Thursday, August 11, 2011

raaja maarut ke yagya ka vinaash aur raavan ki digvijay ka niroopan

राजा मरुत ke यज्ञ ka  विनाश और रावण की दिग्विजय ka    निरूपण        
रावण ने पृथ्वी के मानी राजाओं को जीता..बहुत से अपने आप सर झुकाते हुए..रावण ने जगह-जगह जिन चैत्यालयों को बनबाया,जिन मंदिर बनवाये..कई मंदिरों का जीर्णोधार कराया..श्रावक आदियों की खूब विनय करते थे..जो मिथ्यमार्ग पर चलते थे..उन्हें जिन धर्मं की शिक्षा दी..और जैन धर्म फैलाया...रावण इन्द्र को जीतने के मार्ग में ही थे...रावण ने राजपुर के राजा मरुत के बारे में भी सुन रखा था जो बहुत बलवान था..और पशु बलि चढ़ाता था..यज्ञ में..जीवों की हिंसा कराता था..तब राजा श्रेणिक ने गौतम गंधार से पुछा-हे भगवन यह यज्ञ प्रथा कैसे चालु हुई..और यह कैसी प्रथा जो इतने जीवों की हिंसा karaaye..तब गौतम गणधर  कहते हैं की इच्छवाकू वंश में अयति नाम का राजा हुआ जिसका वसु नाम का पुत्र हुआ..राजा अयति ने वसु को क्षीरकदम्ब नाम के ब्राह्मन के पास पढने भेजा..वहीँ पे उसका पुत्र पापी पर्वत भी पढता था..और वहीँ पे एक नारद नाम का एक ब्राह्मन भी पढता था...क्षीरकदम्ब सर्व शास्त्र के ज्ञाता थे..उनकी स्वस्तिमति नाम की पत्नी थी..वह उन तीनों को ज्ञान देते थे..एक बार वह चारों लोग एक जंगले में गए..तोह वहां चारण ऋद्धि धारी मुनि आये..तब मुनियों ने बोला की तुम चारों में से दो मिथ्यादृष्टी हैं..ऐसा जानकार क्षीरकदम्ब विषय भोगों से विरक्त होकर वहीँ मुनि बन गए..सब निवास स्थान पर पहुंचे..स्वस्तिमति ने कहा पर्वत से पिता जी नहीं आये..स्वस्ति मति कहती हैं की या तोह उन्हें कोई उठाकर ले गया होगा..या मुनि व्रत धारण कर लिए होंगे..तब उन्हें बता चलता है की मुनि व्रत धारण करे हैं..तब वह फूट-फूट कर रोटी हैं..हाय मेरा क्या होगा...मुझे छोड़ गए..और तरह-तरह का शोक करती हैं...तब नारद उन्हें समझाने आते हैं..की यह विषय छह अस्थिर हैं..और वह विरक्त हुए हैं तोह अच्छी बात है..ऐसा सुनकर वह शांत होती है..क्षीरकदम्ब के vairaagya के बारे में सुनकर राजा अयति भी विरक्त हो जाते हैं...और राज्य पुत्र वसु को देते हैं..राजा वसु की सत्य के कारण ख्याति रहती है..राजा वसु का sinhaasan के पाय में स्फटिक मणि के रत्ना लगे होते हैं..जिसे देखकर लोग समझते हैं की राजा वसु का sinhaasan अधर khada है....जबकि ऐसा स्फटिक मणि की वजह से होता है.


