indra raaja ke parabhav ka kathan
रावण मंत्रियों के साथ कृतचित्रा पुत्री के विषय में चिंतन करते हैं..मंत्रिओं से विचार विमर्श करते हैं तोह राजा हरिवाहन रावण के सामने पुत्र मधु को लाते हैं..और गुणों को जानते हैं..रावण उसकी विनय देख कहते हैं की यह पुत्र नीति-शास्त्र में प्रवीण हैं..सामर्थ्यवान हैं तब मंत्री कहते हैं राजन इतना ही नहीं उन्होंने असुरेन्द्र से त्रिशूल को भी प्राप्त किया है..ऐसा जानकार रावण पुत्री का विवाह मधु से कर देते हैं...राजा श्रेणिक गौतम स्वामी से पूछते हैं की असुरेन्द्र ने राजा मधु को त्रिशूल क्यों दिया..तब गौतम स्वामी कहते हैं की ghatki khand द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में दो मित्र थे..एक का नाम सुमित्र था और एक का नाम प्राह..था दोनों पंडित थे धर्म में सुमित्र कर्म के योग से राजा हुए और प्रः..daridra हुए..एक baar राजा सुमित्र को dusht ashva uthakar jungle में भीलों के पास ले गया..भील के राजा ने पुत्री वनमाला से सुमित्र का विवाह करा दिया..सुमित्र waapis नगरी में आ रहे थे..तब ही उन्हें dost prahaa..milta है..रानी वनमाला को देख मोहित हो जाता है..राजा को भी मित्र की खोज होती है..जिसके कारण राजा भी प्रसन्न होता है..राजा मित्र को दुखी देख कारण पूछता है तोह वह कहता है की मैं रानी वनमाला पे कामुक हो गया हूँ..और काम की अभिलाषा जागी है..ऐसा जानकार दुखी हो..राजा सुमित्र रानी वनमाला को मित्र के nivaas sthan पे भेजता है..और चिप जाता है...मित्र के पास आकर रानी वनमाला बैठती हैं..वह पूछता है की तुम कौन हो..तब वह विवाह से लेकर सारा वृतांत कहती है..तब मित्र प्र..पछताता है की मित्री की स्त्री तोह मान सामान है..हाय यह मैंने कैसा पाप कर दिया..कलंक लगा दिया..अब इसे कैसे धोयुँ..ऐसे जानकार तलवार निकाल कर आत्मघात करने की कोशिश करता है तब ही झरोंखे में छिपा हुआ मित्र कूदता है और मित्र को रोक लेता है और कहता है की आत्म-घात नरक गति का कारण..घोर दुखों का,अल्पायु का कारण है..ऐसे जानकार मित्र भी पश्चाताप करता है शुक्रिया अदा करता है..ऐसा कहकर सुमित्र मुनि बन जाता है और वहां से आयु पूरी कर के दुसरे स्वर्ग में इन्द्र होकर..वहां से चाय कर राजा हरिवाहन के यहाँ मधु होता है..उधर दूसरा मित्र...वहां से अनेक योनियों में सम्यक्त्व के बिना जनम-मरण के दुखों को सहन करते हुए..द्रव्य लिंगी मुनि होकर असुरेन्द्र होता है..तब use us योनी में राजा सुमित्र के प्रति प्रेम उमड़ता है..और याद करता है की किस प्रकार इसने मेरी मदद करी..जिन धर्म को मानकर मुनि हुआ..स्वर्ग में गया और वहां से यहाँ राजा हुआ..इसने मुझे बचा लिया था संसार में डूबने से..ऐसा जानकार...वह वहां से madhyalok में aata है मित्र की stuti करता है..और त्रिशूल भेंट करता है...us राजा मधु के साथ रावण पुत्री कृत्चित्रा रहती है..
