उत्तम तप धर्म
"पतन से उत्थान की ओर बधने का नाम तपस्या है":
कर्मो के क्शय करने के लिये साधना करना तपस्या है. मन की इक्शाओ आकान्शाओ को जला देना तपस्या है.विशय भोगो के प्रति उदासीन होने का नाम तपस्या है. जब आत्मा मे सन्यम का जागरन होता है तभी व्यक्ति तपस्या को अन्गीकार करता है. सन्सार कि सभी आत्मा तपस्या के माध्यम से ही पर्मात्मा हुइ है.तपश्चरन के अभाव मे शरीर और आत्मा प्रथक नही होती,आत्मा की उप्लब्ध...ी नही होती.
घर मे किया जाने वाला पर्वात्मक तप लौकिक तप है और आत्मा को लक्शय कर किया जाने वाला तप आध्यात्मिक अलौकिक तप है.सन्सार शरीर भोगो से विरक्त होकर आत्मा से सम्बन्ध बनाना ही सम्यक तप है. जब पथिक मन्जिल की प्राप्ति का सन्कल्प ले लेता है तब वो मार्ग के अवरोधो को नही देख्ता और नि:शन्क आगे आगे बद्द जाता है. उसी प्रकार जो मोक्श मन्जिल को अपना लक्श्य बना लेते है वे उप्सर्ग आदि को नही देखते और आगे बद्दते जाते है.
तपस्या अन्तरन्ग और बहिरन्ग दो प्रकार की होती है. बहिरन्ग तप का अर्थ शरीर को कश्त देना नही,आत्मा को पवित्र करना है. दूध को गरम कर्ने से पूर्व पात्र को गरम करना जरूरी है उसी प्रकार आत्मा को शुद्ध करने के लिये बहिरन्ग तप,अनशन,उनोदर,विधि पूर्वक भोजन,रस त्याग,एकान्त वास,और काय-क्लेश आदि बाह्य तप आवश्यक है.बाह्य तप अन्तरन्ग तप मे प्रवेश का साधन है.साधन के अभाव मे साध्य तक नही पहून्चा जा सकता है. महावीर स्वामि की वीतरागता एक-एक पग तपग्नि मे तप कर ही निकली है. (महावीर का धर्म नाश्ते पर आस्था रखने वालो को नही, मुक्ति से वास्ता रखने वालो का है) महावीर का धर्म दनलप के गद्दो पर सोने का नही, भूमि शयन करने वालो का है, ये धर्म कतिन्ग करने वालो का नही,केश लोन्च करने वालो का है, साधन एकत्र करने वालो का नही साधना करने वालो का है. कमजोर व्यक्ति महावीर की साध्ना पद्द्वति को नही स्वीकार कर सकता है.
बिना तपे कोइ भी कार्य सम्भव नही है, व्याव्हारिक्ता मे विद्यार्थी १६ वर्श अद्ध्यन की तपस्या करता है,तब सर्विस करने के योग्य होता है.नारी ९ महीने गर्भ सम्भाल्ने की तपस्या करती है तभी सन्तान का मुख देख पाती है. किसान चार माह तपस्या करता है तब फ़सल पाता है. उसी प्रकार आद्ध्यत्मिक्ता के साधक वर्शो वीतरागता की साधना करते है तब स्वयम के पर्मात्मा को प्राप्त कर पाते है. ऊर्जा को रूपान्तरित करने का नाम ही तपस्या है
आचरन की भूमि पर तप का तरु खदा होता है. तप को अप्नाने वाला सान्सारिक, जीवन मे परोपकार को स्वीकार करता है,प्रानियो की सेवा करता है. इसे महावीर ने वैय्याव्रत्त का बाल रूप कहा है.
"परमात्मा को पाने के लिये अन्त रन्ग और बहिरन्ग तप को धारन करना आवश्यक है येही मोक्ष का साक्षात कारन है
"पतन से उत्थान की ओर बधने का नाम तपस्या है":
कर्मो के क्शय करने के लिये साधना करना तपस्या है. मन की इक्शाओ आकान्शाओ को जला देना तपस्या है.विशय भोगो के प्रति उदासीन होने का नाम तपस्या है. जब आत्मा मे सन्यम का जागरन होता है तभी व्यक्ति तपस्या को अन्गीकार करता है. सन्सार कि सभी आत्मा तपस्या के माध्यम से ही पर्मात्मा हुइ है.तपश्चरन के अभाव मे शरीर और आत्मा प्रथक नही होती,आत्मा की उप्लब्ध...ी नही होती.
घर मे किया जाने वाला पर्वात्मक तप लौकिक तप है और आत्मा को लक्शय कर किया जाने वाला तप आध्यात्मिक अलौकिक तप है.सन्सार शरीर भोगो से विरक्त होकर आत्मा से सम्बन्ध बनाना ही सम्यक तप है. जब पथिक मन्जिल की प्राप्ति का सन्कल्प ले लेता है तब वो मार्ग के अवरोधो को नही देख्ता और नि:शन्क आगे आगे बद्द जाता है. उसी प्रकार जो मोक्श मन्जिल को अपना लक्श्य बना लेते है वे उप्सर्ग आदि को नही देखते और आगे बद्दते जाते है.
तपस्या अन्तरन्ग और बहिरन्ग दो प्रकार की होती है. बहिरन्ग तप का अर्थ शरीर को कश्त देना नही,आत्मा को पवित्र करना है. दूध को गरम कर्ने से पूर्व पात्र को गरम करना जरूरी है उसी प्रकार आत्मा को शुद्ध करने के लिये बहिरन्ग तप,अनशन,उनोदर,विधि पूर्वक भोजन,रस त्याग,एकान्त वास,और काय-क्लेश आदि बाह्य तप आवश्यक है.बाह्य तप अन्तरन्ग तप मे प्रवेश का साधन है.साधन के अभाव मे साध्य तक नही पहून्चा जा सकता है. महावीर स्वामि की वीतरागता एक-एक पग तपग्नि मे तप कर ही निकली है. (महावीर का धर्म नाश्ते पर आस्था रखने वालो को नही, मुक्ति से वास्ता रखने वालो का है) महावीर का धर्म दनलप के गद्दो पर सोने का नही, भूमि शयन करने वालो का है, ये धर्म कतिन्ग करने वालो का नही,केश लोन्च करने वालो का है, साधन एकत्र करने वालो का नही साधना करने वालो का है. कमजोर व्यक्ति महावीर की साध्ना पद्द्वति को नही स्वीकार कर सकता है.
बिना तपे कोइ भी कार्य सम्भव नही है, व्याव्हारिक्ता मे विद्यार्थी १६ वर्श अद्ध्यन की तपस्या करता है,तब सर्विस करने के योग्य होता है.नारी ९ महीने गर्भ सम्भाल्ने की तपस्या करती है तभी सन्तान का मुख देख पाती है. किसान चार माह तपस्या करता है तब फ़सल पाता है. उसी प्रकार आद्ध्यत्मिक्ता के साधक वर्शो वीतरागता की साधना करते है तब स्वयम के पर्मात्मा को प्राप्त कर पाते है. ऊर्जा को रूपान्तरित करने का नाम ही तपस्या है
आचरन की भूमि पर तप का तरु खदा होता है. तप को अप्नाने वाला सान्सारिक, जीवन मे परोपकार को स्वीकार करता है,प्रानियो की सेवा करता है. इसे महावीर ने वैय्याव्रत्त का बाल रूप कहा है.
"परमात्मा को पाने के लिये अन्त रन्ग और बहिरन्ग तप को धारन करना आवश्यक है येही मोक्ष का साक्षात कारन है
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