एक बार नारद और पापी पर्वत के बीच में शास्त्रार्थ चल रहा होता है..तब नारद कहते हैं की दो प्रकार के चरित्र हैं एक सकल चरित्र जिन्हें मुनि धारण करते हैं.और एकदेश चारित्र जिसे श्रावक धारण करते हैं...एक देश चरित्र में दान पूजा का महत्व है..फिर वह एक श्लोक कहते हैं (वह मुझे ध्यान नहीं है)..जिसमें एक शब्द आता है "अज"..उसके बाद नारद कहते हैं की जो चीज जिसमें अंकुरित होने की शक्ति नहीं..जिसे बोकर फिरसे उत्पन्न न हो..ऐसे द्रव्य को विवाह आदियों में होम-किया जाता है..जिसे सुनकर पापी पर्वत कहते हैं की अज यानी की बकरा..यज्ञों में पशुओं की बलि दी जानी चाहिए...तब नारद कहते हैं तुम बहुत गलत कह रहे हो..ऐसा कहने मात्र से नरक योनी मिलेगी..तुम नरक में जाकर सड़ोगे..तब पर्वत कहते हैं की राजा वसु सत्य  bolte हैं hamesha..उनकी बात सही होगी..जो गलत होगा उसकी जीभ काट दी जायेगी..तब पर्वत माँ के पास जाते हैं और पूरा वृतांत कहते हैं..तब माँ कहती हैं की तू पापी है..तू विदेश में मांस मदिरा के खाने के कारण ऐसा बोल रहा है..अगर राजा वसु ने सही अर्थ बता दिया तोह तेरी जीभ काट दी जायेगी..पति का वियोग वैसे ही हो गया.है ..फिर पुत्र से भी वियोग होकर ऐसा सोचकर स्वस्तिमति राजा वसु के महल में आती हैं..वसु उनका स्वागत करते हैं..तब वह कहती हैं की दो पुत्र होते हैं जो पैदा किया जाए..और जिसे पढ़ाया जाए..मेरे पति ने तुझे पढ़ाया है..इसलिए तू भी मेरा पुत्र हुआ..इसलिए मैं तुझसे कुछ माँगना चाहती हूँ...तब राजा राजी होते हैं..तोह स्वस्तिमति कहती हैं..की तू तब पर्वत और नारद के बीच में शास्त्रार्थ हो तोह तू jhooth बोल diyo..ऐसा कहकर वह चली जाती हैं..तब पर्वत और नारद के बीच में शास्त्रार्थ होता है..तब राजा वसु अज का मतलब बकरा बताते हैं..तब उनके स्फटिक मणि के पाए जो sinhaasan में थे..वह टूट जाते हैं..तब नारद कहते हैं की इतना हिंसा भरी बात आपने कही..अभी भी सच बोल दो..तब वह पर्वत की बात को ही सच कहते हैं जिससे पृथ्वी फट जाती है..और राजा वसु उसमें समां जाते हैं..और सातवें नरक में चले जाते हैं..पर्वत को सब धिक्कारते हैं..पर्वत दूसरी जगहों में जाकर मिथ्या धर्म चलता है..यज्ञ प्रथा चलता है..जिसमें पशुओं की हिंसा हो...ऐसा बताता है की इस पशु वाले यज्ञ से यह दोष मिट जाएगा..ऐसे वाले यज्ञ से कुशील का दोष नहीं लगेगा..इस तरह से यज्ञ प्रथा चालु होती हैं..फिर गौतम स्वामी आगे कहते हैं की राजा मारुत का एक पापी ब्राह्मन होता है...वह ही उस यज्ञ की क्रियाएं करता है..तब वहां पे आठवे नारद आकाश गामिनी विद्या के माध्यम से पहुँचते हैं..और इतनी भीड़-देखकर हैरान होते हैं

