यह पढना BHAV SANGRAH BOOK DWARA MITHYA "GANGA SNAN EK MITHYA HAI"
गंगा स्नान करने से ही वे जीव अपने पापोसे छुट जाते हो तो जल मे ही निवास
करने वाले समस्त जलचर जीवों को स्वर्ग की प्राप्ती अवश्य हो जानी चाहिये
स्वर्ग की प्राप्ती पापो के नाश नही जाने से होती है
तिर्थ स्नान करने से पापो का नाश नही होता,पापो का नाश तो जप तप ध्यान से होता है
जिस तीर्थ स्नान से लोग स्वर्ग प्राप्ती मानते है उसी तिर्थ मे अरबो खरबो
मीन मछली मगर कच्छप आदि जलचर जीव रहते है और वे सब एक दुसरे का भक्षण
करते रहते है और इस प्रकार वे महापाप उपार्जन करते रहते है
यदि तिर्थ स्नान से ही पापो की निव्रुत्ति मानी जाय तो प्रतिक्षण महापाप
उपर्जना करने वाले उन समस्त जलचरो को स्वर्ग की प्राप्ती हो जानी चाहिये
परंतु यह असंभव बात है
इसलिये जल स्नान से पापो की शुध्दी मानना विपरीत श्रध्दान है
हमने फरुखाबाद मे स्वयं देखा है कि कितने ही लोग गंगा स्नान कर उसी गंगा
के किनारे गोमुखी मे माला डालकर जप करते है और मच्छली मारने के लिये एक
एक वंशी भी डाल देते है
इस प्रकार तिर्थ स्नान और जप करते हुये भी मछली मारने का महापाप उत्पन्न
करते रहते है
यह सब उनका विपरित धर्म है
जो कर्म मन वचन काय के योग से जीव के प्रदेशो के साथ द्रुढतासे बंधे हुये
है वे कर्म तिर्थ स्नान करने मात्र से केवल जल का स्पर्श करने से कैसे
छुट सकते है?
यह शरीर मल मुत्र से भरा हुवा है ,रजोवीर्य से उत्पन्न हुवा है और रुधिर
मास आदि घ्रुणित वस्तुमय है
इसलिये सदा मलिन ही रहता है
तथा इस शरिर मे रहने वाला आत्मा सदा निर्मल रहता है और वह सदा अरुपी रहता है
ऐसी अवस्था मे विचार करना चाहिये कि इस तिर्थ जल से किसकी शुध्दि होती है
आत्भा अरुपी है इसलिये उसकी शुध्दि तो नही हो सकती है
इस लिये जल से आत्मा की शुध्दि कभी नहि हो सकति
गंगा स्नान करने से ही वे जीव अपने पापोसे छुट जाते हो तो जल मे ही निवास
करने वाले समस्त जलचर जीवों को स्वर्ग की प्राप्ती अवश्य हो जानी चाहिये
स्वर्ग की प्राप्ती पापो के नाश नही जाने से होती है
तिर्थ स्नान करने से पापो का नाश नही होता,पापो का नाश तो जप तप ध्यान से होता है
जिस तीर्थ स्नान से लोग स्वर्ग प्राप्ती मानते है उसी तिर्थ मे अरबो खरबो
मीन मछली मगर कच्छप आदि जलचर जीव रहते है और वे सब एक दुसरे का भक्षण
करते रहते है और इस प्रकार वे महापाप उपार्जन करते रहते है
यदि तिर्थ स्नान से ही पापो की निव्रुत्ति मानी जाय तो प्रतिक्षण महापाप
उपर्जना करने वाले उन समस्त जलचरो को स्वर्ग की प्राप्ती हो जानी चाहिये
परंतु यह असंभव बात है
इसलिये जल स्नान से पापो की शुध्दी मानना विपरीत श्रध्दान है
हमने फरुखाबाद मे स्वयं देखा है कि कितने ही लोग गंगा स्नान कर उसी गंगा
के किनारे गोमुखी मे माला डालकर जप करते है और मच्छली मारने के लिये एक
एक वंशी भी डाल देते है
इस प्रकार तिर्थ स्नान और जप करते हुये भी मछली मारने का महापाप उत्पन्न
करते रहते है
यह सब उनका विपरित धर्म है
जो कर्म मन वचन काय के योग से जीव के प्रदेशो के साथ द्रुढतासे बंधे हुये
है वे कर्म तिर्थ स्नान करने मात्र से केवल जल का स्पर्श करने से कैसे
छुट सकते है?
यह शरीर मल मुत्र से भरा हुवा है ,रजोवीर्य से उत्पन्न हुवा है और रुधिर
मास आदि घ्रुणित वस्तुमय है
इसलिये सदा मलिन ही रहता है
तथा इस शरिर मे रहने वाला आत्मा सदा निर्मल रहता है और वह सदा अरुपी रहता है
ऐसी अवस्था मे विचार करना चाहिये कि इस तिर्थ जल से किसकी शुध्दि होती है
आत्भा अरुपी है इसलिये उसकी शुध्दि तो नही हो सकती है
इस लिये जल से आत्मा की शुध्दि कभी नहि हो सकति
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