Friday, September 23, 2011

raavan ko maran adi shanka aur uska nivaaran.

रावण-विभीषण को मरण की शंका और उसका निवारण
जब लक्ष्मण जी जो की नारायण थे...उनका जन्म हुआ तब प्रतिनारायन के यहाँ अशुभ शकुन हुए..अशुभ लक्षण हुए...रावण-विभीषण ने निमित्त ज्ञानी से पुछा की कौन मृत्यु में निमीत्त बनेगा तोह जवाब आया की राजा दशरथ के पुत्र..होंगे और राजा जनक (क्योंकि उनकी पुत्री सीता का हरण हुआ वह भी कारण होंगे..ऐसा जानकार विभिसन ने रावण से कहा की हम उन दोनों राजाओं को रात्री में ही मार देंगे...यह बात नारद ने सुन ली...नारद विद्याओं के धारी मनुष्य होते हैं..जो जिन देव के जिन शाशन के भक्त होते हैं यानी की सम्यक दृष्टी होते हैं...नारद जो हैं पूरे द्वीप में जाते हैं और तरह-तरह के जिन मंदिरों में जाकर पंच्कल्यानाकों में जाकर इधर उधर धर्म की खबर फैलाते हैं...जब रावण ने यह हिंसात्मक बात विभीषण से सुनी..तोह नारद राजा दशरथ के यहाँ गए ..उन्होंने विदेह क्षेत्र की बाते राजा दशरथ को बतायीं की वहां वह सीमंधर स्वामी के तप्कल्याण में गए थे..ऐसे-देव आये थे,ऐसे विमान थे..और फिर नारद विभीषण से सुनी हुई बात कहते हैं और यही बात वह राजा जनक के पास जाकर कहते हैं..तब दोनों राजा भेष बदल कर और शरीर का पुतला बनवा कर राज्य में घोसना कर व दी की राजा को भयंकर बिमारी है..इसलिए राजा को दूर से ही देखना..दोनों राजा नगरों में भ्रमण कर रहे थे...रात में विभीषण आये और राजा जनक और दशरथ के पुतले को मारकर नदी में फेक दिया और बड़े खुश  हो रहे... .यह खबर रावण को दी ..तोह वह भी खुश हुए..उन्होंने इस गलती का प्रायश्चित भी किया..विभीषण विचार करते हैं की जो भी मिलता है कर्मों का फल है..अगर मृत्यु आती है तोह कोई नहीं रोक सकता...यह निमित्त ज्ञानी क्या जाने अगर यह जानता होता तोह अपना कल्याण और खुद को मृत्यु से नहीं बचा सकता था..अतः जिनेन्द्र भगवन की वाणी अटल सत्य है..ऐसा कहकर पश्चाताप किया..

इससे यह शिक्षा मिली की ज्योतिष अदि मृत्यु के बारे में जानते तोह सबसे पहला अपना कल्याण करते...

लिखने का आधार पदम्-पुराण (अनुबाद आर्यिका श्री दक्ष्मती माता जी)..प्रमाद के कारण भूलों के लिए क्षमा,अल्प बुद्धि के कारण भूलों के लिए क्षमा

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