की शरण में आये..तोह सहस्त्रार ने कहा की इन्द्र की शरण में गए...इन्द्र ने विद्याधर सेना के साथ आक्रमण किया..माली-सुमाली इन्द्र से बड़ी बहादुरी से लड़े..जब माली आक्रमण करने विज्यार्ध पर्वत  पर आ रहा था तबकई अवशगुन  हुए THE ..जिससे सुमाली ने मना भी किया लेकिन मान-कषय उन्हें वहां पर LE   आया..और अंत में माली हर गया..और मारा गया..और इन्द्र जीता..भाई की मृत्यु सुन  सुमाली और माल्यवान डर कर भाग आये और पाताल  लंका में आ गए..और छिपकर रहने लगे...
कौत्कुम्बल नगर की दो राज्य पुत्री थी कौशिकी और केकसी..कौशिकी का विवाह विश्रव से हुआ..जिससे उनका पुत्र हुआ जिसका नाम वैश्रवण रखा...वैश्रवण को इन्द्र ने पांचवा लोकपाल बनाया जिसे लंका नगरी में रखा..अब वह वहां आराम से रहता था..जिसके डर से अन्य विद्याधर डरे रहते थे..पाताल लंका में सुमाली का पुत्र हुआ रत्नश्रवा..रत्नश्रवा धर्म में निपुण ज्ञानी..सबका प्यारा,धार्मिक क्रियाएं..और अच्छे अच्छे कार्य..एक बार वन में एक विध्या सिद्ध करने  गया..उस समय कौत्कुम्बल नगर के राजा ने पुत्री केकसी को उसकी सेवा के लिए भेजा..जब रत्नश्रवा  को विद्या की प्राप्ति हुई...और केकसी उस पर मोहित हो गयीं..रत्नश्रवा ने वहीँ पर राज्य वसाया (नगर का नाम पुष्पान्तक था) और वहीँ पर विवाह कर रहने LAGA

वह वहीँ पर रह रहे थे..तब केकसी को तीन स्वप्न आये..१.पहला एक सिंह हाथियों के कुम्भ स्थल को विदारते हुए..रानी के मुख में जा रहा है...२.दूसरा सूर्या देखा जो अंधकार को हरते  हुए रानी के मुख में प्रवेश कर रहा है और तीसरा चन्द्रमा का प्रकाश देखा जो तिमिर को हारते हुए रानी के मुख में प्रवेश कर रहा है..इस तरह से रानी ने प्रातः पति को सपने सुनाये..राजा ने फल कहा की इस फल यह है की तीन पुत्र HONGE1.पहला पुत्र आठवा प्रतिवासुदेव होगा २.दूसरा पुत्र धर्म को धारण करने वाला होगा और तीसरा भी धर्म में निपुण,धार्मिक,सरल-सूद परिमानी होगा..उसमें से पहला कुछ क्रूर स्वाभाव का होगा..होंगे तीनो जिन धर्म को मानने वाले..लेकिन पहला पुत्र थोडा क्रूर और हठी होगा.

