Sunday, September 11, 2011

MITHYA विपरीत मिथ्यात्व

गंगा स्नान से नही आत्म चिंतन से आत्मा शुध्द होता है

यह चित्त अंतरंग मे अत्यंत दुष्ट है इसलिये गँगा स्नान से कभी शुध्द नही हो सकता है जिस प्रकार शराब से भरा हुआ घडा सदा अशुध्द ही रहता है यदि उसे सौ सौ बार जलसे धोया जायतो भी वह कभी शुध्द नही हो सकता ईसी प्रकार यह मलिन ह्रदय गंगा स्नान से शुध्द नही हो सकता
जिस प्रकार अग्नि के संयोग से सोना शुध्द हो जाता है उसी प्रकार यह रत्नात्रय से शुशोभित होने वाला आत्मा तपश्चरण से तथा इन दुष्ट इन्द्रियो का परम निग्रह करने से ही शुध्द होता ,गंगा स्नान से नही
समाधि या ध्यान धारण करने से चित्त शुध्द होता है,सत्य भाषण से शुध्द होता है और ब्रम्हचार्य आदि से शरीर शुध्द होता है इस प्रकार ये सब विना गंगा स्नान के ही शुध्द हो जाता है तो गंगा स्नान की जरुरत क्या है हमे


विपरीत मिथ्यात्व
"गाय"
किसान प्रधान देश के लिये गाय यह प्राणी बहुपयोगी है
इसलिये उसे कामधेनु कहते यहा तक ठिक है वह भी संसारी हिसाब से लेकिन उसे देवता महत्व देना मिथ्यात्व है

जो गाय अपने पाप कर्म के उदय से तिर्यच योनी मे पशुपर्याय मे उत्पन्न हुई है जो पशु कहलाती है,जो विवेक रहित है,हित अहित का कुछ विचार नही कर सकती और विष्टा भी भक्षण करती है ऐसी गाय भला देवता कैसे होसकती है अर्थात कभी नही हो सकती
यदि आप लोगो ने यही मान लिया है कि गाय विष्टभक्षण करती रहे तथापी वंदनीय है तो फिर उसे क्यो क्यो बांधते हो,क्यो दुहते हो और बडी लकडी लेकर क्यो उसे मारते हो
जो लोग सब लोगो के सामने यह कहते है की यह गाय प्रत्यक्ष देवता है इस के शरीर मे नियम रुपसे सब देवता निवास करते है
ऐसा कहते हुए भी वे लोग गवोत्सव यज्ञ मे या गो यज्ञ मे उसी गाय को मारकर उसका मांस खा जाते है
क्या उस गायके मारने से समस्त देवो का वध नही हो जाता अवश्य हो जाता है
कहने का मतलब यह धारणा मानन मिथ्यात्व ही भगवान कभी पशुके शरिर मे वास नही करते है
तिर्यच गती का पशु कभी देवता भी नही हौ सकता है


1 comment:

  1. अरे मूर्ख में जैन हु, इसका यह मतलब नही की में आपके गलत बयान हिंदु धर्म विषय सुनूगा। आप जैनो को वैदिक धर्म के शास्त्रों का abc नही और कुत्ते जैसे बोकते हो। अरे मूर्ख , पागल बच्चेचाले बंद करे अज्ञानी जैन समाज। गंगा नदी में स्नान करने का रहस्य और महत्व वेदीक पुराण के आधर है, गाय की पूजा का भी विज्ञान है। जो आप पागल को नही पता। अब यह अलग बात है, की लोक गाय को मारते है, गाय साकाहारी है।

    आपके जैन धर्म मे भी कु प्रथा बरी है, मंदिर में भगवान के पूजा से सबके पाप थोड़ी चले गए। अगर ऐसा है मूर्ख, तो जैन समाज मे जैन व्यपारी कितने गलत काम करते है, पूजा से क्यों उनके गलत काम बंद न हुए।पालीताना की मूर्ख मान्यता आपलोक बनाते हो जैसे-
    शत्रुंजय नदी में स्नान करने वाला भव्यात्मा होता है।(सारावली पयन्त्रा)
    ऐसा होता तो क्या सब लोग नदी स्नान करके सुद्ध होते है, तो क्या सबको थोड़ी मुक्ति मिला या सबका अच्छा हुआ। आपके भाषण है गंगा नदी के विषय मे ऊपर लेख लिखा जिस प्रकार अग्नि के संयोग से सोना शुध्द हो जाता है उसी प्रकार यह रत्नात्रय से शुशोभित होने वाला आत्मा तपश्चरण से तथा इन दुष्ट इन्द्रियो का परम निग्रह करने से ही शुध्द होता ,गंगा स्नान से नही, उसी प्रकार पालीताना में जो नदी है, वहां भी स्नान करने से आत्मा सुद्ध नही बनता।

    गलत मान्यता पालीताना -
    इस तीर्थ के स्पर्श मात्र से तीनलोकों के दर्शन का लाभमिलाता है। ऐसे गलत मान्यता का प्रचार करते है आपके साधु लोक। पालीताना एक पर्वत है, उसमे क्या आत्मा सुद्धि या पूण्य मिलेंगा। अच्छे कर्म केवल दूसरे लोको की सेवा और आत्मा सुद्धि आपके अनुसार ब्रह्मचार्य से होंगा, फिर पालीताना का लाभ मिथ्या सीध है।

    गलत मान्यता प्रचार-
    यहाँ एक ताप का100 गुणा फल मिलता हैएवं जो छठ (बेला) करके सात यात्रा करे वो तीसरे भव में मोक्ष पाता है।

    यदि ऐसे है, तो सब आत्मा जो पालीताना में गया, उनको मुक्ति तीसरे भव में थोड़ी मिला है, ऐसा कुछ भी उलेख नही। जीव आत्मा का निर्वान उसके स्व पुरुषार्थ कर्म निजरां से है, पालीताना से या वहां उपवास से नही। कोई किदर भी उपवास करे, उसको उस जगह से मुक्ति मिल सकता है।

    आप वैदिक धर्म के बारे में कुछ गलत न बताये, उससे अच्छा अपने धर्म मे बुराई देखे और कु प्रथा जैसे गलत मान्यता दूर करे। और यदि आपको आपकी मान्यता सच लगती है, उसी अनुसार वैदिक धर्म माननेवाले के लिये उनकी मान्यता सच्च है। उनका अपमान न करे और बर्दास्त नही होंगा कुछ भी उल्टा सुल्टा बोले तो।

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