तब राजा श्रेणिक गौतम स्वामी से पूछते हैं की यह नारद कौन होते हैं तब गौतम स्वामी कहते हैं की एक ब्रह्मा स्वरुप ब्राह्मन,उसकी पत्नी क्रूर्मी होती है...वह संन्यास लेता है और जंगले में पत्नी के साथ रहता है..वहां भोग-विलास भी करता है..और कंदमूल भी खाता है..एक बार जंगल में चारण ऋद्धि धारी muniraaj आये होते हैं..वह उनके पास आता हैं,तब muniraaj कहते हैं की इस पर daya आती है..kehta है संन्यास liya..है और भोगों में कुशील में लीं है..stri के pet में garbh pal रहा है..और  khud को तपसी बताता है..यह तोह pinjre से nikalkar waapis pinjre में jaane  के samaan हुआ..कोई vaman को waapis peeta है क्या..जो saadhu bankar भी bhautik सुखों में लीं होते हैं..बिस्तर ओअर,विषय भोगों में कुशील में लीं रहते हैं वह शेर,शेरनी,श्यालिनी होते हैं..घोर दुखों को सीखते हैं..ऐसा जानकार वह तपसी विरक्त हो जाता है..और क्रूर्मी को धर्म श्रवण का लाभ होता है..तब कुछ समय बाद पुत्र का जन्म होता है तोह वह बी पुत्र को जंगल में ही छोड़कर आर्यिका बन जाती हैं.
तब पुत्र को जम्भ्रदेव संभालते हैं..उसे शास्त्र का ज्ञान देते हैं..और इस तरह से वह आकाश गामिनी ऋद्धि को प्राप्त होता है..वह उत्तम व्रत के धारी हो जाते हैं..११ प्रतिमा..सम्यक दृष्टी क्षुल्लक होते हैं..उन्हें देव ऋषि के नाम से जाना जाता है
इस प्रकार वह आठवें नारद राजा मरुत के यज्ञ के पास रुकते हैं और राजा मरुत  से कहते हैं की यह यज्ञ घोर हिंसा ..घोर दुःख का कारण है..नरक के दुःख का कारण है..तब मरुत कहते हैं की यह शास्त्र के ज्ञाता संवर्त हैं..इनसे कहिये..वह संवर्त से कहते हैं की वीतरागी भगवन ने,सर्वज्ञ भगवन ने ऐसा बोला है की किसी जीव को दुःख देने से दुःख ही मिलता है..तोह वह पापी संवर्त ब्राह्मन कहता है जो वीतरागी है,वह सर्वज्ञ नहीं..जो सर्वज्ञ है वह वीतरागी नहीं..जो अकृत्रिम हैं वह वेद हैं..वेद का कहां प्रमाण है..बलि देने से कोई पाप नहीं मिलता स्वर्ग मिलता है..इस तरह की बात सुनकर नारद कहते हैं की तू हिंसा के कारण ऐसा बोल रहा है..कैसा है तू? हिंसा मार्ग से दूषित है..तू कह रहा है अगर सर्वज्ञ वीतरागी नहीं तोह अर्थ सर्वज्ञ,शब्द सर्वज्ञ..और बुध्ही सर्वज्ञ क्यों कहे गए हैं..तू कह रहा है की बलि देने में पाप नहीं है..तोह क्या जीवों को दुःख नहीं होता है..अगर दुःख होता है तोह पाप है..अगर दुनिया इश्वर ने बनायीं है तोह किस प्रयोजन से बनायीं है..अगर क्रीडा के लिए बनायीं है..तोह उसको बालक samaan jaano..और ऐसा है तोह क्या पशुओं को दुःख देने के लिए banaya है..अगर ऐसा है तोह खुद के सामन क्यों नहीं बनता है?.....he संवर्त भगवन तोह तेरे जैसा है,हमारे जिसकहै ..वह कर्मों से रहित हैं..आठों कर्मो को swahaa karke niraakul आनंद सुख को प्राप्त हुए हैं...तुझे पुण्य के उदय से मनुष्य पर्याय मिली है तोह इसे व्यर्थ न जाने दे..तू कह रहा है अगर हिंसा स्व स्वर्ग मिलता है तोह राजा वसु नरक क्यों गए..इसलिए वीतरागी १८ दोषों से रहित भगवन की वाणी सत्य है..अगर तुझे यज्ञ करना है तोह मैं बताऊँ क्या यज्ञ कर..आत्मा को यजमान मान,शारीर को हवन कुंड..सर्व परिग्रह को होम कर..ताप रुपी अग्नि से आठों कर्मों को स्वाहः कर जिसका फल सिद्ध गति है..और अगर किसी को बांधना है तोह मन रुपी चंचल पशु को बाँध..यह धर्म यज्ञ है इसे किया कर..इस प्रकार नारद ने संवर्त को ज्ञान दिया..कैसे हैं नारद जैन धर्म के ज्ञानी,सम्यक दृष्टी,शास्त्रों के ज्ञाता..ऐसा सुनकर जो संवर्त के saath anek विप्र हैं वह नारद को maarne lagte हैं so नारद भी ladai karne lagte हैं..