असुर संगीत नाम के नगर में राजा मय नाम का विद्याधर राज्य करता था..उसकी एक मंदोदरी नाम किया अत्यंत गुणवान और रूपवान पुत्री थी...माँ ने विवाह के लिए राजा से कहा ...मंत्रियों से सलाह ली तोह उन्होंने कहा की विद्याधरों के राजा इन्द्र से कराएं..लेकिन राजा मय की इच्छा थी की वह रावण से विवाह कराएं क्योंकि उन्होंने बहुत सारी विद्याएं बहुत जल्दी ही सिद्ध हो गयीं थी..मंत्रिओं ने राजा के प्रस्ताव को माना..उस... समय रावण भीमवन में खडगहास विद्या सिद्ध करने गए थे..और विद्या सिद्ध करके सुमेरु पर्वत पर चैत्यालय की वंदना करने गए THE ..उस समय राजा मय भीमवन में आते हैं..भीम वन में स्वयंप्रभ नगर जो राजा ने बसाया था वहां ऊँचा महल देखते हैं..और महल में पहुँचते हैं..महल में रावण की बहन चन्द्रनखा बैठी होती हैं..तोह वह उनसे पूछते हैं की "आप वनदेवी जैसी लगने वाली कौन हो"...तोह वह अपना परिचय देते हुए बड़ा आदर सत्कार करती हैं...तभी रावण आकाश मार्ग से महल की और आ रहे होते हैं..रावण के आते ही सब खड़े होते हैं..रावण भी बड़ा आदर सम्मान करते हैं..फिर राजा मय मंदोदरी को सामने लाते हैं..मंदोदरी को देख रावण मोहित हो जाते हैं..और पूछते हैं की यह मेरे सामने ..कौन सी देवी खड़ी हैं. तभी राजा मय रावण के हाव-भाव जानकार उनसे कहते हैं की इन्ही से आप विवाह कीजिये..इस प्रकार उसी दिन विवाह कर लेते हैं..और स्वयं प्रभ नगर में रहते हैं...रावण की हाजोरों रानियों में मंदोदरी पटरानी हुईं...वह अन्य रानियों के साथ क्रीडा करते..विध्यायों के माध्यम से छोटा-रूप बना लेते कभी छिप जाते ..इस प्रकार क्रीडा करते हैं .एक बार रावण मेघवर पर्वत पर जाते हैं तोह वहां पे ६ हजार स्त्रियाँ क्रीडा कर रही होती हैं..उन्हें देखकर रावण क्रीडा करते हैं सब रावण के रूप पर मोहित हो जाती हैं..और विवाह कि इच्छा करती हैं..रावण सब से विवाह करते हैं..लेकिन उनको जो सहेलियां और खोजा होती हैं वह राजाओं से जाकर कह देती हैं..जिससे राजा सेना बनाकर रावण से लड़ने जाते हैं..लेकिन रावण क्षण-भर में ही उन्हें हरा देते हैं..और सारे राजा हथियार डालकर राजा सुरसुन्दर के पास जाते हैं...राजा सुरसुन्दर क्रोध रुपी आग में जलकर रावण पर वार करता हैं तव सारी रानियाँ(जो उन राजाओं कि पुत्री होती हैं)..उनसे निवेदन करती हैं..कि आप किसी उचित स्थान पर छिप जाओ..लेकिन रावण कहता है कि तुम अभी मेरी शक्ति नहीं जानती हो....और इस तरह रावण सारे राजाओं को नागफास में बाँध देता है...पुत्रिओं के निवेदन पर छोड़ता hai .और सम्मान करता है और कहता है कि आप हमारे परम सम्बन्धी हैं....इस तरह रावण कि शूरवीरता देखकर उनको विवाह कि स्वीकृति दे-देते हैं.
कुम्भकरण(भानुकरण) का विवाह कुम्भ्पुर की राज्य पुत्री तडिन्नमाला से हुआ...विभिसन जिन धर्मी..धर्म में निपुण थे...विभीषण का विवाह राजीवसरसी..जो ज्योतिप्रभ नगर कि राज्य पुत्री थी...उससे हुआ.
मंदोदरी गर्भवती हुईं ..पिता के यहाँ उनके पुत्र हुए इन्द्रजीत..इन्द्रजीत का नाम बहुत प्रसिद्द हुआ...दूसरी बार गर्भवती होने पर पुत्र हुआ पुत्र का नाम मेघनाथ रखा.
