Wednesday, August 10, 2011

SUGREEV AUR SUTARA KA VRATANT

सुग्रीव और सुतारा का वृतांत,राजा सहस्त्र-रश्मि और  राजा अरण्य की विरक्ति


ज्योति पुर नगर के राजा अग्निशिखा की पुत्री थी सुतारा कैसी हैं सुतारा अत्यंत रूपवान,..राजा चक्रांक का पुत्र साहस  गति उस पर कामुक था..और राग की आग में जलता था..सुग्रीव भी सुतार से आकर्षित था..राजा दुविधा में पड़ गया की किस्से विवाह  करवाए..महा ज्ञानी मुनिराज SE पुछा..मुनिराज ने कहा साहस गति की आयु अल्प है...राजा ने विवाह सुतार का सुग्रीव से करा दिया..उनके अंग और अंगद  नाम के दो पुत्र हुए... साहस गति  सुतारा के विवाह की बात जान अति क्रोधित हो गया..और विषम गुफा में रुप्परिवार्तनी विद्या सिद्ध करने चला गया..इधर रावण ने अपनी दिग्विजय यात्रा में द्वीप में अंतरद्वीप के   राजाओं को जीता..हर कोई आता रावण कोप्रणाम करते और रावण के साथ जुडजाते...सारे अंतरद्वीपों के राजाओं पे विजय पाकर रावण ने बहन चंद्रनखा  के यहाँ  रात्री में विश्राम किया..चंद्रनखा ने पति  खरदूषण  को जगाया ..खरदूषण  ने    रावण के पास जाकर उनकी पूजा की...और अपनी साड़ी विद्याओं को और सेना को रावण ने दिखाया...रावण अति हर्षित हुए..और खरदूषण को अपना सेनापति बना लिया..दिन पर दिन रावण की सेना दूनी होती जा रही थी..दिग्विजय की यात्रा चल ही रही थी.रावण..रावण के मन में विचार आया की रथनुपुर के राजा इन्द्र को जीतेगा इसी भाव के साथ..वह आगे इन्द्र को भी जीतने के भाव LEKAR आगे बढ़ते जा रहे थे..एक बार वह नदी किनारे पहुंचे..तोह वहां पे महिष्मति  नगर  के राजा सहस्त्र-रश्मि(नाम प्रिंट नहीं हो पा रहा है) ...अपनी रानियों के साथ क्रीडा कर रहे थे..वह रानियाँ अति रूपवान थीं..जैसे किसी ने पानी से अंजन धोया तोह नदी श्याम पद गयी..किसी ने चन्दन लगाकर नदी में स्नान किया तोह नदी का रंग स्वर्ण हो गया..और ऐसी रानियों के साथ भूमीगोचरी राजा सहस्त्र..क्रीडा कर रहे थे..किसी को स्पर्श करते ..और तरह तरह की क्रीडा करते..वाहन रावण पहुंचे तोह..नदी के किनारे ही विशुद्ध भावों से जिनेन्द्र भगवन की महा द्रव्यों से पूजा करने लगे..रावण पूजा कर रहे थे..मंत्र बोल रहे थे..राजा सहस्त्र...की क्रीडा के कारण नदी का जल पूजा की सामिग्री के पास गिर गया...जिससे पूजा में अड़चन आई..रावण क्रोधी होकर बुला..की कौन है वह मूर्ख जो मुझे पूजा नहीं करने दे रहा है..सेनापति राजा सहस्त्र..के बारे में बताते हैं और उनके पराक्रम के बारे में बताते हैं..इससे रावण उस राजा को बुलाने के लिए कहते हैं...ऐसी बात सुन राजा सहस्त्र..अपने बड़े-बड़े योद्धाओं के साथ लड़ने के लिए आ जाते हैं..तब ही वहां देव वाणी होती है की कहाँ यह शक्तिशाली विद्या के धारी विद्याधर योद्धा और कहाँ यह भूमीगोचरी सेना..इनको तोह विद्याधर हाल ही जीत लेंगे..ऐसा कहकर बहुत से विद्याधर लज्जित हुए..और पीछे हट गए..लेकिन बहुत से लड़ने लगे...भूमीगोचरी राजा की सेना के योद्धाओं ने  रावण की सेना को जीतने लगे..जिससे खबर रावण तक पहुंची रावण भी युद्ध करने आये..रावण ने हाल ही..सहस्त्र..को बाँध दिया... 
