Friday, September 23, 2011

राम लक्ष्मण की मलेच्छ राजाओं से जीत,राजा जनक का अपहरण,धनुष का टूटना,राम लक्ष्मण और भरत का विवाह.


राम लक्ष्मण की मलेच्छ राजाओं से जीत,राजा जनक का अपहरण,धनुष का टूटना,राम लक्ष्मण और भरत का विवाह.
राजा जनक के यहाँ मिथिलापुरी नारी में मलेच्छ राजाओं ने आक्रमण कर दिया...मलेच्छ कैलाश पर्वत के दूसरी पार अंतर देशों में रहते हैं जिनके चेहरे डरावने होते हैं..क्रूर होते हैं,तथा हिंसक निर्दोष पशुओं को दुःख देने वाले,हिंसा मिथ्यादृष्टि...मंदिरों अदि को ध्वस्त करने वाले ऐसे मलेच्छ राजाओं ने आक्रमण कर दिया..जनक राजा को लगा की इससे धर्म की हानि होगी..अगर वह हार गए...तोह यह सारे व्रत अदि नियमों में श्रावकों की विघ्न डालेंगे,दुःख देंगे,मुनियों को दुःख देंगे..उनसे लड़ने के लिए राजा जनक ने राजा दशरथ के यहाँ पत्र भेजा..राजा दशरथ शीग्र ही तैयार हुए और राम को राज्य देने की घोषणा की..लेकिन राम ने कहा की मेरे होते हुए आपको उनसे लड़ने की जरूरत नहीं है..और राम युद्ध करते हैं मलेच्छ राजाओं से जीत जाते हैं..इस घटना के बाद राजा जनक ने पुत्री सीता को राम को ही देने को निर्णय किया...सीता शारीर से अति-रूपवान थीं...उनकी सुन्दरता की पूरे लोक में ख्याति थी..उस सीता की सुन्दरता को देखने के लिए नारद मिथिलानगरी  में महल में आये...सीता उस समय शीशे में देख रहीं थी..नारद पीछे से उन्हें देखने लगे..नारद को शीशे से देखकर सीता घबडा कर भागीं..और सिपाहियों को बुलाया..और उन्होंने नारद को घसीटकर बहार निकाल दिया....नारद का सीता से द्वेष हो गया...और वह बदला लेने की सोचने लगे..उन्होंने सीता का चित्रपट बनवाया और चंद्रगति विद्याधर के पुत्र भामंडल(जो सीता का भाई था)..के पास रख दिया...भामंडल (वह यह नहीं जानते थे की सीता जी बहन हैं)..उनसे काम असक्त हो गया अब न उन्हें रात में नींद आये..न चैन मिले...तब राजा चंद्रगति विद्याधर ने भामंडल को इतना परेशान देखकर..पुछा तोह उन्होंने चित्र वाली बात कही..तोह चंद्रगति विद्याधर ने सोचा की यह काम तोह नारद ने ही किया होगा..तोह उसी समय नारद जी आते हैं..वह सीता के बारे में घटना..उनकी रूप अदि के बारे मैं...भामंडल की काम आग में घी डालने लगे...तब चंद्रगती विद्याधर ने कहा की कहाँ तुम विद्याधर और कहाँ यह भूमि-गोचरी स्त्री..तेरी इनसे क्या तुलना..लेकिन चंद्रगति नहीं माने..उन्होंने सोचा की भूमि-गोचर राजाओं से निवेदन करेंगे..तोह अपमान है..ऐसा जानकार उन्होंने राजा जनक को एक मायावी अश्वा के माध्यम से अपनी नगरी के जिनमन्दिर में बुलाया..राजा जनक सारी घटना को  भूलकर जिन दर्शन में लीं हुए..तभी वहां चंद्रगति विद्याधर आते हैं..वह भी वंदना करते हैं और राजा चंद्रगति विद्याधर उनसे निवेदन करते हैं ..की आप सीता को पुत्र भामंडल को दे दो..राजा जनक कहते हैं की उन्होंने सोच लिया है की वह सीता को राम को देंगे..लेकिन वह कहते हैं कहाँ विद्याधर राजा,कहाँ भूमिचार...राजा जनक राम के द्वारा किया हुआ उपकार बताते हैं...फिर वह कहते हैं की आप एक छोटा सा काम करने के लिए इतना कर रहे हो उनके लिए...भूमि गोचर तोह पशु सामान हैं..यह बात राजा जनक को सही नहीं लगी उन्होंने कहा की जितने भी तीर्थंकर हैं..वह भूमि गोचरी थे,कितने नारायण प्रति नारायण भूमि-गोचरी थे..कितने चक्रवाती भूमि गोचरी थे....यह बात राजा चंद्रगती ने मानी लेकिन उन्हें राम के पराक्रम पे विश्वास न होने के और पुत्र की जिद्द के कारण कहा की मैं आपको यह वज्राव्रत और सागराव्रत..यह दो धनुष दे रहा हूँ..अगर इसे राम तोड़ दे तोह सीता राम को दे-देना ..नहीं तोह सीता को BALATKAAR कर LE JAAYENGE..राजा जनक उस समय तोह RAAJI हुए..लेकिन वह बाद में धनुष की VISHAMTA को देखकर आकुलित हुए.. राजा जनक वापिस नगरी पहुंचे ..वहां सब अति हर्षित हुए...रानी ने वृतांत पुछा तोह और आकुलित हुईं...सीता का स्वयंवर रचा गया..सारे राजा आये..सीता ७०० सहेलियों के बीच में और बड़े-बड़े सामंत रक्षा कर रहे थे..राम-लक्षण अदि चारों भाई भी आये...बहुत से वज्राव्रत धनुष से निकल रहीं डरावनी आवाज को देखकर दर गए..बहुत से साँपों की फनकार को देखकर घबराए...धनुष को देखर सब घबरा गए..बड़े भाग्यशाली ने इन्द्रिय भोगों से विरक्त होकर मुनि-दीक्षा ली...राम भी वहां आये..राम ने धनुष को पकड़ा और हाल ही में तोड़ दिया..और राम ने सीता से विवाह किया...जो लक्ष्मण ने सागाराव्रत धनुष तोडा तोह उनका विवाह चंद्रगती विद्याधर की १८ पुत्रियों से कराया गया....भारत सोच रहे की मैंने ऐसे कर्म नहीं किये जिससे मैं धनुष तोड़ता...और विरक्ति के भाव उत्पन्न होने लगे...लेकिन उनको विरक्त होता देख राजा दशरथ ने राजा जनक के भाई कनक की पुत्री लोक सुंदरी से भरत का विवाह कराया....उनका विवाह बड़ी अच्छी तरह से हुआ...और सब अपनी-अपनी नगरियों में वापिस गए...

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