नारद akele और वह itne jyaada उन्हें chaaron taraf से gher lete हैं jisse वह akaash मार्ग से ud भी नहीं पाते हैं...जिसके कारण वह उन्हें मार ही रहे होते हैं..तब ही रावण का दूत मरुत के पास आता है..नारद का यह हाल देख रावण से पूरा वृतांत कहता है..ऐसा सुनकर रावण vaayu से भी tej vimaan से sidhe बहन पहुँचते हैं..नारद को छुड़ाते हैं..पशुओं को छुड़ाते हैं..सारे विप्रो को बाँध देते हैं और राजा मरुत को बांध देते हैऔर कहते हैं की मेरे राज्य में इतनी हिंसा..जो जीव दुःख देगा वह नरक जाएगा..तोह तू नरक के दुःख को भोग ऐसा कहकर जमीन पर पटकते हैं..तब वह "ओह" karke चीखते हैं..तब रावण कहते हैं जिस प्रकार तुझे दर्द हुआ है उस प्रकार पशुओं को भी तोह हुआ होगा . इस प्रकार बाँध के रखते हैं तब सम्यक दृष्टी नारद कहते हैं इन्हें क्षमा कर दो..यह हुंडावसर्पिणी काल ka दोष है...यह ऋषभ के पोते मारीच द्वारा फैलाया हुआ..है..इसलिए इन्हें रोकने कोई फायदा नहीं है..तब भगवन की वाणी से जीव मिथ्यात्व से नहीं निकले तोह हम इन्हें बाँध कर क्या यज्ञ रुकवा देंगे..ऐसा जानकार राजा मरुत को गलती ka एहसास होता है वह रावण के चरणों में नतमस्तक हो कर कहता है मैंने खोते लोगों की बातों में आकर तरह-तरह के होते कार्य किये अब मुझे सही रास्ता दिखायें..इस प्रकार राजा मरुत अपनी पुत्री कनक-प्रभा ka विवाह रावण से करता है..और रावण को अपने योद्धाओं की सेना दिखाता है...इस प्रकार रावण ka दिग्विजय ka kaaryakram chal raha होता हो.रावण भरत-क्षेत्र में प्रवेश करते हैं..वह उन्हें अति सुन्दर लगती है..रावण की समुद्र के सामान विशाल सेना के सामान भरत-क्षेत्र में आकर हर्षित होते हैं..बड़े-बड़े राजा अपने aap सर झुका ते हैं..हर jagah रावण ka सम्मान होता है..जहाँ देखो हर तरफ रावण के ही चर्चे होते हैं..स्त्रियाँ रावण पे मोहित हो जाती हैं..कोई काम कर रही है सबका ध्यान रावण की तरफ होता है...कोई कहती हैं की धन्य है वह पिता जिन्होंने इन्हें जन्मा..कोई कहता है धन्य है वह रानियाँ जो इनकी पत्नी हैं..कोई कहती हैं की धन्य है वह वंश जिसमें राजा रावण ka जन्म हुआ...इस तरह-तरह से प्रशंशाएं करती हैं..रावण जहाँ जाते हैं वहां बिना बोये फल-फूल उग-आते हैं यह पुण्य ka प्रभाव है..बड़े-बड़े राजा उनके आगे भेंट चदते हैं..यहाँ तक की किसान अदि-आम आदमी सब उनको धन्य मानते हैं जिनके कारण उनके कार्य में वृद्धि हुई...वर्षा ka काल आता है..तोह रावण वहीँ पर चातुर्मास करते हैं..वर्षा काल में किसान कृषि करते हैं तोह वह रावण की मदद से होती हैं..इस तरह-हर तरफ सुख ही सुख होता है..राजा बिना कहे अपनी पुत्रियाँ रावण को देने को तैयार हो जाते हैं..यह सब पुण्य ka प्रभाव ही होता है..और पुण्य धर्म के कारण है

रावण के पास जितना भी वैभव था यह पूर्वौपाजित कर्मों ka फल था..जो इन्हें इतना सुखकारी हुआ..पुण्य के माध्यम से मोक्ष भी मिल सकता है..जो ज्ञानी होते हैं वह पुण्य कर्मों के फल को सही दिशा में लगते हैं लेकिन अज्ञानी गलत दिशा में तोह दुःख पाते हैं..इसलिए संसार में धर्म ही सुखकारी है..सुखदायक

इस प्रकार से राजा मरुत के यज्ञ ka विनाश और रावण ka दिग्विजय ka निरूपण ka वर्णन पूरा हुआ

लिखने ka adhaar श्री रविसेन achaarya द्वारा virachit shastra श्री padam puraan है..shastra में bahut jyaada था kam shabdon में likha है..कोई bhool हो तोह क्षमा karein...और गलती हो तोह batayein..jai jinendra. 

No comments:

Post a Comment