Monday, August 15, 2011

raaja indra ka muni-pad dhaar nirmaan gaman




राजा इन्द्र का मुनि पद-धारण कर निर्माण gaman की कथा


विशेष-मुनि निंदा का फल..या मुनि महाराज के अपमान का फल.




राजा इन्द्र के पिता सहस्त्रार जो उदासीन श्रावक थे..इन्द्र को कैद में जान...रावण के पास आये...और उनसे कहा तुमने बड़े-बड़ों के मान भंग किये..सबको जीता.भुजाओं में अति-बल था..लेकिन तुमने सबको छोड़ दिया..सम्मान के साथ..सो अब इन्द्र को भी छोड़ दो..रावण ने उन्हें उदासीन श्रावक जान सम्मान किया और उच्च पद पर बैठाया और खुद सिंहासन से निचे उतरे..और उन्होंने कहा..की आपकी बात सही है...उन्होंने इन्द्र और लोकपालों से नगरी में फुलवारी करने को कहा..जिससे लोकपाल लज्जित हुए..और तब उदासीन श्रावक सहस्त्रार ने कहा   कि आप sabse आगया palan karwa सकते हो..आप shreshta हो..ऐसा jaankar रावण harshit हुए..और कहा कि इन्द्र तोह hamara भाई के सामान है..यह इन्द्र waapis rathnupur  में राज्य karein और यह लोकपाल जहाँ है wahin रहे..रावण ने सहस्त्रार से कहा आप हमारे गुरु सामान है..आपकी आगया शिरोधार्य है..आप जहाँ रहना चाहें रह सकते हैं..यह rathnupur और लंका नगरी आप जहाँ चाहें वहां रहे..ऐसा जान सहस्त्रार ने मात्र भूमि के पास रहने का ही निर्णय लिया और कहा कि आप ऐसे ही राज्य चलते रहे..इन्द्र को लोकपालों को राज्य waapis मिल गया..लेकिन पहले जैसी बात नहीं थी..लोकपाल भी मान-भंग के कारण आकुलित हुए..इन्द्र का भोगों में विषयों में..मंत्रियों के द्वारा समझाने में कहीं भी मन नहीं लगा..वह इक चैत्यालय में बैठकर चिंतन करने लगे धिक्कार है ऐसे विद्याधर के ऐश्वर्या को जो क्षण-भर में हो छूट गया यह सब कर्मों का ही फल था..जब फल पूरा हुआ..तोह सब छूट गया..रावण शत्रु बन कर mere मित्र सामान निकले अब मैं ऐसा करूँ जो अनंत सुख पाऊं..तभी वहां से निर्वाण संगम नाम के मुनिराज वहां आये इन्द्र ने उन्हें नमस्कार कहा फिर मुनिराज ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि संसार कि माया क्षण-भंगुर है..तब इन्द्र ने उनसे पूर्व भाव पूछे तोह उन्होंने कहा कि :तू पूर्व भावों में कुलवंती नाम कि दरिद्र स्त्री था..झूठा भोजन खाती  जहाँ जाता सम्मान नहीं मिलता..अंत समय में ४८ मिनट तक नवकार मंत्र पढ़कर देह त्यागी तोह किंपुरुष देव के यहाँ शील-धरा नाम कि देवी हुआ..फिर वहां से चाय कर रत्नपुर नगर में गोमुख ब्राह्मन के यहाँ सहस्त्रभाग नाम का पुत्र हुआ.फिर वहां से श्रावक व्रत धारण करके नवमें स्वर्ग में देव हुआ..फिर वहां से चय कर मनुष्य जन्म पाकर मुनि-दीक्षा ली और एह्मिन्द्र के पद को पाया..अब तू वहां से चय-कर राजा सहस्त्रार के यहाँ इन्द्र हुआ है...तुझे रावण द्वारा अपमान तेरे पूर्वोपाजित कर्मों के द्वारा ही मिला है...अब तू इसको सुन..और यह कर्म तुने इसी योनी में किया है...राजा arinjaay कि putri ahilya का स्वयंवर था तब उसने सबको छोड़ आनंद माल राजा  को माला पह्नाई..जिससे तुझे उसके प्रति-द्वेष हुआ...वह विवाह के बाबजूद भी भोग-सम्पदा से विरक्त हो गया और मुनि हो गया...एक बार आनंद्माल मुनिराज सरोवर के किनारे तप कर रहे थे..तोह तुने मान-वश उनका अपमान करते हुए कहा..त्याग दिया भोगों को और मुनि हो गया..और अहिल्या को तुने मेरा नहीं होने दिया...तब उन मुनि के भाई कल्याण मुनि ने उन्हें समझाया कि इनका आपसे-कोई द्वेष नहीं है..तब तेरी रानी ने उन्हें शांत कराया..अब यह उसी कर्मों का फल है..यानी कि मुनि निंदा का फल है..हमें कभी भी किसी हाल में मुनियों कि निंदा-अवज्ञा..अपमान नहीं करना चाहिए..ऐसा कहकर निर्वाण-संगम मुनि वहां से चले गया..और इन्द्र श्रावकआश्रम में उदासीन हो..लोकपालों के साथ jaineshwari दीक्षा को धारण कर निर्वाण पद को prapt किया...
हमें isse यह seekh milti है..हमें कभी भी,किसी भी हाल में,chahe मोह-वश raag-द्वेष वश,hasi-hasi  कभी भी मुनि-निंदा नहीं karni चाहिए..kyonki karm  तोह हंसी-hansi  में करते हैं फल ro-rokar maha dukhi hokar bhogna padta है.

is prakaar  राजा इन्द्र का मुनि-पद  धार  निर्माण को प्राप्त करने का वर्णन हुआ


लिखने का  आधार-शास्त्र श्री पदम्-पुराण है....आचार्य श्री रविसेन स्वामी  द्वारा लिखा है..और अनुवाद आर्यिका श्री दक्षमती माता जी ने किया है...शास्त्र के विस्तार से दिए हुए वर्णन को कम शब्दों में लिखा है..मोह-मिथ्यात्व के कारण कोई गलती हो..लिखने आदि कि..तोह जरूर बताएं

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