उधर सहस्त्र..के पिता शतबाहू जो विरक्त होकर मुनि दीक्षा ली थी..उन्हें जंघा-चारण ऋद्धि प्राप्त हुई..इस तरह से सहस्त्र..की खबर सुन रावण को संबोधित करने वहां पहुंचे..रावण ने बड़ा आदर किया...अति हर्षित हुआ ..अपने आपको धन्य माना और तरह-तरह से स्तुति की...मुनिराज ने शलाका पुरुष जानकार कहा की आप अत्यंत वैभव के धारी हैं आप शलाका पुरुष हैं इन राजाओं को हाल जी जीत सकते हैं..इसलिए महान राजाओं का कर्त्तव्य होता है की शत्रु को जीतकर छोड़ दे..बंधन में न रखे ...रावण ऐसा सुनकर कहते हैं हे राजा मैं रथनुपुर के राजा इन्द्र से युद्ध करने जा रहा हूँ..उनसे मेरा द्वेष है क्योंकि उन्होंने मेरे दादा जी के भाई राजा माली का बध किया था..इसलिए मेरा उनसे द्वेष..मैं रास्ते में सरोवर के किनारे कुछ रुका हुआ था..और जिनेन्द्र भगवन की पूजा कर रहा था तब इसने पूजा में अड़चन डाल दी...मुनि के कहने पे रावण सहस्त्र-रश्मि राजा को छोड़ने का आदेश देते हैं..और वह राजा पिता जो मुनिराज हैं उनके चरणों में आते हैं..रावण उनसे कहते हैं..की aajse ham teen भाई the tum चौथे भाई हो..लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद विरक्त हो जाते हैं और धिक्कारते हैं खुद को..की मैं कितना मूर्ख हूँ..जो इन्ही में पड़ा हुआ था..यह विषय कषय क्षणभंगुर हैं और प्रकट दुःख हैं..और मुनि दीक्षा लेते हैं..मुनि दीक्षा लेने से पहले मित्र राजा अरण्य को भी दीक्षा का सन्देश भेजते हैं(दोनों राजाओं ने एक दुसरे से वादा किया था..की अगर वह मुनि दीक्षा लेंगे..तोह वह उन्हें खबर करेंगे..और अगर राजा अरण्य मुनि दीक्षा लेंगे तोह उन्हें खबर सुनकर)..मित्र की खबर सुन राजा अरण्य अनुमोदना हैं..सच्चे मित्र की मिसाल देते हैं..कहते हैं की सच्चे मित्र वह ही हैं जो संसार से तारें और उन्हें शत्रु सामान जानो..जो संसार बढ़ाने में सहाई हों..रावण राजा सहस्त्र-रश्मि के मित्र सामान nikle..क्योंकि उन्ही के कारण उन्हें वैराग्य हुआ....ऐसा जानकार राजा अरण्य भी भोगों से विरक्त हो कर मुनि हुए..और व्रतों को धारण किया.

इस प्रकार यह सुग्रीव और सुतार,राजा सहस्त्र-रश्मि और राजा अरण्य की विरक्ति का कथन हुआ..
संसार में विषय भोग-अस्थिर हैं .आग के सामान जलाते हैं...दुःख का कारण है..जो जिनेन्द्र dev के द्वारा बताये हुए मोक्ष मार्ग को स्वीकार करते हैं वह आठो  कर्मों को भस्म  करके  निराकुल  आनंद  सुख को प्राप्त होते हैं

लिखने का आधार आचार्य श्री रविसेन स्वामी द्वारा विरचित श्री पदम् पुराण हैं..शास्त्र में तोह बहुत ज्यादा इस विषय पर दे रखा है..मैंने बहुत कम शब्दों में बताने की कोशिश करीहै...इसलिए अन्य कोई गलती हो...भाषा सम्बंधित  गलती हो..या कोई  अन्य गलती हो तोह  क्षमा प्रार्थी  हूँ.

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