वैश्रवण,जो की राजा इन्द्र के लोकपाल थे,और लंका की निगरानी करते थे,वह जिन-जिन नगरियों में राज्य करता था..वहां से कुम्भकरण सारा माल स्वयंप्रभ नगर में ले आते थे...एक बार वैश्रवण ने एक दूत राजा सुमाली के पास भेजा और कहा की आप लोकनीति को जाने वाले ज्ञाता हो..यह बातें शोभा नहीं देती की आप के पुत्र हमारी नगरियों में से माल-चुराकर ले जाते हैं...आप राजा इन्द्र को नहीं जानते हैं..क्या आप अपने भाई माली की मौत के बारे में भूल गए...धीरे-धीरे पाताल लंका से सरक-सरक कर यहाँ पहुंचे हो..?इस तरह से तरह की अभिमानजनक बातें कहता है..राजा इन्द्र की ताकत का वर्णन करता है...जिससे रावण में क्रोध रुपी ज्वाला उत्पन्न होती हैं..और कहता है कौनसा है राजा इन्द्र जिसमें इतनी शक्ति है..कि हमारा कुछ बिगाड़ सके..यह शायद रावण कि ताकत को नहीं जानता है"...तलवार से दूत पे वार करने ही वाला होता है तभी विभीषण उन्हें समझा कर कहते हैं "कि यह नीति नहीं है..कि दूत को मारा जाए..दूत तोह राजा कि भाषा बोलता है..यह शूरवीरों को शोभा नहीं देता है..कि दूत कि हिंसा करें"..यह बात तोह राजा ने बोली है न..इस तरह से तरह-तरह कि बातें करके क्रोध-रुपी ज्वाला को शांत कर देते हैं..जब दूत सन्देश लेकर वैश्रवण राजा तक जाता है..वैश्रवण राजा क्रोधित होता है..उधर रावण अदि सब लोग क्रोधित होते हैं..और युद्ध के लिए जाते हैं..रावण के सर पर सफ़ेद छत्र होता है...महाबलशाली रावण शत्रु की सेना को परस्त कर देते हैं..तभी वैश्रवण विरक्त हो जाते हैं और पछताते हैं रावण से कहते हैं के हे भरता यह सारे भौतिक सुख,इन्द्रियजन्य सुख क्षणिक हैं...दुःख के कारण हैं..नरक का कारण हैं..इसलिए हम मैत्री करे..लेकिन रावण कहते हैं की ऐसा है तोह अपनी हार स्वीकार कर लो..लेकिन वैश्रवण नहीं करते हैं..और रावण वैश्रवण को मूर्छित कर देते हैं..वैश्रवण को वापिस ले जाया जाता है.रावण जीत जाते हैं..और वैश्रवण को तब होश आता है...तोह वह मुनि दीक्षा ले लेते हैं..इधर रावण लंका को जीत जाते हैं..और पुरे परिवार कुम्भकरण,विभीषण,इन्द्रजीत,मेघनाथ सबके साथ लंका नगरी पर आते हैं..रावण किसी से कुछ नहीं लेते हैं सिर्फ वैश्रवण के पास जो पुष्पक विमान था..उसे छोड़ कर...इस प्रकार अब लंका नगरी वापिस आ जाती है..राक्षश वंशी रावण जिसे पाकर सुमाली बड़े हर्षित होते हैं..एक बार रावण सुमाली से पूछते हैं की इस पहाड़ के ऊपर सरोवर भी नहीं है तब भी कमल खिल रहे हैं..और कमल तोह चंचल होते हैं..यह तोह चंचल भी नहीं हैं तभी दादा सुमाली "ॐ नमः सिद्धेभ्य" ऐसा बोलकर कहते हैं की यह कमल नहीं हैं यह तोह हरीषेण चक्रवती द्वारा बंबाये हुए जिन मंदिर हैं..और वह रावण से निचे उतारकर नमस्कार करने के लिए कहते हैं..जिससे रावण ऐसा ही करते हैं..रावण फिर दादा सुमाली से हरीषेण चक्रवती की कथा सुनते हैं..और सुमाली पूरी कथा कहते हैं..और अति हर्षित होते हैं रावण ऐसे चक्रवती की कथा सुनकर..कुछ समय बाद सब लोग दरबार में बैठे होते हैं तभी अजीब सी गर्जना होती हैं.