ऐसा ही हुआ..जब पहला पुत्र गर्भ में था तब रानी को ऐसा लगा जैसे की शत्रु के ऊपर पैर रखूं..आईने की वजाय तलवार में मुख देखती ..मानी हो गयी,हठी हो गयी..इस प्रकार पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ..जिसका नाम उन्होंने "रावण" रखा...रावण को देखते ही बाल क्रीडा से भय उत्पन्न होता था..बचपन से शक्तिशाली पुत्र था..दुसरे पुत्र कुम्भकरण हुए तीसरी पुत्री हुई चन्द्रनखा हुई और चौथे पर विभीषण  नाम के  पुत्र हुए..तीनो का जैसा स्वाभाव बताया था ..वैसे ही थे...एक बार चारणऋद्धी धारी मुनिराज ने कहा भी था की तेरे यहाँ शलाका पुरुष उत्पन्न होंगे..एक बार वहीँ पर एक बार रावण के ऊपर से वैश्रवण (जो लोकपाल था) उसका विमान निकला..तब रावण ने माँ से पुछा की माँ यह कौन था..तब माँ कहती हैं की यह तेरे दादा जी के भाई के हत्यारे राजा इन्द्र का लोकपाल है..इसने लंका को वश में कर रखा है..इसलिए हम यहाँ रहते हैं..और रानी अपने दुःख भरे विचार पुत्रों से व्यक्त करने लगीं तभी विभीषण  ने भाई रावण के गुण कहे..कहा की रावण की भुजा में अतिबल है अदि अनके व्याखाएं दी..रावण ने कहा की मैं अकेला ही सम्पूर्ण विज्यार्ध पर्वत की दोनों श्रेणी को संभाल लूँगा...और विभीषण ने भी कहा था की माँ तू क्या क्षणिक इन्द्रिय सुख के लिए दुखी हो रही हो?...इस तरह से पूरा वर्णन दिया...
भीमवन में जा विध्यासाधन अदि का करना.
जिस  प्रकार  मुनि तप साधना करते हैं उसी प्रकार विद्याधर विद्याएं सिद्ध करते हैं..इसी प्रकार रावण,कुम्भकरण और विभीषण भीम वन नाम के वन में vidhya सिद्ध करने चले गए..तीनों ने शुद्ध श्वेत वस्त्र पहनकर अति भयानक वन..जिसमें देव भी भ्रमण नहीं करते हैं...व्यन्तरों के समूह जहाँ रहते हैं..बड़े स्थिर रूप से तीनों विद्या सिद्ध करने बैठे..उसी समय जम्बू-द्वीप का अधिपति अनावृति नाम का देव..कई देवियों के साथ उनको तप करते हुए देखा..देवियाँ सुन्दर रूप से आकर्षित होकर..तरह के तरह के धर्म से डिगाने वालें उपदेश देती रही..ऐसा कहने लगी उन तीनों से "की क्या इसमें समय बर्बाद कर रहे हो,कहाँ यह जवानी,कहाँ भोग-विलास,तुम चित्र हो गए हो..अभी भी मौका है" लेकिन तीनों बिलकुल भी चलायमान नहीं हुए...अनावृति देव ने कहा की इस जम्बू-द्वीप का अनाधिपति देव तोह मैं हूँ..तोह तुम मेरे अलावा किस को पूज रहे हो"..ऐसा देखकर उसने तरह -तरह के उपसर्ग किये..किन्नर देवों की सेना बुलाई...पहाड़ों को फेकने का दृश्य बनाया..डरावना काल जैसा माहोल बनाया..भयंकर दिखने वाले अस्त्र-शस्त्र फेकें..लेकिन तीनों भाई तस से मस अपने ध्यान में डिगे रहे..फिर देव ने माया रची रत्नश्रवा का सर काट कर ले आये..व्याकुल करने की कोशिस की..माया से भीलों की सेना उत्पन्न करी..और केकसी को ले आये..केकसी को कहलवाया की पुत्र तुम तोह कहते थे की तुम राज्य दिल्वाओगे..दोनों श्रेणी के बल को अकेले जीतोगे..तुम जैसे कायर हो,बहन चन्द्रनखा को यह भील उठाकर ले जा रहे हैं...लेकिन रावण तस से मस नहीं हुए..विभीषण और कुम्भकरण थोड़े व्याकुल हुए..जिसके कारण रावण को सहस्त्र रिद्धि मंत्र-उच्चारण से पहले ही मिल गयीं..यह सब पुण्य का प्रभाव होता है (कपिल ब्रहमचारी जी ने लिखा की यह वीरंतराय कर्म के क्षयोप्सम से होता है) ...रावण को खूब सारी ऋद्धि मिली (मद नासनी,काम-दायिनी,काम गामिनी,दुर्निवार,अनिमा,लगिमा  अदि अनेक ऋद्धिया मिलीं).कुम्भकरण को पांच ऋद्धियाँ सिद्ध हुई..और विभीषण  को चार ऋद्धियाँ सिद्ध हुईं)  .रावण ने जितना उपसर्ग सहन किया अगर उतना उपसर्ग कोई महामुनि सहन करते तोह अष्टकर्म  को स्वाहा करके भव बंधन से मुक्त होते)..रावण की तपस्या को देख अनावृति देव ने रावण की स्तुति की..और प्रसन्न हुआ और कहा की"तुम बहुत महान  हो,तुम मुझे तब बुलाओगे मैं स्मरण मात्र में ही आ जाऊंगा)..यह जिन-वंदना का प्रभाव था..इस प्रकार रावण वापिस महल में आये थे तोह सब बहुत हर्षित हुए...दादा जी सुमाली अदि हर्षित हुए....पिता ने गले लगाया..माता से गल्रे  मिला..प्रणाम किया..सारे विद्याधर खुश हुए,सेवकों का सम्मान किया...वानर वंशी बधाई देने आये...सुमाली ने कहा की कैलाश पर्वत पर चारण ऋद्धि धारियों से पुछा था की हमें लंका कब होगी  तब उन्होंने यह ही कहा था की जो पुत्र से पुत्र होगा..वह तीनखंड का राजा होगा..इस तरह से बोला था) सबको एक नयी आस बांध गयी लंका को वापिस मिलने की..सब रावण से ही आस लगा रहे थे की यह ही लंका को वापिस दिलाएगा..राजा मेघवाहन के वंश के समय की लंका नगरी अब हमें हमारे पास वापिस आ जाएगी.)..
रावण को जो कुछ भी मिला पूर्व उपाजित कर्मों की वजह से था..नया कुछ भी नहीं था...सब कुछ शुब-अशुभ फल के उदय से मिला..न ही किसी देवता ने उन्हें कुछ दिया...आयु कम हो या ज्यादा यह मायने नहीं रखती ...मनुष्य योनी,सुकुल और जिनवाणी सुनने,पढने का मौका नहीं गवाना चाहिए..क्योंकि यह मौका एक बार छूट गया तोह वापुस ठीक उसी प्रकार नहीं मिलेगा जिस प्रजार समुद्र में गिरी हुई मणि वापिस  बड़ी दुर्लभता से मिलती.इस तरह से  रावण का जन्म और विद्या साधन अदि का वर्णन हुआ.

जो कुछ भी लिखा है श्री आचार्य रविसेंविरचित पदम्-पुराण ग्रन्थ के स्वाध्याय के आधार पर लिखा है..आधार शास्त्र का है..शब्द बहुत से मैंने खुद के डाले हैं..और एक आध बातें ज्यादा लिखीं हैं.

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