इस तरह इन्द्र की जीत के भाव रखते हुए aage badhte हैं और kailaash parvat tak pahunchte हैं..वहां बाली मुनि वाले वृतांत को याद कर महा निर्मल मन से vandana करते हैं...वहां par पास ही नगरी में इन्द्र ने लोकपाल नियुक्त किया था ..वह लोकपाल सन्देश भेजता है की रावण समुद्र जितनी बड़ी सेना ले कर इस राज्य पे आक्रमण करने आ रहे हैं..आप हमें निर्देश दें..us समय राजा इन्द्र पांडुक वन के chaitalyon के darshan करने jaa रहे hote हैं..और रास्ते में उन्हें नलकुंवर(लोकपाल) के द्वारा भेजा हुआ सन्देश milta है..सो राजा इन्द्र कहते हैं की वह पंडुक शिला के जिनालयों के darshan करने jaa रहे हैं..शत्रुओं की भी चिंता नहीं है जिनको ऐसे इन्द्र पांडुकवन के जिनालयों की वंदन करते हैं..उधर नाल्कुम्वर लोकपाल विद्या के बल से पूरे राज्य के तरफ कोट डालता गया..तीन baar rajya की प्रदक्षिणा करने से कोट तीन गुना हो गया..रावण ने प्रहस्त नाम के सेनापति को भेजा तोह वह अन्दर नहीं jaa पाया..वह रावण के पास aata है..रावण प्रहस्त की बात sun ascharyamay hote हैं और मंत्रिओं के साथ विचार विमर्श करते हैं..कैसे हैं रावण-नीति-शास्त्र में प्रवीण...उधर नलकुंवर लोकपाल की रानी उपरम्भा नाम की रानी रावण पे मोहित हो जाती है..और सखिसे कहती है की मैं बचपन से रावण पे मोहित थी..मुझे रावण से कामुकता है..सो मुझे उनके साथ भोग करना है...सखी के पैर पड़ती हैं..ऐसा जानकार सखी रावण के पास आती हैं और रावण के kaan में सब वृतांत कहती हैं..रावण कहते हैं की par-स्त्री सेवन को शास्त्रों में नरक का कारण बताया..कौन विवेकी होगा jo वामन को waapis piyega..कौन joothan khaana chahega..लेकिन जब यह बात रावण मंत्रियों से कहते हैं तोह वह कहते हैं की राजन यह बात सही है लेकिन आप इस के maadhyam से us कोट को tudwa sakte हैं..jo nalkumwar ने banaya हुआ है..ऐसा जानकार वह उपरम्भा को apne पास bulate हैं..और उप्रम्भा से mahal में chalne के liye कहते हैं..रावण पूरी सेना sahit mahal में pahunch जाता है और कोट को toota dekhkar krodhit होता है..तब लोकपाल रावण के aage jhuk जाता है..रावण भी उसका सम्मान करते हैं..रावण की यह विशेषता होती है उनका सम्मान करते हैं...और इज्जत देते हैं रावण के यहाँ आयुध-शाला में सुदर्शन-चक्र उत्पन्न होता है. ..रावण उप्रम्भा koi कई प्रकार से समझाता है संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं..जिससे उपरम्भा को गलती का ehsaas हो जाए .और waapis पति के साथ ही संतुष्ट होती हैं. .और नलकुंवर को पूरी घटने के बारे में पता भी नहीं चलता है ...इस प्रकार रावण वाली सेना जो समुद्र के SAMAAN होती HAI VAH AUR विशालकाय हो जाती है..AUR INDRA KE UPAR VIJAY PRAPT KARNE KI TAIYAARI होती HAI.. ..रावण सेना सहित बैताड पर्वत के पास पहुँचते हैं..राजा इन्द्र को रावण के समीप आने की पता लगती है..तब वह योद्धाओं को युद्ध के लिए तैयार करता है..इन्द्र के यहाँ योद्धाओं को देव कहते हैं..और रावण के यहाँ योद्धाओं को देव कहते हैं.