जिससे सब डर जाते हैं..सिपाही चुप जाते हैं..हाथी रस्सी खीचने लगते हैं..तब रावण सेनापति को देखने के लिए बोलते हैं..तब सेनापति रावण को देखकर बताते हैं की अति शक्तिशाली सौन्दर्यवान हाथी है..जिसे राजा इन्द्र भी नहीं पकड़ पाया..तब रावण कहते हैं की यह बहुत आसान है और हाथी को पकड़ने के लिए जाते हैं..और बड़ी आसानी से हाथी को पकड़ लेते हैं..और उस हाथी का नाम त्रैलोक्यमंडन रखते हैं..इस प्रकार रावण उस हाथी के साथ प्रवेश करते हैं..और सब अति हर्षित होते हैं..एक बार दरबार में एक दूत वानर VANSHION की और से आता है..और कहता है की यह वानर वंश आप ही की कृपा से चल रहा है..लेकिन इन्द्र का लोकपाल यम पाताल-लंका में घुस या और राजा सूर्यरज और रक्षरज से घमासान युद्ध हुआ..और सारा राज्य क्षीण लिया उस पाई ने उन दोनों को अपनी खतरनाक नरक जैसी कैद में दाल दिया है..जहाँ वैतरणी अदि भी बनायीं हैं...इसलिए आप उनकी रक्षा कीजिये..और ऐसा कहकर दूत बेहोश हो जाता है..रावण शीतोपचार से उसे ठीक करते हैं..और दूत की बातें सुन रावण उस यम पे आक्रमण करने चले जाते हैं...घमासान युद्ध करते हैं...जब यम की सेना हार रही होती है...यम डर कर राजा इन्द्र के पास भागते हैं..इन्द्र से कहते हैं की वैश्रवण तोह मुनि बन गया..अब मैं क्या करूँ..तब राजा इन्द्र क्रोधित होते हैं..और लड़ने के लिए तैयार होते हैं तभी उनके बुद्धिमान मंत्री रावण की विशेषताओं के बारे में बताते हैं..और शक्ति के बारे में बताते हैं..जिससे इन्द्र शांत होते हैं और यम को रथनुपुर में रुकने के लिए कहते हैं..
उधर रावण सूर्यरज को किह्कंध पुर देते हैं..और रक्षरज को किह्न्कुपुर देते हैं..रावण इस प्रकार जब लंका नगरी में वापिस आते हैं..उनका भव्य स्वागत होता है..फूल बरसाए जाते हैं..चारो तरफ जयजयकार होती हैं..वृद्ध जनों का सम्मान होता है..सब प्रफुल्लित होते हैं..हर्षित होते हैं..राज्य के लोग ऐसे रक्षक को पाकर धन्य होते हैं..इस प्रकार इस पुण्य के योग्य से रावण लंका में अपना अस्तित्व बनाते हैं..सब के द्वारा सम्मानीय हो जाते हैं..पुण्य के योग से क्या संभव नहीं है?
इसलिए यह विषयों की आग हमेशा जलती रहती है..हमेशा धर्म ही काम आता है..इसलिए ऐसे १८ प्रकार के दोषों से रहित भगवन के द्वारा बताये हुए धर्म को ही धारण करना चाहिए.
इस प्रकार रावण के कुटुंबअदि का वर्णन पूरा हुआ....
यह लिखने का आधार श्री रविसेन आचार्य द्वारा विरचित श्री पदमपुराण है..शास्त्र में तोह बहुत ज्यादा दे रखा है..मैंने बहुत कम शब्दों में लिखा है..अगर कोई लिखने में या अन्य कोई भूल हो तोह क्षमा करें.
कुम्भकरण(भानुकरण) का विवाह कुम्भ्पुर की राज्य पुत्री तडिन्नमाला से हुआ...विभिसन जिन धर्मी..धर्म में निपुण थे...विभीषण का विवाह राजीवसरसी..जो ज्योतिप्रभ नगर कि राज्य पुत्री थी...उससे हुआ.
मंदोदरी गर्भवती हुईं ..पिता के यहाँ उनके पुत्र हुए इन्द्रजीत..इन्द्रजीत का नाम बहुत प्रसिद्द हुआ...दूसरी बार गर्भवती होने पर पुत्र हुआ पुत्र का नाम मेघनाथ रखा.