.इस प्रकार से दोनों पक्ष से सेना तैयार होती है..दोनों तरफ से हथियारों को सजाया जाता है..रथ के पलास कसे जाते हैं..दोनों तरफ से आले भाले लेकर सेना टूटी है..घोड़े से घोडा..हाथी से हाथी..सेनापतियों से सेनापति..रावण की तरफ प्रहस्त,इन्द्रजीत अदि लोग होते हैं और इन्द्र के यहाँ भी कई शक्तिशाली सेनापति होते हैं..रावण के दादा माली का भाई माल्यवान का पुत्र श्रीमाली युद्ध करने जाता है...पूरी सेना को बिगाड़ देता है..जिससे राक्षस सेना में हिम्मत आती है..उस तरफ इन्द्र का पुत्र जयंत श्रीमाली से युद्ध करने जाता है..तोह दोनों एक दुसरे को गिरा देते हैं..श्रीमाली जयंत को मूर्छित करते हैं..तब जयंत फिर से उठकर अस्त्र का प्रहार श्रीमाली की छाती पे करते हैं..जिससे श्रीमाली प्राण से रहित हो जाते हैं..ऐसा जानकार क्रोध से भरा हुआ जान इन्द्रजीत युद्ध करने जाता है..सो वह जयंत को पकड़ रहा होता है..रावण dada माली और चाचा श्रीमाली की मृत्यु को याद करते हुए युद्ध के लिए जाते हैं..बहुत सारे देव रावण के क्षत्र को देखकर ही दूर हट्टे हैं..चारो तरफ हतियारों की आवाज से चटपट-कट-कट मारो...लड़ो..तरह -तरह की आवाज गूंजती हैं..कोई किसी को ललकारता है कहाँ गई तेरी ताकत..कोई कहता है कहाँ है तेरे में दम..कोई कहता है तू कायर है..इस तरह से क्रोध दिलाते हैं..और बड़ा तगड़ा युद्ध चल रहा होता है..बहुत से अंत-समय में नमोकार मंत्र संन्यास लेते हैं तोह स्वर्ग में जन्म लेते हैं..और कोई shoorveerta दिखाते हुए प्राण त्यागते हैं...इस रावण सारथी सुमति से कहते हैं की यह इन्द्र अपने आप को स्वर्ग का इन्द्र समझता है..माता पिता के वीर्य-राज से शारीर बना है..उससे इतना घमंड करता है..योद्धाओं का नाम देव रखता है..लोकपाल चार-निकाय के देव स्थापित किये हैं..जैसे साक्षात इन्द्र हैं इसका घमंड मैं मिटाऊंगा ऐसा जानकार युद्ध में उतारते हैं..तोह इन्द्र के वाण को रास्ते में ही काटते जाते हैं..शत्रु को शक्तिशाली जान इन्द्र अग्निवाण फेंकते हैं जिससे राक्षसों में त्राहि-त्राहि मचती है..तब रावण जल वाण फेंकते हैं जिससे शान्ति मिलती है..फिर इन्द्र तामस वाण,-फिर रावण प्रकाश-वाण,फिर रावण नाग-वाण,फिर इन्द्र गरुण-वाण ...इस तरह से एक के upar कई जवाब मिलते हैं..फिर दोनों के हाथी एक-दुसरे से लड़ते हैं रावण का त्रैलोक्यमंडल हाथी और इन्द्र का ऐरावत हाथी..दोनों एक दुसरे को लड़ते हैं..रावण भुजाओं की ताकत से इन्द्र को दावा-देते हैं और अंत में इन्द्र को बाँध देते हैं...रावण वापिस लंका नगरी में आते हैं..लंका नगरी पहले से ही इतनी मनोहर फिर और मनोहर हो जाती है....हर-तरफ रावण का स्वागत होता है...रावण भी सबका सम्मान करते हैं..हे भव्य जीवों इन्द्र ने विज्यार्ध पर्वत पर राज्य कितने वर्ष तक किया..जो की क्षणिक ही था..और पुण्य का फल था..जैसे ही पुण्य फल-क्षीण हुआ..सब छूट गया.और रावण के पास चला गया..isliye इन्द्रिय भोग क्षणिक है..देवों के पास भी हमेशा रहने वाले सुख नहीं हैं..तोह मनुष्यों की क्या बात..जो मनुष्य माया पे घमंड करें वह महामूर्ख हैं..इस लिए शुभ में प्रवति करनी चाहिए..
इस प्रकार यह राजा इन्द्र और रावण के बीच में युद्ध का varnanपूरा हुआ...
लिखने का आधार श्री-रविसेन स्वामी द्वारा विरचित शास्त्र श्री पदम् पुराण है
लिखने का आधार परम पुराण है.. शब्द mere हैं..isliye कोई गलती हो तोह क्षमा करें..शास्त्र में बहुत ज्यादा varnan था इस विषय पे मैंने बहुत कम शब्दों में लिखने के कोशिश कि है
कोई गलती हो तोह समझायें.
राजा इन्द्र पिता सहस्त्रार के समक्ष युद्ध के लिए सलाह विमर्श करने जाते हैं उनके पिता उन्हें समझाते हैं कि रावण बहुत ऐश्वर्या शाली हैं..उनके आगे हार-मान लो..और पुत्री का विवाह उनसे करा दो..लेकिन इन्द्र मान-वश पिता जी से कहते हैं कि उम्र के साथ आपकी बुद्धि ख़राब हो गयी है..इससे मेरा कितना अपयश होगा..ऐसा जानकार पिता कि बात न मानकर युद्ध के लिए आगे बढ़ते हैं
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