वैश्रवण,जो की राजा इन्द्र के लोकपाल थे,और लंका की निगरानी करते थे,वह जिन-जिन नगरियों में राज्य करता था..वहां से कुम्भकरण सारा माल स्वयंप्रभ नगर में ले आते थे...एक बार वैश्रवण ने एक दूत राजा सुमाली के पास भेजा और कहा की आप लोकनीति को जाने वाले ज्ञाता हो..यह बातें शोभा नहीं देती की आप के पुत्र हमारी नगरियों में से माल-चुराकर ले जाते हैं...आप राजा इन्द्र को नहीं जानते हैं..क्या आप अपने भाई माली की मौत के बारे में भूल गए...धीरे-धीरे पाताल लंका से सरक-सरक कर यहाँ पहुंचे हो..?इस तरह से तरह की अभिमानजनक बातें कहता है..राजा इन्द्र की ताकत का वर्णन करता है...जिससे रावण में क्रोध रुपी ज्वाला उत्पन्न होती हैं..और कहता है कौनसा है राजा इन्द्र जिसमें इतनी शक्ति है..कि हमारा कुछ बिगाड़ सके..यह शायद रावण कि ताकत को नहीं जानता है"...तलवार से दूत पे वार करने ही वाला होता है तभी विभीषण उन्हें समझा कर कहते हैं "कि यह नीति नहीं है..कि दूत को मारा जाए..दूत तोह राजा कि भाषा बोलता है..यह शूरवीरों को शोभा नहीं देता है..कि दूत कि हिंसा करें"..यह बात तोह राजा ने बोली है न..इस तरह से तरह-तरह कि बातें करके क्रोध-रुपी ज्वाला को शांत कर देते हैं..जब दूत सन्देश लेकर वैश्रवण राजा तक जाता है..वैश्रवण राजा क्रोधित होता है..उधर रावण अदि सब लोग क्रोधित होते हैं..और युद्ध के लिए जाते हैं..रावण के सर पर सफ़ेद छत्र होता है...महाबलशाली रावण शत्रु की सेना को परस्त कर देते हैं..तभी वैश्रवण विरक्त हो जाते हैं और पछताते हैं रावण से कहते हैं के हे भरता यह सारे भौतिक सुख,इन्द्रियजन्य सुख क्षणिक हैं...दुःख के कारण हैं..नरक का कारण हैं..इसलिए हम मैत्री करे..लेकिन रावण कहते हैं की ऐसा है तोह अपनी हार स्वीकार कर लो..लेकिन वैश्रवण नहीं करते हैं..और रावण वैश्रवण को मूर्छित कर देते हैं..वैश्रवण को वापिस ले जाया जाता है.रावण जीत जाते हैं..और वैश्रवण को तब होश आता है...तोह वह मुनि दीक्षा ले लेते हैं..इधर रावण लंका को जीत जाते हैं..और पुरे परिवार कुम्भकरण,विभीषण,इन्द्रजीत,मेघन
उधर रावण सूर्यरज को किह्कंध पुर देते हैं..और रक्षरज को किह्न्कुपुर देते हैं..रावण इस प्रकार जब लंका नगरी में वापिस आते हैं..उनका भव्य स्वागत होता है..फूल बरसाए जाते हैं..चारो तरफ जयजयकार होती हैं..वृद्ध जनों का सम्मान होता है..सब प्रफुल्लित होते हैं..हर्षित होते हैं..राज्य के लोग ऐसे रक्षक को पाकर धन्य होते हैं..इस प्रकार इस पुण्य के योग्य से रावण लंका में अपना अस्तित्व बनाते हैं..सब के द्वारा सम्मानीय हो जाते हैं..पुण्य के योग से क्या संभव नहीं है?
इसलिए यह विषयों की आग हमेशा जलती रहती है..हमेशा धर्म ही काम आता है..इसलिए ऐसे १८ प्रकार के दोषों से रहित भगवन के द्वारा बताये हुए धर्म को ही धारण करना चाहिए.
इस प्रकार रावण के कुटुंबअदि का वर्णन पूरा हुआ....
यह लिखने का आधार श्री रविसेन आचार्य द्वारा विरचित श्री पदमपुराण है..शास्त्र में तोह बहुत ज्यादा दे रखा है..मैंने बहुत कम शब्दों में लिखा है..अगर कोई लिखने में या अन्य कोई भूल हो तोह क्षमा करें.
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